- भगवान धनवंतरि,आरोग्य के देवता माने जाते हैं
- देवताओं के चिकित्सक को देवतुल्य माना गया है
- धनतेरस पर धनवंतरि मंत्र, स्त्रोत और आरती करें
भगवान धनवंतरि को सबसे पहला महान चिकित्सक माना गया है और हिन्दू धर्म में उन्हें देवता का चिकित्सक कहा गया है इसलिए वह देवततुल्य हैं। भगवान धनवंतरि को विष्णु का अवतार माना जाता है, जिनका जन्म समुद्र मंथन के समय हुआ था। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से जन्म माना गया है। यही कारण है कि दिवाली के दो दिन पहले भगवान धनवंतरि के जन्म दिवस पर धनतेरस मनाया जाता है। यह सर्वविदित है कि जहां स्वास्थ्य होता है वहीं लक्ष्मी का वास इसलिए भगवान धनवंतरि की जहां पूजा होती है, मां लक्ष्मी वहां अपने आप आ जाती हैं। इसलिए धनतेरस पर धनवंतरि, कुबेर और लक्ष्मी मां की पूजा जरूर करनी चाहिए।
भगवान धनवंतरि की चार भुजायें हैं। ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और चक्र है, जबकि दो अन्य भुजाओं में से एक में जलूका और औषधिय तथा दूसरे में अमृत कलश है। भगवान धनवंतरि का प्रिय धातु पीतल माना जाता है। यही कारण है कि लोग पीला सोना या पीतल का सामान इस दिन जरूर खरीदते हैं। आरोग्य के देवता ने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी औ उनके वंशज दिवोदास ने विश्व का पहला विश्व विद्यालय काशी में स्थापित किया था। तो दीपावली पर कार्तिक त्रयोदशी पर भगवान धनवंतरी की पूजा विधिपूर्व करें और उनके मंत्र, स्त्रोत और आरती कर के अपने और अपने परिवार के लिए आरोग्य और धन का आशीर्वाद प्राप्त करें।
भगवान धनवंतरि का महामंत्र
ओम नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धनवंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय।
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री अष्टचक्र नारायणाय नमः॥
धनवंतरि स्तोत्रम का पाठ भी करें
ओम शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥
आरती श्री धनवंतरि भगवान की
कमलनयन शामवर्ण,पीतांबर साजे
मनमोहन वस्त्राने, आदिदेव विलसे
शंखचक्र जलौका, अमृतघट हाती
चर्तुभुजजांनी अवघ्या, दुखाला पल्लवी
जय देव, जय देव, धनवंतरी देवा
सकलजनांना धावा आरोग्य देवा
जय देव, जय देव, धनवंतरी देवा
नमामि धनवंतरी, नमामि धनवंतरी
देवांयानी दैत्यानी, मंथन ते केले
त्यातुन अमृतकलशा, घनेऊनिया आले
भय दुख सरण्या, जरा मृत्यु हरण्या
सकलांना त्याचे, संजीवीनी झाले
जय देव, जय देव, धनवंतरी देवा
सकलजनांना धावा, आरोग्य देवा
जय देव, जय देव, धनवंतरी देवा
नमामि धनंवतरी, नमामि धनवंतरी
शास्त्रांचे परिशीलन, अनुभव कर्मांचा
बुध्दीने तर्काने, तत्पर ती सेवा
शुचिदर्श सत्यधर्म, संयत उदारता
श्रीकांतासह सालया, आशिर्वच धावा
जय देव, जय देव, धनवंतरी देवा
सकलजनांना धावा, आरोग्य देवा
जय देव, जय देव, धनवंतरी देवा।।