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तुलसीदास की रामचरित मानस में लिखा है ‘ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी’, क्या आप जानते हैं इसका अर्थ

Updated Jun 07, 2022 | 18:23 IST

Tulsidas Ramcharitmanas: महान ग्रंथ श्रीरामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास का दोहा ‘ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी’ खूब प्रचलित है। लेकिन क्या आप इसका सही अर्थ जानते हैं।

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श्रीरामचरितमानस
मुख्य बातें
  • ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी चौपाई पर जताई गई थी आपत्ति
  • गोस्वामी तुलसीदास ने लिखी है रामचरितमानस
  • रामचरितमानस की चौपाई है ‘ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी’

Goswami Tulsidas Ramcharitmanas couplet: गोस्वामी तुलसीदास को महान रचयिता कहा जाता है। उनके द्वारा लिखी गई रामचरितमानस का भारतीय संस्कृति में खास महत्व है। इसकी काफी लोकप्रियता भी है। कहा जाता है कि रामचरितमानस की रचना तुलसीदास ने उस वक्त की थी, जब मुगल शासक अकबर का भारत पर शासन था। तुलसीदासजी ने अनेक भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने काफी समय तक अयोध्या में ही रहकर शिक्षा हासिल की। महाकाव्य रामचरितमानस की रचना तुलसीदास ने तब की जब वे 76 साल के थे। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस महान ग्रंथ में वर्णित है।

क्यों हुआ रामचरित मानस पर बवाल

जिस समय तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी, उस समय हिंदू धर्म से जुड़े सभी धार्मिक ग्रंथ संस्कृत भाषा में हुआ करते थे। लेकिन तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना बेहद सरल और सुबोध भाषा में की। उन्होंने रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की, जिसमें संस्कृत, हिंदी और भारत के कई क्षेत्रों की भाषाओं को शामिल किया गया। रामचरित मानस को लेकर दो चीजों पर प्रश्न उठाए गए। पहला कि यह संस्कृत में क्यों नहीं है और दूसरा तुलसीदास की एक चौपाई।

इस चौपाई पर उठाए गए प्रश्न

तुलसीदासजी भगवान श्रीराम की भक्ति में लीन रहते थे। लेकिन उनके एक दोहे का सही अर्थ समझने से लोग अनभिज्ञ थे और इस कारण इसमें प्रश्न उठाए गए। ‘ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी’ तुलसीदास के रामचरितमानस की एक चौपाई है। यह चौपाई रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड में 58 व 59 वें दोहे के बीच 6वीं चौपाई है। लेकिन इस चौपाई को लेकर खूब बवाल हुआ था। यहां तक कि इस ग्रंथ को जला देने तक की बात कही गई। कुछ हिंदू विद्वान इसके पक्ष में थे तो कुछ विपक्ष में।

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रामचरितमानस को भगवान शंकर का मिला आशीर्वाद

रामचरितमानस पर जब सवाल उठे तो आखिरकार यह निर्णय लिया गया कि, इस ग्रंथ को यदि भगवान शंकर की सहमति मिलेगी तभी इसे सही माना जाएगा। धर्मगुरुओं की सहमति से रामचरितमानस को वाराणसी में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में सभी ग्रन्थों में सबसे नीचे रखा गया और कहा गया कि यदि सुबह यह ग्रंथ सभी ग्रंथों में सबसे ऊपर होगा तभी इसे मान्यता प्राप्त होगी। मुगल सैनिकों और धर्मगुरुओं की कड़ी पहरेदारी के बीच रातभर इस ग्रंथ को काशी विश्वनाथ मंदिर में रखा गया। सुबह जब मंदिर का पट खोला गया तो तुलसीदास की रामचरितमानस सभी ग्रंथों में ऊपर थी। इस अद्भुत घटना के बाद रामचरितमानस को महत्ता मिली।

तुलसीदास जी की ‘ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी’ चौपाई का अर्थ

जब किसी बात को समझा नहीं जाता तो अर्थ का अनर्थ होने में देरी नहीं लगती। इसलिए किसी भी पंक्ति का अर्थ भलि-भांति समझना चाहिए। तुलसीदास की चौपाई ‘ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी’ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। क्या आप इस चौपाई का सही अर्थ जानते हैं, नहीं तो आइये जानते हैं आसान शब्दों में इसका अर्थ।

ढोल- ढोल के विषय में ताडन शब्द का अर्थ होता है मारना या पीटना। क्योंकि जब तक ढोल को थाप न दी जाए अर्थात मारा-पीटा न जाये। तब तक उससे कोई आवाज नहीं आती। बिना ध्वनि के ढोल का कोई महत्व और उपयोग भी नहीं होता। लेकिन अगर ढोल पर सही व लयबद्ध तरीके से थाप दी जाए या मारा जाए तो एक मधुर ध्वनि निकलती है। नहीं तो आवाज कर्कश होती है।

गंवार- गंवार का मतलब अज्ञानी होता है। अज्ञानी या मुर्ख व्यक्ति को जब कोई कार्य दिया जाए तो वह इसे सही ढंग से नहीं करता। इसलिए उसपर नजर रखनी जरूरी होती है। इसीलिए जब तक किसी को किसी चीज के विषय मे पूरी जानकारी या ज्ञान न हो तब उस व्यक्ति पर नजर रखनी चाहिए। नहीं तो भारी नुकसान हो सकता है।

सूद्र- चौपाई ‘ढोल गवांर सूद्र पसु नारी’ में सबसे ज्यादा आपत्ति इसी शब्द पर हुई। इसका अर्थ है कि सूद्र केवल जाति से ही नहीं बल्कि कर्म से भी होते हैं। कुछ लोग अपनी इच्छा से ही नीच कर्म करते हैं कि वह सूद्र में गिने जाते हैं, लेकिन सूद्र का असली अर्थ सेवक होता है और सूद्र  का यह भी अर्थ होता है नीच कर्म करने वाला। तुलसीदास की रचना में यह कहा गया कि, सूद्र को भी सही रास्ते पर लाने के लिए शिक्षा की जरूरत होती है।

पशु- हिंदू धर्म पशु-पक्षियों का विशेष महत्व होता है। कुछ पशुओं को हिन्दू धर्म में मूल्यवान और पूजनीय माना गया है। चौपाई में पशु का अर्थ यह है कि पशु बुद्धिहीन होते हैं लेकिन मूल्यवान होते हैं। इसलिए उन्हें उचित देख-रेख की जरूरत होती है। जब पशु झुंड में चलते हैं तो एक व्यक्ति देखभाल के लिए उनके साथ होता है ताकि पशु इधर-उधर भटके। इसलिए यदि पशुओं की सही ताडन (देखरेख) न की जाए तो पशुधन का नुकसान हो सकता है।

नारी: इसपर भी सर्वाधिक आपत्ति होती है किंतु यहां नारी के विषय में अर्थ है उनका ध्यान रखना और उसकी रक्षा करना। क्योंकि नारी पवित्र और आदरणीय होती है। स्त्री को कभी अकेला नही छोड़ना चाहिए और एक कीमती रत्न की तरह उसका ध्यान रखना चाहिए।

(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

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