- समय के साथ टीकों के असर में आ रही है कमी- द लैंसेट रिपोर्ट
- 'टीका लेने या ना लेने वालों में संक्रमण का खतरा एक समान'
- 'टीका के बाद भी कोरोना संक्रमण का खतरा यानी वायरस लगातार बदल रहा है अपना रूप'
कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीन सबसे बड़ा हथियार है, हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग को अपनाने की सलाह वैक्सीनेशन के बाद भी दी जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि वैक्सीनेशन क्या सिर्फ कवच है या पूर्ण कवच। इस संबंध में द लैंसेट का कहना है कि यह बात सही है कि वैक्सीनेशन से फायदा है लेकिन पूर्ण कवच नहीं मिलता। करीब एक वर्ष के शोध के बाद पाया गया है कि जिन लोगों ने वैक्सीन को दोनों डोज ली है उनमें भी कोरोना होने के 38 फीसद चांस रहते हैं हालांकि उन्हें अस्पताल जाने की नौबत नहीं आती है।
समय के साथ टीकों के असर में कमी
द लैंसेट की रिपोर्ट में जिक्र है कि समय के साथ टीकों का असर घटता है। मसलन फाइजर और एस्ट्राजेनेका पर अध्ययन किया गया और पाया गया कि एक महीने तक फाइजर 88 फीसद और एस्ट्राजेनेका 77 फीसद प्रभावी है। लेकिन पांच महीने बाद असर 74 फीसद और 67 फीसद हो जाता है।
कोरोना वायरस में म्यूटेशन बड़ी वजह
अध्ययन में सितंबर 2020 से लेकर सितंबर 2021 के बीच कुल 440 परिवारों की जांच की और पाया गा कि ऐसे लोग जिन्होंने कोरोना टीका के दोनों डोज लिए थे उनमें संक्रमण का खतरा कम था। लेकिन वो पूरी तरह सुरक्षित नहीं थे। जानकारों का कहना है कि इससे पता चल रहा है को कोरोना वायरस खुद को म्यूटेट कर रहा है और उसकी वजह से कोरोना संक्रमण से पूरी तरह से मुक्ति नहीं मिल पा रही है।