हर साल मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती काफी धूमधाम से मनायी जाती है। इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान दत्तात्रेय की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के दिन प्रदोषकाल में भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। भगवान दत्तात्रेय को सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरुप माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय में गुरु और देवता दोनों समाहित हैं इसलिए इन्हें गुरुदेव दत्त भी कहा जाता है।
पुराणों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय बहुत विद्वान थे और उन्होंने चौबीस गुरुओं से शिक्षा दीक्षा प्राप्त की थी। इन्हीं के नाम पर दत्त सम्प्रदाय का उदय हुआ। दक्षिण भारत में भगवान दत्तात्रेय के अनेकों मंदिर हैं। मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर भगवान दत्तात्रेय का दर्शन पूजन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
तीन देवताओं के स्वरुप हैं भगवान दत्तात्रेय
हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय के तीन सिर और छह भुजाएं हैं। इनके अंदर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का संयुक्त रुप से अंश मौजूद है। मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनायी जाती है और इनके बालरुप की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पार्वती, माता लक्ष्मी और सावित्री इन तीनों देवियों को अपने पतिव्रत धर्म पर घमण्ड हो गया। जब नारद जी को पता चला तब उन्होंने इन देवियों के घमण्ड को तोड़ने के लिए इनकी परीक्षा ली जिससे भगवान दत्तात्रेय की उत्पत्ति हुई।
दत्तात्रेय जयंती कथा
नारद जी तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सावित्री के घमण्ड को दूर करने के लिए उनके पास गए और वहां देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे। तीनों देवियों ईर्ष्या से भर उठीं और अपने पतियों को अत्रि ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया के सतीत्व को भंग करने के लिए भेजीं। पत्नियों के जिद के आगे विवश होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश भिखारी का रुप धारण करके देवी अनुसूया की कुटिया के सामने भिक्षा मांगने गए। भिक्षा मिलने के बाद इन्होंने भोजन करने की इच्छा जतायी।
तब देवी अनुसूया ने इन देवताओं का सत्कार किया और थाली में भोजन परोसने लगी। लेकिन देवताओं ने कहा कि जब तक आप नग्न होकर भोजन नहीं परोसेंगी तब तक हम भोजन नहीं करेंगे। यह सुनते ही देवी अनुसूया गुस्से से भर उठीं और उन्होंने अपने पतिव्रत धर्म से बल पर उन्होंने तीनों की मंशा जान ली।
जब देवी अनुसूया ने ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवताओं पर छिड़का तब देवताओं ने बालरुप धारण कर लिया। फिर देवी ने तीनों को दूध पिलाया और उनका पालन पोषण करने लगी। कई दिनों तक देवता जब घर नहीं पहुंचे तब तीनों देवियों को चिंता होने लगी।
तब देवी ने माता अनुसूया से क्षमा मांगा। माता अनुसूया ने कहा कि इन्होंने मेरा दूध पीया है और ये लोग अब बाल रुप में रहेंगे। तब तीनों देवताओं ने अपने अंश को मिलाकर मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के दिन भगवान दत्तात्रेय की उत्पत्ति की। फिर माता अनुसूया ने तीनों देवताओं पर जल छिड़क कर उन्हें पूर्ण रुप प्रदान किया।
इस तरह प्रत्येक वर्ष भगवान दत्तात्रेय की जयंती बहुत धूमधाम से मनायी जाती है। इस दिन भगवान से जुड़ी कथा का पाठ किया जाता है और उनका पूजन अर्चन किया जाता है।