- 30 जुलाई को शुरु होगा श्रावण पुत्रदा एकादशी का मुहूर्त
- नि:संतान दंपतियों के लिए विशेष लाभकारी मानी जाती है पुत्रदा एकादशी
- यहां जानिए खास दिन का महत्व, व्रत कथा और पूजा विधि
Shravana Putrada Ekadashi 2020: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने वाला व्यक्ति वाजपेय यज्ञ के बराबर फल प्राप्त करता है। साथ ही इस व्रत के अच्छे पुण्य के साथ, भक्तों को संतान के लिए आशीर्वाद प्राप्त होता है।
सावन पुत्रदा एकादशी तिथि (Sawan Putrada Ekadashi Date)
साल 2020 में 30 जुलाई को श्रावण पुत्रदा एकादशी आ रही है।
एकादशी तिथि शुरू: 30 जुलाई, 05:42 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त: 31 जुलाई, 08.24 बजे तक।
कामिका एकादशी का व्रत आप 31 जुलाई को रख सकते हैं। अगर व्रत न रखें तो सुबह पूजा करने के बाद दान भी कर सकते हैं।
पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व (Significance of Putrada Ekadashi):
हिंदू धर्म में एकादशी को बहुत महत्वपूर्ण दिन माना जाता है और श्रावण पुत्रदा एकादशी उनमें से एक है। यह माना जाता है कि यदि कोई निःसंतान दंपति इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करता है और पूरी प्रक्रिया का सही ढंग से पालन करते हैं तो वे निश्चित रूप से संतान प्राप्ति कर सकते हैं। इसके अलावा, इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते हैं और उसे जीवन में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी व्रत और पूजन विधि (Shravana Putrada Ekadashi Puja Vidhi):
- सूर्योदय से पहले स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने एक घी का दीपक (दीया) जलाएं।
- भगवान की पूजा के लिए तुलसी, मौसमी फल और तिल का प्रयोग करें।
- एकादशी के दिन उपवास करें। शाम को भगवान की पूजा करने के बाद आप फल खा सकते हैं।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- एकादशी की रात जागरण और भजन कीर्तन करने का बहुत महत्व है।
- द्वादशी के अगले दिन ब्राह्मण को भोजन और दान दें।
- अंत में अपना भोजन स्वयं करें।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha):
श्री पद्म पुराण के अनुसार द्वापर युग में, महिष्मती पुरी के राजा एक शांत और धार्मिक व्यक्ति थे, लेकिन पुत्र से वंचित थे। उनके शुभचिंतकों ने यह बात महामुनि लोमेश को बताई, जिन्होंने तब बताया कि राजा अपने पिछले जन्म में एक क्रूर और दरिद्र व्यापारी (वैश्य) थे। उसी एकादशी के दिन दोपहर के समय वह बहुत प्यासा हो गए और एक तालाब पर पहुंचं जहां चिलचिलाती गर्मी के कारण प्यासी एक गाय पानी पी रही थी।
उसने उसे रोका और खुद पानी पी लिया। राजा का यह कृत्य धर्म के अनुसार ठीक नहीं था। पिछले जन्म में अपने अच्छे कर्मों के कारण वह इस जीवन में राजा बन गया, लेकिन उस एक पाप के कारण वह अभी भी संतानहीन है।
तब महामुनि ने बताया कि यदि उनके सभी शुभचिंतक पूरी प्रक्रिया का सही तरीके से पालन करते हुए श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हैं, और राजा को इसका लाभ प्रदान करते हैं, तो वह निश्चित रूप उन्हें एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद मिलेगा।
इस प्रकार, उनके निर्देशों के अनुसार, राजा ने अपने लोगों के साथ यह व्रत किया और परिणामस्वरूप, उनकी रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। तब से, इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है।