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Muharram 2020: इस्लाम में क्यों अहम है मुहर्रम की दसवीं तारीख, जानें इसका इतिहास

Updated Aug 30, 2020 | 06:58 IST

Muharram Day of Ashura 2020: मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है। इस्लाम में मुहर्रम की दसवीं तारीख की बहुत अहमियत है। मोहर्रम के 10वें दिन को रोज-ए-अशुरा या यौमे आशुरा भी कहा जाता है।

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तस्वीर साभार:&nbspAP
हजरत इमाम हुसैन का मकबरा (फाइल फोटो)
मुख्य बातें
  • मुहर्रम से इस्‍लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है
  • मुसलमानों के लिए मुहर्रम बहुत पवित्र महीना होता है
  • 10 मुहर्रम को इस्लाम में बेहद अहम माना गया है

दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय के लिए मुहर्रम का विशेष महत्व है। मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है, जिससे नए साल का आगाज होता है। इस्लामिक कैलेंडर को हिजरी कैलेंडर भी कहा जाता है। हिजरी कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम जहां बेहद अहम माना गया है वहीं इसकी दसवीं (10) तारीख और भी ज्यादा मायने रखती है। मोहर्रम के 10वें दिन को रोज-ए-अशुरा या यौमे आशुरा भी कहा जाता है। आज आशुरा का दिन है। आइए जानते हैं मुहर्रम की 10 तारीख की अहमियत और इसका इतिहास।

इस्लाम में 10 मुहर्रम का महत्व

मुहर्रम महीने का दसवा दिन सबसे खास माना जाता है। दरअसल, मुहर्रम महीने की दस तारीख को कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। हजरत इमाम हुसैन ने इस्‍लाम की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान कर दिया था। इस जंग में  उनके 72 साथियों को भी शहीद कर दिया गया था। कर्बला की जंग हजरत इमाम हुसैन और यजीद की सेना के बीच हुई थी। हजरत इमाम हुसैन का मकबरा इराक के शहर कर्बला में उसी जगह है जहां यह जंग हुई थी। यह शहर इराक की राजधानी बगदाद से 120 किलोमीटर दूर है। 

क्यों शुरू हुई थी कर्बला की जंग?

कर्बला की जंग 1400 साल पहले हुई थी। यह जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ और इंसनियत के लिए लड़ी गई थी। दरअसल, यजीद नाम के शासक ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया था और वो अपना वर्चस्व कायम करना चाहता था। उसने इसके लिए लोगों पर सितम ढाए और बेकसूरों को निशाना बनाया। वह हजरत इमाम हुसैन से अपनी स्वाधीनता स्वीकार कराना चाहता था। उसने इमाम हुसैन को भी तरह-तरह से परेशान किया लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके। जब यजीद की यातनाएं ज्यादा बढ़ गईं तो इमाम हुसैन परिवार की रक्षा के लिए उन्हें लेकर मक्का हज पर जाने का फैसला किया। हालांकि, उन्हें रास्ते में मालूम चल गया कि यजीद के सैनिक वेश बदलकर उनके परिवार को शहीद कर सकते हैं।

कर्बला में इमाम हुसैन पर हुआ जुल्म

इसके बाद इमाम हुसैन ने हज पर जाने का इरादा छोड़ने दिया, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि पवित्र जमीन खून से सने। उन्होंने फिर कूफा जाने का निर्णय किया, लेकिन यजीद के सैनिक उन्हें पकड़कर कर्बला ले गए। कर्बला में इमाम हुसैन पर बेहद जुल्म किया गया और उनके परिवार के पानी पीने तक पर रोक लगा दी गई। यजीद इमाम हुसैन को अपने साथ मिलाने के लिए लगातार दबाव बनाता रहा। वहीं, दूसरी तरफ इमाम हुसैन ने अपने मजबूत इरादों पर डटे रहे। यजीद के सैनिकों ने फिर इमाम हुसैन, उनके परिवार और साथियों पर हमला कर दिया। इमाम हुसैन और उनके साथियों ने यजीद की बड़ी सेना का हिम्मत के साथ मुकाबला किया। उन्होंने इस मुश्किल वक्त में भी सच्चाई का दाम नहीं छोड़ा और आखिरी सांस तक गलत के खिलाफ लड़ते रहे।

क्‍यों मनाया जाता है मातम?

मुहर्रम की दस तारीख को बड़ी तादाद में मातम मनाया जाता है। यह मातम हजरत इमाम हुसैन की शहादत के गम में मनाया जाता है। मुहर्रम में मुसलमान हजरत इमाम हुसैन की इसी शहादत को याद करते हैं। वहीं, शिया मुस्लिम समुदाय के लोग 10 तारीख को बड़ी तादाद में ताजिया और जुलूस निकालकर गम मनाते हैं। ताजिया निकालने की परंपरा ज्यादा शिया मुस्लिमों में ही देखी जाती है। जुलूस के दौरान पूर्वजों की कुर्बानी की गाथाएं सुनाई जाती हैं ताकि लोग धार्मिक महत्व और जीवन मूल्यों को समझ सकें। हालांकि, कोरोना महामारी के कारण इस बार ताजियों के जुलूस नहीं निकाले जाएंगे। 

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