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जगन्नाथ पुरी में भोग बनाने के तरीका है दिलचस्प, कभी नहीं खत्म होता यहां प्रसाद

Updated Jul 24, 2019 | 15:14 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रसाद बनाने से लेकर प्रसाद परोसने तक कई बातें रोचक भरी हैं। यहां के रसोई घर में आज भी पारंपरिक तरीके से प्रसाद बनते हैं।

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Jagannath Puri Temple
मुख्य बातें
  • जगन्नाथ पुरी मंदिर का भोग कहा जाता है महाप्रसाद
  • भोग में 56 प्रकार के व्यंजन होते हैं शामिल
  • 752 चूल्हे पर बना भोग कभी खत्म नहीं होता

पुरी का जगन्नाथ मंदिर भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम के लिए ही नहीं प्रसिद्ध बल्कि मंदिर की कई खासियत ऐसी है जिसे लोगों को जरूर जानना चाहिए। भगवान की प्रतिमाओं के साथ मंदिर की कलाकृतियां, मंदिर से जुड़े की रहस्य और भोग से जुड़ी कई ऐसे बाते हैं जिसे शायद ही सभी जानते हैं। मंदिर में कई चीजें ऐसी हैं जो विश्वसनीय सी नहीं लगती हैं लेकिन वह सत्य हैं। यहां भोग बनाने में होने वाली प्रथा की ही बात करें तो वह बहुत विशेष है। यहां का रसोइघर का और रसोइघर में बनने वाले भोग को बनाने का तरीका किसी भी अन्य मंदिर में नहीं होता। यहां भोग को अनंत प्रसाद माना जाता है। यानी यहां भोग कभी खत्म नहीं होता। यहां की रसोई और रसोई से जुड़ी कई ऐसी जानकारी हैं जिसे आम भक्त शायद ही जानते हैं। तो आइए आज पुरी के जगन्नाथ मंदिर के कुछ इन्हीं रोचक पहलुओं को जानें।

वैष्णव सम्प्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक जगन्नाथ पुरी
पुरी का जगन्नाथ मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक माना गया है। जगन्नाथ मंदिर है तो श्रीकृष्ण का लेकिन विष्णु के अवतार होने के कारण इस मंदिर को वैष्णव मंदिर की संज्ञा दी गई है। भगवान जगन्नाथ इस मंदिर में बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि सुभद्रा को अपना मायका बहुत प्यारा था इसलिए वह यहीं रहना चाहती थीं। इस कारण उन्हें भी यहां स्थान दिया गया है। तो आइए जाने की मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य।

1. मंदिर के रसोई घर में जहां महाप्रसाद बनता है वहां बर्तन केवल मिट्टी के होते हैं और लकड़ियों पर ही बनते हैं।

2. यहां बनने वाले भोजन के सात पात्र एक के ऊपर एक रख कर पकाए जाते हैं। अचरज की बात ये है की भोग सबसे पहले नीचे नहीं ऊपर के पात्र में पकता है।

3. मंदिर में हमेशा एक ही मात्रा में भोग बनता है लेकिन भक्त की संख्या या घटने पर भी भोग कम या ज्यादा नहीं पड़ता। इतना ही नहीं अचरज की बात ये है कि मंदिर का कपाट बंद होते ही भोग भी खत्म हो जाता है।

4. मंदिर में 752 चूल्हों पर 500 रसोइए और 300 सहयोगी रसोइए साल भर भोग बनाने के कार्य में जुटे रहते हैं।

5. यहां का रसोईघर दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर माना जाता है।

6. भोग के लिए रोज यहां 56 तरह के भोग तैयार किये जाते हैं।

7. समुद्री हवा का नियम होता है कि वह दिन में समुद्र से जमीन और शाम को जमीन से समुद्र की ओर आती है, लेकिन पुरी में इसके विपरीत हवाएं चलती हैं।

8. मंदिर पर बने गुम्बद भी कम आश्चर्य से नहीं भरे। इस गुम्बद की छाया कभी भी नजर नहीं आती। दिन के किसी भी वक्त यहां छाया नजर ही नहीं आती।

9. 214 फुट ऊंचे बने इस मंदिर पर सुदर्शन चक्र लगा है। इसे जब भी कोई देखता है तो उसे वह चक्र खुद के सामने ही नजर आएगा। चाहे आप जिस दिशा में भी जाएं चक्र आपकी ओर ही दिखता नजर आएगा।

10. अब तक आपने यही जाना होगा कि जिधर की हवा होती है उधर ही ध्वज भी पहरता है लेकिन ऐसा पुरी के जगन्नाथ मंदिर में नहीं है। यहां ध्वज हवा की विपरीत दिशा में फहराता है।

11. यहां रोज शाम को मंदिर का ध्वज बदला जाता है और इसे बदलने के लिए मंदिर पर ध्वज बदलने वाला उलटा चढ़ता है।

यहां का प्रसाद बेहद खास होता है। मंदिर में मिलने वाला भोग एक आदमी के पेट भरने के लिए काफी होता है।

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