- मां कूष्माण्डा देवी दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं
- देवी कि पूजा करने से निरोगी काया मिलती है
- धन-वैभव का कारक है देवी कूष्माण्डा
मां दुर्गा का कूष्माण्डा स्वरूप ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने वाला है और यही कारण है कि इनकी उपासना करने से सिद्धियों में निधियों की प्राप्ति होती है। साथ ही इंसान रोग, शोक और कष्टों से मुक्त होता है। मां की पूजा करने वाले को लंबी आयु के साथ यश-कीर्ति का भी लाभ होता है। अष्भुजा के नाम से भी देवी कूष्माण्डा जो जाना जाता है। कूष्माण्डा का मतलब होता है कुम्हड़ा, मां को इसकी बलि प्रिय है और इस कारण भी इनका नाम यह पड़ा है।
ज्योतिष में मां कूष्माण्डा का संबंध बुध ग्रह से है। नवरात्रि पर मां के इस स्वरूप की पूजा बहुत मायने रखती है क्योंकि देवी का यह स्वरूप इंसान के हर कष्टों का निवारण होता है। तो आइए देवी मां की पूजा विधि और उनके ध्यान,मंत्र और स्त्रोत के बारे में जानें।
ऐसे करें पूजा
देवी कूष्माण्डा योग और ध्यान की देवी मानी गई हैं। अन्नपूर्णा का स्वरूप होता है मां का। उदर की अग्नि को शांत करने वाली और मानिसक शांति कि देवी हैं मां कूष्माण्डा। देवी की पूजा में लाल रंगा का प्रयोग करना शुभकर होता है। यानी लाल फूल, वस्त्र, लाल प्रसाद और लाल ही रंग के श्रृंगार के सामान प्रयोग करें। माता की पूजा में मालपुए का भोग लगाएं और जो भी मंत्र या ध्यान का जाप करें वह मन में करें। इसके बाद देवी का मुख्य मंत्र 'ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः' का 108 बार जाप करें।
देवी को प्रसन्न करने के लिए इन मंत्र को भी जपें
या देवि सर्वभूतेषू सृष्टि रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
ध्यान वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥ भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्। कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥ पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्। मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥ प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्। कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्। जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥ जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्। चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥ त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्। परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥