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एक हथिया देवाल: उत्तराखंड का ये शिव मंदिर है शापित, यहां पूजा करने वाला हो जाता है बर्बाद

Updated Jan 17, 2021 | 07:49 IST

भारत के मंदिर जहां आस्था का केंद्र हैं। वहीं, इसमें कई रहस्य भी छिपे हुए हैं। ऐसा ही है उत्तराखंड के  पिथौरागढ़ के कस्बे थल में स्थित एक हथिया देवाल मंदिर। जानिए इस मंदिर का रहस्य...

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Ek Hathiya Deval Mandir
मुख्य बातें
  • उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के कस्बे थल में स्थित एक हथिया देवाल मंदिर रहस्यमयी है। 
  • इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि यह शापित है।
  • मंदिर को लेकर स्थानीय लोगों के बीच एक किवदंति काफी मशहूर है।

नई दिल्ली. फिल्मों और टीवी सीरियल में अक्सर शापित मंदिरों के बारे में दिखाया जाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि असल जिंदगी में भी एक ऐसा मंदिर है, जिसे शापित माना जाता है। ये है उत्तराखंड के  पिथौरागढ़ के कस्बे थल में स्थित एक हथिया देवाल मंदिर। 

एक हाथिया देवाल को लेकर स्थानीय लोगों के बीच एक किंवदंती मशहूर है। इसके मुताबिक इस गांव में एक मूर्तिकार रहता था, जो पत्थरों को काट कर मूर्तियां बनाता था। आगे जाकर एक दुर्घटना में उसका एक हाथ खराब हो गया। 

मूर्तिकार एक हाथ के सहारे ही मूर्तियां बनाना चाहता था, लेकिन कुछ गांववाले उसका मजाक बनाते थे कि एक हाथ के सहारे क्या कर सकेगा? इन उलाहनों से तंग आकर मूर्तिकार ने तय किया कि वह ये गांव छोड़कर किसी दूसरे गांव में जाकर बस जाएगा।

रातों-रात बनाया मंदिर
मूर्तिकार एक रात अपनी छेनी, हथौड़ी और दूसरे औजारों को लोकर गांव के दक्षिणी छोर की ओर निकल पड़ा। इस जगह को गांवा वाले शौच आदि के लिए इस्तेमाल करते थे। यहां पर बड़ी सी चट्टान थी।

अगले दिन सुबह जब गांव के लोग शौच आदि के लिए उस दिशा में गए तो पाया कि किसी ने रात भर में चट्टान को काटकर एक देवालय का रूप दे दिया है। ये देखकर सभी की आंखें फटी रह गयीं। सारे गांववाले वहां पर इकट्ठा हो गए। 

नहीं मिला कारीगर
गांववालों को बहुत ढूंढने के बावजूद वह कारीगर नहीं मिला, जिसका एक हाथ कटा था। सभी गांववालों ने गांव में जाकर उसे ढूंढा और आपस में एक-दूसरे से उसके बारे में पूछा, लेकिन मूर्तिकार के बारे में कुछ भी पता न चल सका। 

स्थानीय पंडितों ने उस देवालय के अंदर उकेरे गए शिवलिंग और मूर्ति को देखा तो यह पता चला कि रात में जल्दीबाजी से बनाये जाने के कारण शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बनाया गया है, जिसकी पूजा फलदायक नहीं होगी बल्कि दोषपूर्ण मूर्ति का पूजन अनिष्टकारक भी हो सकता है। 
 

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