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Ahoi Ashtami: इस कथा के बिना नहीं फलदायी होता अहोई अष्टमी का व्रत, जानिए क्यों खास है यह कथा 

Updated Oct 18, 2019 | 09:50 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत  संतान की लंबी आयु व मनोकामना को लेकर कार्तिक कृष्ण अष्टमी व्रत रखा जाता है। इस साल यह व्रत 21 अक्टूबर को पड़ रहा है। यहां पढ़ें व्रत कथा (Vrat Katha) 

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
Ahoi Ashtami
मुख्य बातें
  • अहोई अष्टमी की पूजा काफी अलग होती है
  • अहोई माता की पूजा करने के बाद रात में तारों को अर्घ्य दिया जाता है
  • आठ कोष्ठक वाली एक पुतली बनाकर अहोई माता का चित्रांकन किया जाता है

संतान की सुख समृद्धि और लंबी उम्र के लिए हर साल अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस व्रत का खास महत्व है। इस दिन महिलाएं अपने पुत्रों के लिए निर्जला व्रत रखकर अहोई माता की पूजा करती हैं और उसके लंबे जीवन की कामना करती हैं। अहोई अष्टमी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पड़ती है।

अहोई अष्टमी की पूजा काफी अलग होती है और व्रती महिलाएं पूरे विधि विधान से अहोई माता की पूजा करने के बाद रात में तारों को अर्घ्य देती हैं और अपना निर्जला व्रत तोड़ती हैं। कहा जाता है कि सच्चे मन और पूरी श्रद्धा से यह व्रत रखने पर अहोई माता प्रसन्न होती हैं जिससे निःसंतान दंपत्ति को पुत्र की प्राप्ति होती है। इस वर्ष अहोई अष्टमी 21 अक्टूबर को है।

आठ कोष्ठक वाली पुतली की होती है पूजा
आठ कोष्ठक वाली एक पुतली बनाकर अहोई माता का चित्रांकन किया जाता है। कोष्ठक के आसपास साही और उसके बच्चों की आकृति बनायी जाती है। होई को आमतौर पर गेरू से बनाकर दीवार पर टांगा जाता है या फिर मोटे कपड़े पर कढ़ाई करके होई की आकृति निर्मित की जाती है और इसे दीवार पर लटका दिया जाता है। अहोई अष्टमी के दिन व्रत रखकर अहोई माता की पूजा की जाती है। इस दिन चंद्रमा दूसरे नक्षत्र में चला जाता है और अलग अलग राशियों पर प्रभाव डालता है इसलिए व्रत रखने वाली महिलाओं को अपनी राशि के अनुसार ही अलग अलग तरीके से पूजा करनी चाहिए।

अहोई माता की कथा
प्राचीन समय में एक साहूकार था। उसकी सात बहुएं थी। दीवाली के दिन उसकी इकलौती पुत्री अपने मायके आयी। जब उसकी सभी भाभियां घर की लिपाई करने के लिए मिट्टी लेने जंगल जा रही थीं तब वह भी उनके साथ गई। साहूकार की पुत्री जिस स्थान से मिट्टी काट रही थी, वहीं पर साही का बेटा खेल रहा था। गलती से खुरपी लगने के कारण साही का बेटा मर गया। जब साही को यह बात पता चली तो उसने क्रोधित होकर साहूकार की बेटी को संतान ना होने का श्राप दिया। तब साहूकार की बेटी ने अपने भाइयों से यह श्राप अपने ऊपर लेने के लिए कहा। उसकी छोटी भाभी यह श्राप लेने के लिए तैयार हो गयी।

उसे कोई बच्चा पैदा होता तो सात दिन में ही मर जाता। इस तरह उसके सात पुत्रों की मौत हो गयी। तब उसे एक पंडित ने बताया कि सुरही गाय की सेवा करने से वह पाप मुक्त हो सकती है। अपनी सेवा से सुरही गाय प्रसन्न हुई और उसे एक स्याहु के पास लेकर गयी। रास्ते में दोनों पानी पीने के लिए रुकी थीं तभी छोटी बहू की नजर गरुड़ पंखनी पर पड़ी जिसे सांप डसने जा रहा था। छोटी बहू ने सांप को मारकर गरुड़ पंखनी की रक्षा की। यह देखकर गरुड़ पंखनी की मां प्रसन्न हुई और छोटी बहू को श्राप से मुक्त करके सात संतानों की प्राप्ति का वरदान दिया। उस दिन अष्टमी थी तभी से अहोई अष्टमी का व्रत पुत्र के लिए किया जाता है।

यह व्रत प्राचीन काल से ही प्रचलित है। जिस तरह साहूकार की छोटी बहू को सुंदर पुत्रों की प्राप्ति हुई, उसी तरह महिलाएं भी अहोई अष्टमी का व्रत रखकर सुंदर संतान की प्राप्ति के साथ ही उसके सुख समृद्धि की कामना करती हैं।

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