- शास्त्रों के अनुसार गुरु दशा खराब होने से सभी कार्यों में उत्पन्न होने लगती हैं विघ्न-बाधाएं।
- जिस व्यक्ति की कुंडली में गुरु दशा सही रहती है उसके सभी कार्य शीघ्र ही होते हैं पूर्ण।
- गुरुवार के दिन यहां बताए गए मंत्रों के उच्चारण से कुंडली में गुरु की दशा होती है ठीक।
Thursday Special Mantra: मनुष्य के जीवन में हर समय एक समान नहीं होता है। कभी-कभी मनुष्य को ऐसे मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, जिसका सामना करने में वह खुद को असमर्थ समझने लगता है। आपको बता दें, कि ऐसी परिस्थिति सिर्फ हमारे किए गए कार्यों की वजह से नहीं बल्कि ग्रहों के बुरे प्रभाव से भी होती हैं। शास्त्रों के अनुसार हमारा दिनचर्या भी ग्राहकों पर प्रभाव डालता है।
जी हां, यदि किसी व्यक्ति की ग्रह दशा सही हो, तो उस व्यक्ति के जीवन में सभी कार्य मंगलमय तरीके से पूर्ण हो जाता है। लेकिन उसी जगह उस व्यक्ति की ग्रह दशा खराब हो, तो उसके जीवन में मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार वैसे ही ग्रहों में से एक ग्रह गुरु है, जो व्यक्ति के जीवन को बहुत जल्दी प्रभावित करता है।
यदि किसी व्यक्ति के जीवन में गुरु की ग्रह दशा खराब चल रही हो, तो वैसे व्यक्ति को वृहस्पति का मूल मंत्र और शांति पाठ करना बेहद लाभकारी होता है। ज्योतिष के अनुसार वृहस्पति को धनु और मीन राशि का स्वामी भी माना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार यदि व्यक्ति के जीवन में गुरु की स्तिथी खराब हो जाए, तो व्यक्ति आर्थिक, मानसिक, शारीरिक एवं पारिवारिक परेशानियों से गिर जाता हैं। ऐसे में यदि आप गुरुवार के दिन यहां बताए गए मंत्रों से भगवान गुरु का जाप करें, तो आप की ग्रह दशा सही होने के साथ-साथ सभी सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण हो सकती हैं। यहां आप बृहस्पति के मूल मंत्र और शांति पाठ पढ़ सकते हैं।
बृहस्पति स्पेशल मंत्र (Brihaspativar ka Mantra)
मूल मंत्र: ।। ॐ बृं बृहस्पतये नम:।।
बृहस्पति शांति पाठ:
शास्त्रों के अनुसार गुरु को ज्ञान, प्रतिभा, वैभव, लक्ष्मी और सम्मान प्रदान करने वाले ग्रह के रूप में पूजा जाता हैं। यदि व्यक्ति के जीवन में गुरु ग्रह की दशा प्रतिकूल हो जाए, तो व्यक्ति धन दौलत खो कर जिंदगी में दुखी जीवन व्यतीत करता है। पंडितों के अनुसार इनकी पूजा आराधना करने से जीवन में सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं।
बृहस्पति विनियोगा मंत्र:
ॐ अस्य बृहस्पति नम: (शिरसि)
ॐ अनुष्टुप छन्दसे नम: (मुखे)
ॐ सुराचार्यो देवतायै नम: (हृदि)
ॐ बृं बीजाय नम: (गुहये)
ॐ शक्तये नम: (पादयो:)
ॐ विनियोगाय नम: (सर्वांगे)
करन्यास मंत्र:
ॐ ब्रां- अंगुष्ठाभ्यां नम:।
ॐ ब्रीं- तर्जनीभ्यां नम:।
ॐ ब्रूं- मध्यमाभ्यां नम:।
ॐ ब्रैं- अनामिकाभ्यां नम:।
ॐ ब्रौं- कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
ॐ ब्र:- करतल कर पृष्ठाभ्यां नम:।
करन्यास के बाद नीचे लिखे मंत्रों का उच्चारण करते हुए हृदयादिन्यास करें:
ॐ ब्रां- हृदयाय नम:।
ॐ ब्रीं- शिरसे स्वाहा।
ॐ ब्रूं- शिखायैवषट्।
ॐ ब्रैं कवचाय् हुम।
ॐ ब्रौं- नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ ब्र:- अस्त्राय फट्।
गुरु का ध्यान मंत्र:
रत्नाष्टापद वस्त्र राशिममलं दक्षात्किरनतं करादासीनं,
विपणौकरं निदधतं रत्नदिराशौ परम्।
पीतालेपन पुष्प वस्त्र मखिलालंकारं सम्भूषितम्,
विद्यासागर पारगं सुरगुरुं वन्दे सुवर्णप्रभम्।।