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Aja Ekadashi 2022 Puja Vidhi: अजा एकादशी पर भगवान विष्णु की इस विधि से करें पूजा, मिलेगा व्रत का पूर्ण फल

Updated Aug 14, 2022 | 08:46 IST

Aja Ekadashi 2022: हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल अजा एकादशी का व्रत 23 अगस्त को रखा जाएगा। यह व्रत काफी प्रभावशाली माना जाता है। इस व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि अजा एकादशी का व्रत रखने वाला व्यक्ति हर पाप से मुक्त हो जाता है।

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
lord vishnu puja
मुख्य बातें
  • अजा एकादशी का व्रत 23 अगस्त को रखा जाएगा
  • एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित होती है
  • इस दिन श्री हरि विष्णु जी की पूजा आराधना की जाती है

Aja Ekadashi 2022 Shubh Muhurat: हिंदू धर्म में हर एक एकादशी का विशेष महत्व है। साल में 24 एकादशी का व्रत पड़ता है। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी में पड़ने वाली तिथि में अजा एकादशी व्रत रखा जाता है। इस साल अजा एकादशी का व्रत 23 अगस्त को रखा जाएगा। धार्मिक दृष्टि से इस व्रत का बेहद महत्व है। एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन श्री हरि विष्णु जी की पूजा आराधना की जाती है। मान्यता है कि अजा एकादशी व्रत से मनुष्य को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि अजा एकादशी व्रत करने और भगवान विष्णु की सच्चे मन से प्रार्थना करने से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। अजा एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की इस विधि विधान से पूजा करने पर हर मनोकामना पूरी होती है। आइए जानते हैं पूजा विधि के बारे में।

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इस दिन जरूर रखें कलश

अजा एकादशी में पूजा करने से पहले घर में पूजा की जगह पर गौमूत्र छिड़ककर वहां गेहूं रखें। फिर उस पर तांबे का लोटा यानी कि कलश रखें। लोटे को जल से भरें और उसपर अशोक के पत्ते या डंठल वाले पान रखें और उसपर नारियल रख दें। इसके बाद कलश पर या उसके पास भगवान विष्णु की मूर्ति रखें और भगवान विष्णु की पूजा करें और दीपक लगाएं। पूजा करने के बाद अगले दिन कलश हटाएं। कलश को हटाने के बाद उसमें रखा हुआ पानी को पूरे घर में छिड़क दें और बचा हुआ पानी तुलसी में डाल दें। 

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व्रता कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में सूर्यवंशी चक्रवर्ती राजा हरीशचन्द्र हुए जो बड़े ही सत्यव्रतधारी थे। एक बार उन्होंने अपने स्वप्न में भी दिये वचन के कारण अपना सम्पूर्ण राज्य राजऋषि विश्वामित्र को दान कर दिया था एवं दक्षिणा देने के लिए अपनी पत्नी एवं पुत्र को ही नहीं स्वयं तक को दास के रुप में एक चण्डाल को बेच दिया था। अनेक कष्ट सहन करते हुए भी वह कभी सत्य से विचलित नहीं हुए तब एक दिन उन्हें ऋषि गौतम मिले उन्होंने तब अजा एकादशी की महिमा सुनाते हुए यह व्रत राजा हरिशचंद्र को करने के लिए कहा। राजा हरीश्चन्द्र ने उस समय के अपने सामर्थ्यानुसार इस व्रत का पालन किया जिसके प्रभाव से उन्हें न केवल उनका खोया हुआ राज्य प्राप्त हुआ अपितु वह परिवार सहित सभी प्रकार के सुख भोगते हुए अंत में प्रभु के बैकुंठधाम को प्राप्त हुए। अजा एकादशी व्रत के प्रभाव से ही उनके सभी पाप नष्ट हो गए तथा उनको अपना खोया हुआ राज्य एवं परिवार भी प्राप्त हो गया था।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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