Akshaya Tritiya 2022 Date, Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Samagri List: हिंदू धर्म शास्त्रों में अक्षय तृतीया तिथि को बेहद अनुकूल बताया गया है। आखा तीज के नाम से भी अक्षय तृतीया तिथि को पुकारा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सोना, चांदी आदि चीजों की खरीदारी करना फलदाई है। इस दिन भवन, वाहन, जमीन आदि की खरीदारी करने की भी परंपरा है। कहा जाता है कि अक्षय तृतीया पर धातुओं को खरीद कर घर लाने से मां लक्ष्मी भी साथ आती हैं। अक्षय तृतीया हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाई जाती है। धार्मिक, शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए यह तिथि बेहद अनुकूल मानी गई है।
कहा जाता है इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से धन-धान्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन दान-पुण्य, स्नान, यज्ञ, जप और तप का भी विशेष महत्व है। इस लाइव ब्लॉग के माध्यम से जानें वर्ष 2022 में अक्षय तृतीया कब पड़ रही है। साथ में शुभ मुहूर्त, पूजा मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, आरती, कथा आदि की जानकारी भी यहां से प्राप्त करें।
एक समय की बात है शाकलनगर में एक धर्मदास नामक वैश्य रहता है। वह धार्मिक विचारों वाला व्यक्ति था। वह दान-पुण्य का काम बड़ी श्रद्धा पूर्वक करता था। भगवान के प्रति उसकी असीम आस्था थी। वह हमेशा ब्राह्मणों का आदर सत्कार किया करता था। एक दिन की बात है। वैश्य को किसी दूसरे के माध्यम से अक्षय तृतीया के महत्व का पता चला। उस व्यक्ति ने धर्मदास को बताया, कि अक्षय तृतीया के दिन पूजा-पाठ और ब्राह्मणों को दान कराने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती हैं। यह बात वैश्य के मन में बैठ गई। पूरू कहानी यहां पढ़ें: Akshaya Tritiya Vrat Katha: अक्षय तृतीया व्रत कथा हिंदी में, मां लक्ष्मी की कृपा के लिए पढ़ें ये पौराणिक कहानी
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निस दिन सेवत हर-विष्णु-धाता॥
ॐ जय..
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय
तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता॥
ॐ जय..
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय..
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता॥
ॐ जय..
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता॥
ॐ जय..
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता॥
ॐ जय..
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता॥
ॐ जय..