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Deepawali-Dhanteras: दिवाली से दो दिन पहले क्यों मनाते हैं धनतेरस, जानें भगवान कुबेर की पूजा का महत्व

Updated Oct 22, 2019 | 08:30 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

धनतेरस कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल धनतेरस 25 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा। 

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Dhanteras
मुख्य बातें
  • धनतेरस कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है
  • धार्मिक ग्रंथों के अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था
  • धन संपत्ति की कामना के लिए इसे धनतेरस के रूप में मनाया जाता है

हिंदू धर्म में धनतेरस का बहुत अधिक महत्व है। हर साल धनतेरस का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन से दीपावली की शुरूआत होती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था। इसलिए धन संपत्ति की कामना के लिए इसे धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।

धनतेरस कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल धनतेरस 25 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन धन के देवता कुबेर और माता लक्ष्मी की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। लोग अपने घरों में भगवान की प्रतिमा स्थापित करते हैं और पूजा सामग्री भगवान कुबेर को अर्पित करने के बाद तिजोरी और अन्न भंडारों में रखते हैं।

दिवाली से दो दिन पहले मनाते हैं धनतेरस
शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी तिथि को भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन के दौरान हाथों में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसके दो दिन बाद माता लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इसलिए दीवाली से दो दिन पहले कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है और भगवान कुबेर एवं माता लक्ष्मी की एक साथ पूजा की जाती है।

धनतेरस कथा
राजा बलि के आतंक से सभी देवता गण भयभीत थे। देवताओं को भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु वामन का अवतार लेकर बलि के पास गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि दान करने के लिए कहा। जब बलि कमण्डल से जल लेकर संकल्प लेने लगा तब उसे भूमि दान करने से रोकने के लिए असुरों के गुरु शुक्राचार्य कमण्डल में लघु रुप धारण करके प्रवेश कर गए। 

तब वामन के रूप में भगवान विष्णु ने अपने हाथ में रखे कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गयी। इसके बाद राजा बलि ने वामन को तीन पग भूमि दान कर दिया। इस तरह बलि द्वारा छीनी गयी सभी संपत्ति देवताओं को वापस मिल गयी। उस दिन कृष्ण त्रयोदशी थी और देवताओं की संपत्ति बढ़कर दो गुनी हो गयी। तभी से धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

इस पौराणिक मान्यता के चलते प्राचीन काल से ही कृष्ण त्रयोदशी के दिन धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इसका बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व है और धनतेरस पर पूजा करने से धन धान्य में बढ़ोत्तरी होती है।

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