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Sharad Purnima: शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा को दें अर्घ्य, 13 गेहूं के दाने लेकर सुने यह व्रत कथा

Updated Oct 11, 2019 | 18:00 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाले शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) का पौराणिक महत्व है। इस दिन इष्ट देव की पूजा और व्रत कथा (Fast Story) जरूर सुननी चाहिए।

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Sharad Purnima
मुख्य बातें
  • शरद पूर्णिमा पर करें भगवान विष्णु और इष्ट की पूजा
  • शरद पूर्णिमा पर खीर के साथ तरबूज भी रखे जाते हैं
  • इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है

शरद पूर्णिमा 13 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन पूर्णिमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है और यही कारण है कि इस दिन लोग खीर बना कर खुले आसमान के नीचे रखते है, ताकि अमृत इस खीर में गिरे। इस खीर का औषधिय महत्व भी बहुत होता है। शरद पूर्णिमा को जागिरी पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। कहीं-कही पर इसे कौमुदी व्रत भी कहा जाता है।

शरद पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ ईष्ट देव की पूजा भी जरूर करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। आइए जानें कि शरद पूर्णिमा पर पूजा कैसे करें और व्रत कथा क्या है।

ऐसे करें शरद पूर्णिमा पर भगवान को प्रसन्न
शरद पूर्णिमा स्नान कर सबसे पहले अपने इष्ट देव को प्रणाम कर उनकी पूजा करें उसके बाद भगवान विष्णु, महालक्ष्मी और इंद्र भगवान की पूजा करें। पूजा में घी के दीपक जलाएं और धूप-दीप और पुष्प चढ़ा कर भगवान को प्रणाम करें। इसके बाद ब्राह्मणों को खीर खिला कर दक्षिणा दें। इस दिन जागरण करने वालों को मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है। मुख्यत: इस व्रत को महिलाएं ही करती हैं। इस दिन लकड़ी की चौकी पर सातिया बना कर पानी का लोटा भर कर उसके ऊपर रखा जाता है। फिर इसमें एक गिलास में गेहूं भरकर रखें और व्रत करने वाले को 13 गेहूं के दाने को लेकर हाथ में कथा सुननी चाहिए। रात में चंद्रमा को अर्घ्य जरूर दें और खीर बना कर उसे खुले आसमान के नीचे जरूर रखें। कुछ जगहों पर इस दिन तरबूज के दो टुकड़े करके भी खीर के साथ रखा जाता है।

जानें शरद पूर्णिमा की कथा
एक शरह में साहूकार कि दो बेटियां थीं। दोनों विवाहित थी और दोनों ही शरदपूर्णिमा का व्रत करती थीं, लेकिन छोटी बेटी व्रत कभी पूरा नहीं करती थी। बड़ी बेटी की हमेशा संतान होती थी, लेकिन छोटी बेटी को हमेशा मरी संतना ही होती थी। साहूकार ने एक पंडित से इसका कारण पूछा तो पंडित ने बताया कि छोटी बेटी व्रत पूरा नहीं करती। यदि ये पूरा व्रत करेगी तो उसे संतान की प्राप्ति होगी। छोटी बेटी ने व्रत किया और उसे पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन कुछ दिनों बाद ही वह मर गया। बच्चे के मरने पर उसन उसे एक कपड़े में लपेट कर एक पीढ़े पर बिठा लिटा दिया ओर अपनी बड़ी बहन को बुला लिया और उसे पीढ़ा दिया बैठने को जिसपर उसकी मरा संतान लेटा था। 

बड़ी बहन बैठने ही जा रही थी उसका घाघरा बच्चे को छू गया और बच्चा रोने लगा। यह देख कर उसकी बड़ी बहन ने छोटी बहन को कहा कि वह जानबूझ कर ऐसा कर रही थी ताकि उसके बैठने से बच्चा मर जाए और वह उसके लिए उसे दोषी बना दे। इस पर बहन ने कहा कि नहीं बच्चा पहले से मरा था वह उसके छुअन से बच्चे को जिंदा करना चाहती थी।

बहन ने कहा कि बहन तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का पुण्य सबको बताया और अधूरा व्रत करने का दुख भी बताया।

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