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Tulsi Vivah 2019 : जानें माता तुलसी ने क्यों दिया था भगवान विष्णु को श्राप, 'तुलसी विवाह' पर पढ़ें ये कथा

Updated Nov 04, 2019 | 07:37 IST |

Mata Tulsi or Vishnu Ji ka Vivah: इस वर्ष तुलसी विवाह का पर्व 9 नवंबर को मनाया जाएगा। हिंदू धर्म के पूरे रीति रिवाज से तुलसी माता का विवाह किया जाता है। 

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
Tulsi Vivah 2019
मुख्य बातें
  • प्रत्येक घर में तुलसी की पूजा की जाती है
  • पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ हुआ था
  • इस अवसर पर महिलाएं तुलसी विवाह का मंगल गीत भी गाती हैं

हिंदू धर्म में तुलसी का बहुत महत्व है। प्रत्येक घर में तुलसी की पूजा की जाती है। खासतौर पर कार्तिक मास में तुलसी की पूजा करना बेहद फलदायी होता है। इसी महीने में तुलसी माता का विवाह भी कराया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ हुआ था। इसलिए हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी माता का विवाह भगवान विष्णु के ही दूसरे स्वरुप शालिग्राम से किया जाता है।

इस वर्ष तुलसी विवाह का पर्व 9 नवंबर को मनाया जाएगा। हिंदू धर्म के पूरे रीति रिवाज से तुलसी माता का विवाह किया जाता है। उनका श्रृंगार करके चुनरी और माला पहनाया जाता है और सिंदूर लगाकर माता का विवाह संपन्न कराया जाता है। इस अवसर पर महिलाएं तुलसी विवाह का मंगल गीत भी गाती हैं। पुराणों के अनुसार तुलसी ने भगवान विष्णु को उनकी किसी गलती के कारण श्राप दिया था। आइये जानते हैं कि तुलसी ने भगवान विष्णु को क्यों श्राप दिया था।


माता तुलसी ने इस कारण दिया भगवान विष्णु को श्राप 
भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान शंकर ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया। उनके तेज से ही जलंधर की उत्पत्ति हुई। जलंधन की पत्नी वृंदा इतनी पतिव्रता थी कि उसके पति जलंधर को अद्भुत शक्तियां प्राप्त हो गयी थीं। जलंधर को कोई भी देवता परास्त नहीं कर पाता था इसलिए जलंधर को अपनी शक्ति पर अभिमान हो गया। घमंड के कारण वह वृंदा के पतिव्रता धर्म को नकारने लगा और खुद को शक्तिशाली साबित करने के लिए इंद्र को पराजित कर दिया।

जलंधर और भगवान शंकर के बीच युद्ध
जलंधर ने वैकुंठ पर आक्रमण करके भगवान विष्णु से देवी लक्ष्मी को छीनने की कोशिश की। तब माता लक्ष्मी ने जलंधर से कहा कि हम दोनों की उत्पत्ति जल से हुई है इसलिए हम दोनों भाई बहन हैं। इसलिए उसने देवी लक्ष्मी को छीनने की कोशिश नहीं की। जब उसे पता चला कि ब्रह्मांड में भगवान शंकर सबसे अधिक शक्तिशाली हैं तो वह कैलाश पर्वत पर आक्रमण कर दिया। भगवान शंकर को विवश होकर उससे युद्ध करना पड़ा।

हार के डर से कैलाश पर्वत से भागा जलंधर
जब भगवान शंकर ने जलंधर पर प्रहार किया तब प्रहार निष्फल हो गया क्योंकि जलंधर की पत्नी वृंदा के तप के कारण उसे अपार शक्ति प्राप्त हुई थी। इसके बाद जलंधर भगवान शिव का रुप धारण करके कैलाश पर्वत पहुंचा। वहां माता पार्वती से उसे देखते ही पहचान लिया। माता पार्वती ने क्रोधित होकर अपना अस्त्र उठाया और जलंधर पर प्रहार कर दिया। जलंधर जानता था कि माता पार्वती आदि शक्ति का स्वरुप हैं। इसलिए वह युद्ध किए बिना ही वहां से चला गया।

विष्णु ने देवी वृंदा का सतित्व किया नष्ट
इसके बाद माता पार्वती भगवान विष्णु के पास गईं और पूरी घटना का वर्णन करने लगी। तब भगवान विष्णु ने बताया कि जलंधर को अद्भुत शक्तियां प्राप्त हैं। इसके भगवान विष्णु जलंधर के भेष में उसकी पत्नी वृंदा के पास पहुंचे। वृंदा उन्हें पहचान नहीं पायी और अपना पति समझकर अंतरंग व्यवहार करने लगी। इससे वृंदा का तप टूट गया और भगवान शिव से जलंधर पर प्रहार करके उसका वध कर दिया। जब वृंदा को पता चला कि विष्णु ने उसके साथ छल किया है तब उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि एक दिन वह अपनी पत्नी से बिछड़ जाएंगे। इसी श्राप के कारण विष्णु अपने राम अवतार में पत्नी सीता से बिछड़ जाते हैं। 

भगवान विष्णु द्वारा अपना सतित्व भंग हो जाने के कारण देवी वृंदा ने आत्मदाह कर लिया। आत्मदाह के बाद उसी राख पर तुलसी का पौधा उगा। तुलसी को देवी वृंदा का ही स्वरुप माना जाता है। तभी से भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी को अनिवार्य रुप से शामिल किया जाता है।

इस तरह तुलसी के स्वरुप देवी वृंदा द्वारा भगवान विष्णु को श्राप देने के कारण यह कथा बहुत प्रचलित है और तुलसी विवाह के दिन यह कथा सुनायी जाती है।
 

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