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Safala Ekadashi Katha: सफला एकादशी के दिन सुनिए यह कथा, व्रत से मिलती है भगवान विष्णु की असीम कृपा

Updated Jan 09, 2021 | 06:02 IST

Saphala Ekadashi Vrat Katha in Hindi: हर वर्ष पौष महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को सफला एकादशी के तौर पर पूरे भारत में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा श्रद्धा भाव से की जाती है।

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सफला एकादशी 2020
मुख्य बातें
  • 9 जनवरी 2021 को मनाई जाएगी सफला एकादशी
  • पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है सफला एकादशी
  • इस दिन भगवान विष्णु की की जाती है पूजा

हिंदू मान्यताओं के अनुसार सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों को उनकी असीम कृपा प्राप्त होती है। 1 साल में 24 एकादशी पड़ती हैं यानी महीने में दो बार एकादशी को मनाया जाता है। महीने में पहली एकादशी कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है और दूसरी एकादशी शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है।

सफला एकादशी कब है (Saphala Ekadashi 2021 Date)

इस वर्ष 9 जनवरी 2021 को पौष महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी के दिन सफला एकादशी मनाई जाएगी। ऐसा कहा जाता है कि जो भी इस दिन व्रत करता है उसके सारे कष्ट दूर होते हैं और उसके सारे कार्य सफल होते हैं। मान्यताओं के अनुसार यह कहा जाता है कि यह व्रत तभी पूरा माना जाता है जब व्रत करने वाले भक्त रात में जागरण करते हैं। 

अगर आप सफला एकादशी का व्रत रख रहे हैं तो आपको यह प्रसिद्ध कथा जरूर सुननी चाहिए। 

सफला एकादशी कथा (Saphala Ekadashi 2021 Vrat Katha):

हिंदू धर्म में यह कथा बहुत प्रसिद्ध है और पद्म पुराण में इस कथा की व्याख्या की गई है। बहुत समय पहले चंपावती नगरी में महिष्मान नाम का राजा राज करता था। उस राजा के पांच बेटे थे लेकिन अक्सर उसके बड़े बेटे के कार्य उसे विवश कर देते थे। उसके बड़े बेटे का नाम लुम्भक था।

लुम्भक बहुत चरित्रहीन बालक था और वह हमेशा बुरे कार्य करता था। आए दिन वह देवताओं की निंदा करता था और उन्हें परेशान करता रहता था। उसके बढ़ते पापों को देखकर महिष्मान राजा हताश और परेशान रहने लगा। एक दिन राजा ने अपने बेटे को राज्य से बाहर निकालने का निर्देश दे दिया और लुम्भक जंगलों में जाकर वास करने लगा।

वह जंगलों में ठंड में भटक रहा था। पौष महीने के कृष्ण पक्ष की दशमी की रात वह कड़ाके की ठंड के वजह से सो नहीं पाया और सुबह तक वह मरने की कगार पर पहुंच गया था। सुबह जब सूर्य निकला और सूर्य के प्रताप की वजह से जब ठंड कम होने लगी तब वह उठा और जंगल में फल इकट्ठा करने के लिए निकल पड़ा। शाम को जब सूर्य अस्त होने लगा तब वह अपनी किस्मत को कोसना शुरू कर दिया और एक पीपल के पेड़ के पास जाकर अपने फलों को रख दिया। फलों को पीपल के पेड़ के पास रखते हुए उसने अपने मुंह से कहा कि भगवान विष्णु इन फलों की भेंट से खुश हों।

शाम के समय वह बढ़ती ठंड के वजह से वापस सो नहीं पाया और पूरी रात अपने दुखों को लेकर परेशान रहा। लुम्भक इस बात से अनजान था कि उसने एकादशी का व्रत पूरा कर लिया है। लुम्भक को इस व्रत का फल मिलने लगा और वह शुभ और अच्छे कार्यों में लीन हो गया। अपने बेटे को अच्छे कार्य करते हुए देख कर राजा ने अपना सारा राज्य पाठ उसे दे दिया और वह तप करने के लिए चला गया। कुछ दिनों बाद लुम्भक के घर में खुशखबरी आई, वह एक पिता बन गया था। उसने अपने बेटे का नाम मनोज्ञ रखा और जब उसका बेटा बड़ा हो गया तब वह अपना सारा राज्य पाठ उसे सौंप कर भगवान विष्णु के भक्ति में लीन होने के लिए चला गया। उसने अपने भक्ति से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर दिया था जिसके फलस्वरूप उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।

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