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अखबार बेचने से लेकर 'खेल रत्न' हासिल करने तक..आज इस खिलाड़ी पर हर भारतीय को गर्व होगा

Updated Aug 27, 2020 | 18:53 IST

Mariyappan Thangavelu to get Khel Ratna: भारतीय पैरालंपियन मरियप्पन थांगावेलु को 29 अगस्त को जब राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा तब पूरा देश गर्व महसूस करेगा।

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तस्वीर साभार:&nbspTwitter
Mariyappan Thangavelu, मरियप्पन थंगावेलु
मुख्य बातें
  • राष्ट्रीय खेल पुरस्कार 2020
  • पैरालंपियन मरियप्पन थंगावेलु को सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न
  • कठिन रहा थंगावेलु का सफर, मुश्किलों से भरा रहा जीवन

नई दिल्लीः पैरालंपिक स्वर्ण पदकधारी मरियप्पन थांगावेलु के लिये अखबार बेचने वाले हॉकर से लेकर 'खेल रत्न' तक का सफर काफी चुनौतीपूर्ण रहा है और जब वह खेलों में से आने से पहले की जिंदगी के बारे में सोचते हैं तो अब भी उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। रियो पैरालंपिक में पुरूषों की ऊंची कूद में स्वर्ण पदक जीतने वाले थांगावेलु इस साल देश के शीर्ष सम्मान के लिये चुने गये पांच खिलाड़ियों में शामिल हैं। कोविड-19 महामारी के चलते 25 साल के इस एथलीट को 29 अगस्त को वर्चुअल समारोह में इस सम्मान से नवाजा जायेगा।

पांच साल की उम्र में हुई थी दुर्घटना

थांगावेलु को अब भी विश्वास नहीं होता कि स्थायी विकलांगता के बाद उन्होंने यहां तक का सफर तय कर लिया है। पांच साल की उम्र में एक बस उनके दायें पैर को घुटने के नीचे से कुचलकर चली गयी थी। उन्होंने पीटीआई-भाषा को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘‘2012 से 2015 तक तीन वर्षों तक परिवार को चलाने के लिये मैंने अपनी मां की मदद के लिये सबकुछ किया जो मैं कर सकता था। मैं सुबह को अखबार हॉकर था और दिन में निर्माण स्थलों पर दिहाड़ी मजदूर।’’

ये कल की बात लगती है

तमिलनाडु में सेलम जिले के थांगावेलु ने कहा, ‘‘समय कैसे बीत जाता है, मुझे सोचकर यह कल की बात लगती है। उन दिनों की याद करके मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यहां तक पहुंच जाऊंगा।’’ जकार्ता में 2018 एशियाई पैरा खेलों में कांस्य पदक जीतने वाले थांगावेलु अगले साल तोक्यो पैरालम्पिक की तैयारियों के लिये भारतीय खेल प्राधिकरण के बेंगलुरू केंद्र में ट्रेनिंग कर रहे हैं। उनका छोटा भाई कानून की पढ़ाई कर रहा है और उनकी बहन की शादी हो गयी है।

पिता छोड़ गए थे, अखबार बेचकर कमाए 200 रुपये

थांगावेलु जब छोटे थे तो उनके पिता परिवार को छोड़कर चले गये थे, जिससे उनकी मां के ऊपर घर की जिम्मेदारी आ गयी और फिर बाद में उन्होंने घर चलाने में मां की मदद करनी शुरू की। उन्होंने कहा, ‘‘इन तीन वर्षों में मैं अपने घर से दो से तीन किलोमीटर चलकर अखबार डालता था। इसके बाद मैं निर्माणाधीन जगहों पर जाता था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे हर दिन 200 रूपये मिलते थे। मां की मदद के लिये मुझे यह करना पड़ता था जो दैनिक मजदूर के तौर पर काम करने के अलावा सब्जियां बेचती थी।’’

ऐसे बने खिलाड़ी

उनके मौजूदा कोच आर सत्यनारायण ने थांगावेलु की काबिलियत देखी और वह उन्हें बेंगलुरू ले गये। थांगावेलु जब स्कूल में पढ़ते थे, तभी उन्हें खेलों के बारे में पता चला था। वर्ष 2013 में सत्यनारायण ने राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उनकी प्रतिभा को देखा, तब वह 18 साल के थे। दो साल बाद थांगावेलु को बेंगलुरू लाया गया और फिर इतिहास बन गया।

अब पैसों की दिक्कत नहीं

वर्ष 2016 पैरालम्पिक के बाद थांगावेलु ने अलग अलग जगह से मिले पैसे से जमीन खरीदी। 2018 में उन्हें साइ ने ग्रुप ए पद का कोच बना दिया।थांगावेलु ने कहा, ‘‘मेरा परिवार वित्तीय रूप से अब काफी बेहतर है। मैं अब साइ कोच हूं और टॉप्स योजना का हिस्सा भी हूं। जहां तक मेरी ट्रेनिंग का संबंध है तो मुझे कोई परेशानी नहीं है।’’

थांगावेलु ने पिछले साल दुबई में आईपीसी विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की टी-42 ऊंची कूद स्पर्धा में तीसरा स्थान हासिल कर तोक्यो पैरालम्पिक के लिये क्वालीफाई किया। उनका लक्ष्य तोक्यो पैरालम्पिक (24 अगस्त से पांच सितंबर 2021) में एक और स्वर्ण पदक जीतना और अपनी स्पर्धा में विश्व रिकार्ड बनाना है।