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'पेट पालने के लिए जरी का काम सीखा, बड़े भाई ने दी कुर्बानी': कठिन परिस्थितियों से लड़कर गोल्‍ड मेडल जीत लाए अचिंता शिउली

Updated Aug 01, 2022 | 20:09 IST

Achinta Sheuli personal life: कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में गोल्‍ड मेडल जीतने वाले अचिंता शिउली एक छोटे से गांव से आते हैं, जहां की आबादी महज 12,000 है। अचिंता ने कई मुश्किलों का सामना करके इतना लंबा सफर तय किया और देश का नाम रोशन किया।

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तस्वीर साभार:&nbspAP
अचिंता शिउली
मुख्य बातें
  • अचिंता शिउली ने कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स 2022 में गोल्‍ड मेडल जीता
  • अचिंता शिउली ने मुश्किलों से लड़कर यहां तक का सफर तय किया
  • अचिंता शिउली की सफलता में कई लोगों की मेहनत शामिल है

बर्मिंघम: रविवार की रात तक पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के देउलपुर गांव को कोई जानता भी नहीं था, लेकिन 12000 की आबादी वाले इस गांव का नाम आज सभी की जुबां पर है और इसका श्रेय राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतने वाले भारोत्तोलक अचिंता शिउली को जाता है। अचिंता ने 313 किलो वजन उठाकर अपने गांव का नाम खेलों के मानचित्र पर ला दिया है। इस गांव को जरी के काम के लिये जाना जाता है और अचिंता ने भी पेट पालने के लिये धागे और सुई के इस हुनर को सीखा।

राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद उन्होंने पीटीआई से बातचीत में कहा, 'हमारे गांव को जरी के काम के लिये जाना जाता है। मैं, मेरी मां और भाई भी ठेकेदारों के लिये कढाई का काम करते थे। काम सुबह साढे छह बजे शुरू होता था और देर शाम तक जारी रहता था।' उनके पिता जगत ट्रॉली रिक्शा चलाते थे और एक समय चार लोगों के परिवार में अकेले कमाने वाले थे। अचिंता जब 11 वर्ष के थे तब उनके पिता का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।

पतंग से लगा वेटलिफ्टिंग का शौक

उन्होंने कहा, 'हमारे लिये तो मानो सब कुछ रूक गया। हमने कभी इसकी कल्पना नहीं की थी और हम इसके लिये तैयार नहीं थे। हमें जरी का काम करना पड़ा। मेरी मां ने भी वह काम किया।' बचपन में पतंग पकड़ते पकड़ते उसकी रूचि भारोत्तोलन में पैदा हो गई। उन्होंने कहा, 'मुझे पतंगबाजी पसंद है और हर साल मकर संक्रांति पर मैं पतंग उड़ाता और पतंग कटने पर उन्हें दोस्तों के साथ लूटने दौड़ता था। एक बार पतंग पकड़ने की कोशिश में ही मैं व्यामागर (जिम का देसी रूप) पहुंच गया जहां मेरा बड़ा भाई वर्जिश कर रहा था। दादा के कोच को मेरी कलाई का काम बहुत पसंद आया और उन्होंने मुझे अगले दिन बुलाया।'

भाई ने दी कुर्बानी

अचिंता के भाई आलोक को लगा कि उनसे ज्यादा प्रतिभा उनके भाई में है तो उन्होंने अपना शौक कुर्बान कर दिया। अचिंता ने कहा, 'पहले मैं दादा के साथ अभ्यास के लिये जाता था, लेकिन मेरे भाई ने अपना करियर मेरे लिये छोड़ दिया। वह हर महीने पॉकेट मनी के तौर पर 600-700 रूपये देता था ताकि हमारा अभ्यास जारी रहे।'

अचिंता ने 2015 में जूनियर स्तर पर पदक जीता जिसके बाद उनकी तकदीर बदल गई। वह सैन्य खेल संस्थान से जुड़े और उसी साल उन्हें भारतीय शिविर में शामिल किया गया। फिर 2015 में राष्ट्रमंडल युवा चैम्पियनशिप और 2018 में एशियाई युवा चैम्पियनशिप भी जीती।