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देवी सरस्वती के इन 8 मंदिरों में दर्शन करने मात्र से मिलता है, ज्ञान के साथ सुख और मोक्ष

Updated Nov 06, 2020 | 06:08 IST

Devi Darshan, temples of Goddess Saraswati: यदि आप जीवन में ज्ञान के भंडार के साथ हर ओर अपना सम्मान चाहते हैं, तो आपको देवी सरस्वती के 8 मंदिरों का दर्शन जरूर करना चाहिए।

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Gyan Mandir, Telangana, ज्ञान मदिंर, तेलंगाना
मुख्य बातें
  • पीओके में है देवी सरस्वती का सबसे प्राचीन मंदिर
  • तेलंगाना में देवी के मंदिर पर की थी वेदव्यास ने तपस्या
  • आठवीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने भी बनवाया था देवी मंदिर

ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा से मनुष्य को केवल बुद्धि-विवेक की प्राप्ति नहीं होती, बल्कि वह गीत-संगीत और मुधरता के साथ सम्मान, सुख और मोक्ष प्रदाता भी हैं। देवी की पूजा हर किसी को करनी चाहिए। अध्ययन और अध्यापन से जुड़े लोगों के लिए देवी की पूजा बहुत मायने रखती है। वहीं संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए भी देवी सरस्वती की पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है। तो आइए आपको आज 8 ऐसे देवी सरस्वती मंदिरों के बारे में बताएं, जहां दर्शन करने मात्र से मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं।

ये हैं देवी सरस्वती के सबसे प्रसिद्ध और सिद्ध मंदिर

ज्ञान मदिंर, तेलंगाना

देवी सरस्वती के सबसे प्रसिद्ध मंदिर तेलंगाना में है। ज्ञान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध देवी सरस्वती का ये मंदिर तेलंगाना के बासर जिले में गोदवारी नदी के तट पर स्थित है। बता दें कि, महाभारत के युद्ध के बाद महाऋषि वेदव्यास ने इसी जगह देवी सरस्वती की तपस्या की थी। इस मंदिर में देवी की चार फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित है और देवी यहां पद्मासन मुद्रा में विराजित हैं। साथ ही देवी सरस्वती के साथ यहां देवी लक्ष्मी भी विराजमान हैं।

शारदापीठ मंदिर, कश्मीर

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में पांच हजार साल पुराना शारदापीठ देवी सरस्वती का प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर पर इतने हमले हो चुके हैं कि यहां स्थापित प्रतिमाएं काफी खंडित हो चुकी है। इस मंदिर का आखिरी बार जीर्णोधार महाराजा गुलाब सिंह ने करवाया था।

ऋृगेरी शारदा पीठ, कर्नाटक

आठवीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। इसमें प्रथम मठ में ऋृगेरी शारदा पीठ स्थापित है। कर्नाटक में तुंगा नदी के तट पर स्थित ये मंदिर पीठ शारदाम्बा मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में चंदन की लकड़ी से बनी देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई है। यह प्रतिमा आदिगुरु शंकराचार्य ने ही स्थापित की थी, लेकिन 14वीं सदी में इस प्रतिमा को बदलकर सोने की प्रतिमा यहां स्थापित कर दी गई।

दक्षिणा मूकाम्बिका सरस्वती मंदिर, केरल

केरल में एरनाकुलम जिले में स्थित देवी सरस्वती के मंदिर को दक्षिणा मूकाम्बिका के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में देवी सरस्वती के साथ गणपति जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी भी विराजित हैं। इस मंदिर की स्थापना राजा किझेप्पुरम नंबूदिरी ने की थी। मंदिर में स्थापित देवी की प्रतिमा को खोज कर राजा ने पूर्व में स्थापित कराया था। इसके बाद पश्चिम दिशा की तरफ एक और प्रतिमा स्थापित की गई लेकिन इस प्रतिमा का कोई आकार नहीं है। इस मंदिर की खासयित यह है कि यहां देवी सरस्वती समक्ष हमेशा दीप प्रज्ज्वलित ही रहता है।

वारंगल श्री विद्या सरस्वती मंदिर, तेलंगाना

तेलंगाना के मेंढक जिले के वारंगल श्री विद्या सरस्वती मंदिर है। इस मंदिर में देवी सरस्वती के साथ गणेशजी, भगवान शनिश्वर और शिवजी भी विराजमान हैं। इस मंदिर का निर्माण यायावाराम चंद्रशेखर ने किया था और वे देवी सरस्वती के परम भक्त माने गए थे और देवी की उन पर असीम कृपा थी।

मैहर का शारदा मंदिर, मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के सतना जिले त्रिकुटा पहाड़ी पर मां दुर्गा के शारदीय रूप देवी शारदा का मंदिर है। देवी के इस मंदिर को मैहर देवी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में देवी सरस्वती के साथ देवी काली, दुर्गा, गौरी शंकर, हनुमानजी, शेषनाग, काल भैरव बाबा भी विराजमान हैं।

सरस्वती मंदिर, पुष्कर

राजस्थान के पुष्कर में भगवान ब्रह्मा के मंदिर के पास ही एक पहाड़ी पर देवी सरस्वती का मंदिर है। यहां देवी सरस्वती नदी के रूप में भी विराजमान हैं। उनका ये रूप उर्वरता और शुद्धता का प्रतीक माना गया है। पुराणों में उल्लेखित है कि देवी सरस्वती ने ही ब्रह्माजी को श्राप दिया था कि आपका मंदिर केवल पुष्कर में होगा।

सरस्वती उद्गम मंदिर, उत्तराखंड

बदरीनाथ से कुछ दूर सरस्वती नदी के तट पर भी देवी का एक मंदिर है। मान्यता है कि सृष्टि में पहली बार इसी स्थान पर देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। यह मंदिर सरस्वती उद्गम मंदिर के नाम से प्रचलित है। यह वही स्थान है जहां, महाऋषि व्यासजी ने देवी सरस्वती की पूजा करके महाभारत और अन्य पुराणों की रचना की थी।

तो देवी के इन सिद्ध मंदिरों में हर किसी को कम से कम एक बार तो जरूर जाना चाहिए। यह मोक्ष द्वार भी माना गया है।

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