लोग अपने घरों में सुख-शांति बनाए रखने के लिए सत्यनारायण भगवान की पूजा करते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की मुर्ति को स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है। हर महीने की पूर्णिमा को सत्यनारायण भगवान की पूजा का अलग महत्तवन है। वहीं इस बार माघ पुर्णिमा 8 फरवरी को है। ऐसे में कहा जाता है कि इस दिन कथा सुनने से सम्पन्नता का वरदान मिलता है। आज हम आपको इसकी कथा के बारे में बताएंगे।
एक समय की बात है श्री हरि से जब ऋषियों ने पूछा हे प्रभु इस कलयुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है। तथा उनका उद्दार कैसे होगा। जिससे थोड़े समय में ही पुण्य मिले और मनोवांछित फल भी मिल जाए। इस प्रकार की कथा सुनने की इच्छा रखते हैं। जिसपर श्री हरि कहते है कि आप सभी ने प्राणियों के हित की बात बोली है। इसलिए मैं एक ऐसे व्रत के बारे में बताउंगा जो सबसे श्रेष्ट है। साथ इसे करने से मनुष्य अपनी मनोकामना को पूर्ण कर सकता है। उन्होंने बताया कि सत्यनाराणय भगवान की कथा सुनने और उनकी पूजा करने से मनुष्य अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता है।
व्रत कथा
काशीपूरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था। एक दिन भगवान बूढ़े ब्राह्मण के वेश उनके पास भिक्षा मांगने गए। निर्धन ब्राह्मण अपने कुटिया में थे, तभी उन्होंने बूढ़े ब्राह्मण को देखा और उनसे गरीबी और दुख से छुटकारा पाने के लिए उपाय बताने को कहा। इस बूढ़े ब्राह्मण ने उन्हें सत्यनारायण भगवान की पूजा अर्चना करने के लिए कहा। उन्होंने निर्धन ब्रह्माण को कहा कि सत्यनारायण भगवान की पूजा और व्रत करो इससे सभी दुखों से छुटकारा पा लोगे। उन्होंने निर्धन बह्माण को बताया कि व्रत के दौरान ही नहीं बल्कि पूजा के समय भी भगवान के लिए एक धाराणा होनी चाहिए। पूजा इस प्रकार करे जैसे सत्यनारायण भगवान आपके पास ही विराजमान हैं।
इस कथा में बताया गया है कि जैसे लकड़हारा, गरीब ब्राह्मण, उल्कामुख, गोपगणों ने सुना कि यह व्रत सुख, सौभाग्य, संपत्ति सब कुछ देने वाला है तो सुनते ही श्रद्धा, भक्ति तथा प्रेम के साथ सत्यव्रत का आचरण करने में लग गए और फलस्वरूप सुख भोगकर परलोक में मोक्ष के अधिकारी हुए।
एक साधु वैश्य ने भी यही प्रसंग राजा उल्कामुख से सुना, किंतु उसका विश्वास अधूरा था और श्रद्धा में कमी होने के कारण उसने मन में प्रण लिया कि संतान प्राप्ति पर सत्यव्रत-पूजन करूंगा। समय बीतने पर उसके घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। पत्नी ने व्रत की याद दिलाई तो उसने कहा कि कन्या के विवाह के समय करेंगे। समय आने पर कन्या का विवाह भी हो गया किंतु उस वैश्य ने व्रत नहीं किया। सभी वह अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए चला गया। वहां उसे चोरी के आरोप में राजा चन्द्रकेतु द्वारा दामाद सहित कारागार में डाल दिया गया। उसके अपने घर में भी चोरी हो गई। पत्नी लीलावती और पुत्री कलावती भिक्षावृत्ति के लिए विवश हो गई।
एक दिन कलावती ने किसी के घर श्री सत्यनारायण का पूजन होते देखा और घर आकर मां को प्रसाद दिया। तब मां ने अगले दिन श्रद्धा से व्रत-पूजन कर भगवान से पति और दामाद के शीघ्र वापिस आने का वरदान मांगा। श्री हरि प्रसन्न हो गए और स्वप्न में राजा को कह दिया कि वह दोनों बंदियों को छोड़ दे, क्योंकि वह निर्दोष हैं। राजा ने अगली सुबह उनका धन-धान्य तथा प्रचुर द्रव्य देकर उन्हें विदा किया। घर आकर पूर्णिमा और संक्रांति को सत्यव्रत का जीवन भर आयोजन करता रहा, परिणाम स्वरुप उसे सांसारिक सुख भोगकर मोक्ष प्राप्त हुआ।
इसी प्रकार एक बार राजा तुंगध्वज ने वन में गोपगणों को श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा, किंतु अपने अभिमान की वजह से राजा न तो पूजास्थल पर गया, न दूर से ही प्रणाम किया और न ही गोपगणों द्वारा दिया प्रसाद ग्रहण किया। परिणाम यह हुआ कि राजा के पुत्र, धन-धान्य, अश्व-गजादि सब नष्ट हो गए। राजा को फिर ये आभास हुआ कि विपत्ति का कारण सत्यदेव भगवान का निरादर है। तब उसे बहुत पश्चाताप हुआ। वह तुरंत वन में गया और गोपगणों को बुलाकर उनसे सत्यनारायण भगवान की पूजा विधि पूछी और बाद पूजा की भी। फिर उसने उनसे ही प्रसाद ग्रहण किया तथा घर आ गया। उसने देखा कि विपत्ति टल गई और उसकी सारी संपत्ति तथा जन सुरक्षित हो गए। राजा प्रसन्नता से भर गया और अपना सर्वस्व भगवान को अर्पित कर दिया।