- सूर्यदेव की पुत्री और शनिदेव की बहन है भद्रा
- भद्राकाल में भूलकर भी न करें कोई शुभ कार्य
- भद्रा में शुभ कार्यों की शुरुआत और समाप्ति न करें
Astrology For Bhadra: हिंदू धर्म में किसी भी पूजा-पाठ और शुभ व मांगलिक कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। किसी भी कार्य को करते समय भद्रा योग को भी ध्यान में रखना चाहिए। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भद्राकाल में कोई भी उत्सव,यात्रा शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत या फिर समाप्ति नहीं करनी चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना गया है। हिंदू धर्म में जिस तरह राहुकाल में शुभ कार्य करने की मनाही होती है उसी तरह भद्राकाल को भी इन कार्यों के लिए अशुभ माना गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों भद्राकाल में शुभ-मांगलिक कार्य नहीं किए जाते और कौन है भद्रा?
कौन है भद्रा ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा भगवान सूर्यदेव और छाया की पुत्री है। उनके भाई शनिदेव है। जिस तरह शनिदेव का स्वभाव कठोर होता है उसी तरह भद्रा का स्वभाव विकराल और डरावना है। वेशभूषा में भद्रा काले वर्ण, लंबे बाल, बड़े-बड़े दांत, भयंकर और विकराल रूप वाली है। भद्रा का एक नाम विष्टी भी है। जन्म के बाद से ही भद्रा विग्घ्न कार्यों में बाधा उत्पन्न करने लगी थी। कहा तो यह भी जाता है कि जन्म के बाद भद्रा पूरे संसार को निगलना चाहती थी। भद्रा के दुष्ट स्वभाव को देखते हुए कोई उनसे विवाह नहीं करना चाहता था।
भद्रा के विवाह के लिए परेशान हो गए थे सूर्यदेव
भद्रा के उपद्रवी और दुष्ट स्वभाव को लेकर भगवान सूर्यदेव परेशान रहने लगे। उन्हें भद्रा के विवाह की चिंता सताने लगी। परेशान होकर सूर्यदेव ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और भद्रा के दुष्ट स्वभाव को लेकर अपनी समस्या बताई। सूर्यदेव के आग्रह करने पर ब्रह्मा जी ने भद्रा को समझाया। उन्होंने भद्रा से कहा कि, विष्टी तुम बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में रहो और जो भी व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश, विवाह, यात्रा, खेती, विशेष पूजन आदि जैसे शुभ तथा अन्य मांगलिक कार्य करें, तुम उसमें विघ्न डालो। साथ ही जो तुम्हारा आदर न करे उनके कार्य बिगाड़ दो। भद्रा ने ब्रह्मा जी के इस उपदेश को स्वीकार कर लिया।
इसलिए भद्राकाल में किए गए कार्य सफल नहीं होते। यही कारण है कि हिंदू धर्म में भद्राकाल में कोई भी विशेष कार्य करने पर मनाही होती है। काल व समय के अनुसार भद्रा पूर्वार्ध, स्वर्ग, पाताल और भू-लोक चार जगहों पर निवास करती है। लेकिन पृथ्वीलोक में भद्रा का रहना सबसे अशुभ माना गया है।
क्या करें अगर भद्राकाल में कोई कार्य करना अति आवश्यक हो
वैसे तो शास्त्रों के अनुसार, भद्राकाल में किसी भी तरह की यात्रा, भूमि पूजन, मुंडन, गृह प्रवेश, विवाह जैसे सभी शुभ व मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। लेकिन इसके बावजूद अगर कोई कार्य करना जरूरी हो और उस वक्त भद्राकाल हो तो ऐसे में क्या करना चाहिए। ऐसे में भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी जो भद्रा का मुख होता है उसे जरूर त्याग देना चाहिए। भद्रा 5 घटी मुख में, 2 घटी कंठ में, 11 घटी ह्रदय में और 4 घटी पुच्छ में स्थित होती है।
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)