लाइव टीवी

मणिकर्णिका घाट के घट-घट में दिखता है होली का अड़भंगी नजारा

Unique Holi at Manikarnika Ghat Banaras Lord Shiva
Updated Mar 10, 2020 | 09:42 IST

Holi : काशी के मणिकर्णिका में (श्मशान) घाट पर रंग एकादशी के दूसरे दिन चिताओं की भस्म के साथ होली खेले जाने की अद्भुत परंपरा है। छन्नूलाला मिश्रा का यह शास्त्रीय गीत श्मशान के यथार्थ को बताता है।

Loading ...
Unique Holi at Manikarnika Ghat Banaras Lord ShivaUnique Holi at Manikarnika Ghat Banaras Lord Shiva
तस्वीर साभार:&nbspAP
मणिकर्णिका घाट पर चिताओं के भस्म से होली खेले जाने की परंपरा है।
मुख्य बातें
  • यहां दिगम्बर के डमरू की डिमिक-डिमिक वाली डमडमाती गूंज सुनाई देती है
  • मणिकर्णिका घाट के घट-घट में चिता भस्म की होली का उत्सव दिखता है
  • मस्त, मलंग होली सांसों से होकर मन मस्तिष्क को मुग्ध कर देती है

खेलैं मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी...ये पंक्तियां जाने-माने शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्रा की है। होली यूं तो रंगबिरंगे रंगों का त्यौहार है। लेकिन भोलेनाथ यानी भगवान शंकर के बारे में यह कहा जाता है कि उनकी होली श्मशान में होती है। यह अपने आप में अनूठी होली है जो जीवन के जन्म-मरण के शाश्वत सत्य से रूबरू कराती है। काशी एक प्राचीन नगरी है। यह नगरी भगवान शंकर को अत्यंत प्रिय है। काशी के मणिकर्णिका में (श्मशान) घाट पर रंग एकादशी के दूसरे दिन चिताओं की भस्म के साथ होली खेले जाने की अद्भुत परंपरा है। छन्नूलाला मिश्रा का यह शास्त्रीय गीत श्मशान के यथार्थ को बताता है। 

होली का अड़भंगी रूप
होली की चर्चा हो और काशी की कहानी आपके कानों में रस न घोले ऐसा कैसे हो सकता है। अविनाशी मानी जाने वाली काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर होली का अड़भंगी रूप नजर आता है। जहां तक नजर जाती है,  वहां तक कि फिजाओं में उड़ते भस्म भूतेश्वर की होली की भभूत बनते हुए दिखते हैं। दिगम्बर के डमरू की डिमिक-डिमिक वाली डमडमाती गूंज सुनाई देती है। साधु, अघोरी और शिवगणों के साथ आम लोगों की लटों में गुलाल लिपट जाते हैं। इस होली का स्वरूप अलग होता है क्योंकि यहां रंगों की जगह चिताओं के भस्म से होली खेली जाती है।

Holi घट-घट में चिता भस्म की होली का उत्सव
मणिकर्णिका घाट के घट-घट में चिता भस्म की होली का उत्सव है। भस्म की सुगंध में महेश्वर की मस्त, मलंग होली सांसों से होकर मन मस्तिष्क को मुग्ध कर देती है। राग-विराग की नगरी में न विरह वेदना के लिए जगह है, न किसी सांसारिक स्वार्थ की। ऐसा लगता है कि मानों मणिकर्णिका घाट पर बाबा भोले साक्षात भक्तवत्सल रूप धारण कर भस्म को अंगीकार करते हैं। इस अड़भंगी नजारे का होली में सिर्फ काशी में दर्शन होता है। इसे देखना अपने आप में एक अद्भुत स्वरूप से साक्षात्कार करने जैसा होता है।   

मुत्यू और मोक्ष का अनूठा उत्सव 
महाश्मशान मणिकणर्णिका के पूरे मन मिजाज में सिर्फ और सिर्फ महादेव छाए हुए हैं। चिता की राख से सनी होली में सांसारिक मोह माया मन से दूर है। भस्म के भागीदार एक दूसरे को चिता की राख लपेटते हैं। डमरू की गूंज में गुलाल की तरंगें आसमान को निललोहित करती हैं। यहां मुत्यू और मोक्ष का अनूठा उत्सव देखने को मिलता है। आग की लपटों और चिताओं से उड़ती राख मानों जीवन की उस शाश्वत रूपरेखा को समाहित करती नजर आती है। शरीर के अंत के बाद उसमें निहित पंचतत्वों को भी इन्हीं पंचतत्वों में समाहित होना होता है।  

भक्तों को तारक मंत्र देते हैं भगवान शिव
महाश्मशान में भक्त भस्मोद्धूलितविग्रह के रूप में आ जाते हैं। गुलाल के साथ भस्म के राग-रंग को एक कर दिया जाता है और महादेव के सामप्रिय, अनीश्वर, सर्वज्ञ और त्रिलोकेश रूप को मन में रखकर चिता की राख को चित में उतारा जाता है। क्या देशी और क्या विदेशी सब शिव के शाश्वत रंग में रंगे नजर आते  हैं। भूतभावन बाबा भोलेनाथ के गौना के दूसरे दिन महाश्मशान में मोक्ष की होली होती है।

मान्यता ये है कि महादेव भस्म रमाकर होली खेल रहे भक्तों को स्वयं तारक मंत्र देते हैं और इस होली में मृत्यु भी उत्सव के आनंद में बदल जाती है। एक दूसरे पर भस्म, चिता की राख और गुलाल फेंक कर भक्त त्रिपुरारी से सुख-समृद्धि और वैभव के साथ शांति का आशीर्वाद पाते हैं। महादेव मसान में मौजूद होते हैं और डमरू की आवाज के साथ हुड़दंग की होली का गवाह बनते हैं।

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | अध्यात्म (Spirituality News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल