- रामायण और महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख है।
- भगवान श्रीराम और माता सीता ने भी सूर्य पूजा की थी।
- कर्ण के अलावा द्रौपदी और पांडवों ने भी सूर्य को पूजा था।
दिवाली के त्योहार के बाद बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश छठ के स्वागत के लिए तैयार है। यह त्यौहार पृथ्वी पर जीवन पाने, भगवान सूर्य और उनकी पत्नी से आशीर्वाद पाने के लिए भगवान को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य के आशीर्वाद से बेहतर स्वास्थ्य, दीर्घायु, प्रगति, सकारात्मकता, समृद्धि और कल्याण का आशीर्वाद मिलता है। चार दिन के छठ में छठ का मुख्य दिन तीसरा माना गया है। इस त्यौहार में कठोर दिनचर्या का पालन करना हेाता है।
इस त्योहार में एक बार उगते और दूसरी बार डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। उगते हुए सूर्य को महिलाएं पानी में खड़े होकर अर्घ्य देती हैं। कार्तिका के महीने की छठें दिन पड़ने वाले इस त्योहार का नाम इसी कारण से छठ पड़ा है।
छठ पूजा का इतिहास
छठ पूजा पवित्रता, भक्ति और सूर्य भगवान और उनकी पत्नी की पूजा का होता है। त्यौहार की सही उत्पत्ति अस्पष्ट है, लेकिन हिंदू महाकाव्य, रामायण और महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख मिलता है। रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने छठ पूजा की शुरुआत की थी। जब भगवान राम अयोध्या लौटे तब उन्होंने और उनकी पत्नी सीता ने सूर्य देवता के सम्मान में व्रत रखा। केवल सूर्य की स्थापना कर इसे तोड़ दिया। यही अनुष्ठान आगे चलकर छठ पूजा के रूप में मनाया जाने लगा।
महाभारत से भी है कनेक्शन
छठ का महाभारत से भी कनेक्शन है। महाभारत काल में कर्ण सूर्य देव और कुंती की संतान थे और वह हमेशा पानी में खड़े होकर ही प्रार्थना करते थे। वहीं एक और कथा ये भी है कि द्रौपदी और पांडवों ने भी अपने राज्य को वापस पाने के लिए भी सूर्य पूजा की थी। जो बात में छठ पूजा के रूप में मनाया जाने लगा।
छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व
छठ पूजा के दौरान नदी में स्नान करना होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे देखें तो शरीर को पानी में डुबकी लगाने से शरीर डिटॉक्सिफाई होता है और जब ये सूर्य की पहली किरण और धूप के संपर्क में आता है तो शरीर में सौर जैव बिजली का प्रवाह बढ़ जाता है। सूर्य की किरण से मानव शरीर की कार्यक्षमता भी बढ़ती है शरीर निरोगी बनता है। छठ पूजा हानिकारक बैक्टीरिया को मारने में मदद करती है और सर्दियों के मौसम के लिए शरीर को मजबूत बनाता है।
छठ पूजा का त्यौहार चार दिनों का होता है
पहला दिन
नहाय खाय: छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय से होती है। इस दिन नदी में स्नान करने के बाद लौकी की सब्जी, दाल-चावल और खीर बनाई जाती है। इसके इसे खाने के बाद व्रती लोग कुछ नहीं खाते और अगले दिन की पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है।
दूसरा दिन
लोहंडा या खरना: दूसरे दिन व्रती दिन भर का उपवास रखते हैं और शाम को अपने आसपास के लोगों को कच्चे खाने पर बुलाते हें। प्रसाद के रूप में इस दिन गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर, चावल के फर्रे, रोटी और कद्दू की सब्जी खिलाई जाती है। हालांकि इसमें नमक और चीनी का प्रयोग नहीं होता। इसके बाद व्रती कुछ नहीं खाते और बिना पानी के करीब 36 घंटे का व्रत करते हैं।
तीसरा दिन
संध्या अर्घ्य (शाम का प्रसाद): छठ पूजा का तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पूरे दिन पूजा पाठ करने के बाद शाम को प्रसाद तैयार किया जाता है। उसके बाद इस प्रसाद को एक बांस की टोकरी में रखा जाता है। इस टोकरी में तमाम तरह के प्रसाद का ठेकुआ, नारियल आदि शामिल होता हैं। यह अर्घ्य किसी नदी या तालाब या किसी स्वच्छ जल के निकट ही दिया जाता है।
चौथे दिन
बिहनिया अर्घ्य: छठ पूजा के आखिरी दिन भक्त फिर से नदी या किसी जल निकाय के तट पर इकट्ठा होते हैं और फिर उगते सूर्य को प्रार्थना और प्रसाद चढ़ाते हैं। प्रसाद चढ़ाने के बाद भक्त अदरक और शक्कर या मीठी चीज खाकर अपना व्रत खोलते हैं।