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मुंबई एयरपोर्ट के बाहर 73 दिन तक फंसा रहा, जानिए इस फुटबॉलर की दिल छू लेने वाली कहानी

Updated Jun 09, 2020 | 08:53 IST

Randy Juan Muller on Mumbai Airport: जब यह फुटबॉलर मुंबई एयरपोर्ट पहुंचा तो इंटरनेशनल फ्लाइट पर बैन का पता चला। वो एयरपोर्ट के बाहर फंसा रहा और उसकी जेब में केवल 1,000 से कुछ ज्‍यादा रुपए थे।

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रैंडी जुआन मुलर
मुख्य बातें
  • घाना के रैंडी जुआन मुलर मुंबई एयरपोर्ट के बाहर 73 दिन तक फंसे रहे
  • जुआन मुलर को लगा कि उनकी यही मौत हो जाएगी
  • मुलर को अब होटल में ठहराया गया है और उन्‍हें पहली फ्लाइट से घर भेजने का वादा किया गया है

मुंबई: घाना के फुटबॉलर रैंडी जुआन मुलर बीच मार्च में केरल की लोकप्रिय सेवन-ए-साइड सर्किट खेलने आए थे। उन्‍हें घाना की फ्लाइट पकड़ने के लिए थिरुसुर से ट्रेन में मुंबई आना था। वह थोड़े घबराए हुए थे। फैजल ने याद किया, 'शायद उसे महामारी के दौरान यात्रा करने को लेकर डर था। हमने उसे ढांढस बंधाया और कहा कि वे जल्‍द ही घर पहुंच जाएंगे। उन्‍होंने अगले साल मिलने का वादा करते हुए विदाई ली और लोकप्रिय हुए।' फैजल मुलर के क्‍लब ओरपीसी केचिरी के गोलकीपर हैं।

अब दो महीने हो चुके हैं और फैजल भी अपने घर नहीं पहुंचे, लेकिन वह पहले ही चर्चा में हैं। मुंबई एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद मुलर को अंतरराष्‍ट्रीय फ्लाइट के बैन के बारे में पता चला और उन्‍होंने खुद को फंसा हुआ पाया। उनके पास 1,000 से कुछ ज्‍यादा पैसे थे, जो उन्‍होंने छह महीने में बचाए थे।

लगा कि यही मर जाऊंगा

मुंबई पुलिस, सीआईएसएफ और एयरपोर्ट ऑथोरिटी की मदद से 24 साल के फुटबॉलर ने टर्मिनल के बाहर पार्क में अपना घर बनाया और वहां 73 दिन तक रहे। दो दिन पहले जब महाराष्‍ट्र के मंत्री आदित्‍य ठाकरे और बाद में घाना दूतावास के हस्‍तक्षेप से फुटबॉलर को नजदीक के होटल में ठहराया गया। मुलर ने कहा, 'उन्‍होंने मुझे पहली फ्लाइट से घर भेजने का फायदा किया। घर अब करीब है।'

मुलर को कम पैसों के साथ पहला दिन याद है। उन्‍होंने बताया, 'मुझे पुलिसवाले ने उठाया था। उन्‍होंने मुझे एयरपोर्ट से जाने को कहा। मगर मैं केरल नहीं लौट सकता था क्‍योंकि ट्रेन रद्द थी। मैं होटल नहीं जा सकता था क्‍योंकि मेरे पास पैसे नहीं थे। मुझे लगा कि यहीं मर जाऊंगा।' मुलर ने एयरपोर्ट के पास का चक्‍कर लगाया और एक साफ सुथरी खुशबूदार जगह पर जम गए, जहां उन्‍हें पुलिस भी आसानी से नहीं ढूंढ सकती थी। मगर उन्‍हें भी इस बात का कम ही अंदाजा था कि ढाई महीने से ज्‍यादा समय के लिए यही जगह उनका घर बन जाएगी।

मुलर ने कहा, 'अब मुझे ऐसा महसूस होता है कि यह उनमें से सबसे ज्‍यादा खूबसूरत जगह है, जिस पर मैं सोया हूं। खुशबू, तारे और दोस्‍ताना लोग।' एक बार ही उन्‍हें इस जगह से हटना पड़ा था जब पिछले सप्‍ताह निसागरा तूफान आया था। सीआईएसएफ उन्‍हें एक सुरक्षित केविन में लेकर गए।

फोन पर देखी हिंदी फिल्‍में

तब तक पुलिसवालों और सीआईएसएफ के जवानों से मुलर की अच्‍छी बातचीत हो चुकी थी। मुलर ने कहा, 'हम फोन पर हिंदी फिल्‍म देखते हैं। मैं उन्‍हें घाना और अपने गृहनगर की कहानी सुनाता हूं, जो एक्‍रा से कुछ घंटे की दूरी पर है। हम राजनीति, खेल और धर्म के बारे में घंटों बात करते हैं। मेरा फोन खराब हो गया तो उन्‍होंने मुझे नया सेलफोन दिया।'

मुलर ने आगे कहा, 'परिवार से करीब 20 दिन तक बिलकुल संपर्क नहीं हुआ, जो मेरे लिए किसी सदमे से कम नहीं था। जब मैंने उन्‍हें आखिरकार फोन किया, तो सबने कहा कि उन्‍हें लगा कि मैं मर गया हूं। जो आनंद मैंने उनकी आवाज में पाया, उससे मेरे में ऊर्जा भर गई। मैंने एक बार अपने आप से कहा, मैं घर वालों को दोबारा देखूंगा भले ही मुझे भूखा क्‍यों न रहना पड़े।'