नई दिल्ली : अंतरिक्ष में कई रहस्य हैं, जो लोगों को हैरान करते हैं। खगोलविद लगातार इनकी खोज में जुटे होते हैं और उनके माध्यम से आकाशगंगा को लेकर हम तक कई जानकारियां पहुंचती हैं। अब एक ब्लैकहोल को लेकर रहस्य गहरा गया है। आमतौर पर सुपरमासिव ब्लैकहोल किसी गैलेक्सी के केंद्र में पाए जाते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों को यह गैलेक्सी केंद्र में नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में इसे 'गुमशुदा गैलेक्सी' भी कहा जा रहा है। वैज्ञानिक लगातार इसकी खोज में जुटे हुए हैं।
यह सुपरमासिक ब्लैकहोल का भार सूरज के मास से 100 गुना अधिक माना जा रहा है। लेकिन ब्रहांड में सबसे विशाल समझे जा रहे इस ब्लैकहोल की गैलेक्सी केंद्र में गुमशुदगी वैज्ञानिकों को हैरान कर रही है। वे इसे नासा के हबल स्पेस टेलीस्कोप और चंद्रा एक्स रे ऑबजर्वेटरी के जरिये खोजने में जुटे हैं, लेकिन अब तक उन्हें कामयाबी नहीं मिली है। माना जा रहा है कि यह ब्लैकहोल अबेल 2261 के केंद्र में है, जो एक विशाल गैलेक्सी क्लस्टर है और हमारे ग्रह से करीब 2.7 अरब प्रकाश वर्ष दूर है।
अबूझ पहेली बना 'गुमशुदा ब्लैकहोल'
अबेल गैलेक्सी के केंद्र का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक 1999 और साल 2004 के बीच नासा के चंद्रा एक्स रे ऑब्जर्वेटरी से मिले आंकड़ों का अध्ययन कर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने चंद्रा एक्स रे ऑब्जर्वेटरी के 2018 के आंकड़ों का भी अध्ययन किया, जिसमें उन्हें एक संभावित कारण यह मिला कि सुपरमासिव ब्लैकहोल संभवत: गैलेक्सी केंद्र से बाहर निकल गया हो। हालांकि इसे एक बड़ी खगोलीय घटना के तौर पर देखा जाता है और इसलिए ऐसी संभावना जताई जा रही है कि संभवत: दो गैलेक्सी का विलय हुआ हो। क्योंकि ऐसी परिस्थिति में ही एक गैलेक्सी के ब्लैकहोल के दूसरे गैलेक्सी के ब्लैकहोल से मिलकर एक बड़ा ब्लैकहोल बना लेने की संभावना है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर दो ब्लैक होल का विलय हुआ होगा तो उन्होंने पूरे ब्रह्मांड में गुरुत्व तरंगें भी भेजी हों तो ऐसी संभवना बन सकती है कि ये तरंगें किसी एक ही दिशा में ज्यादा ताकतवर हों, जिसकी वजह से ब्लैकहोल दूर चला गया होगा। इसे 'रिक्वालिंग' (recoiling) ब्लैकहोल के तौर पर जाना जाता है। हालांकि वैज्ञानिकों को इस संबंध में अब तक कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला है और वे अब भी इसकी खोज में जुटे हैं कि क्या सुपरमासिव ब्लैकहोल्स का विलय हो सकता है और वे गुरुत्व तरंगे रिलीज कर सकते हैं। अब तक केवल छोटे ब्लैकहोल के विलय के लिए साक्ष्य सामने आए हैं।
कितना खतरनाक है ब्लैकहोल?
सुपरमासिव ब्लैकहोल की 'गुमशुदगी' को लेकर कई तरह की थ्योरी सामने आ रही है, जिनमें से एक यह भी है कि आकाशगंगा में होने वाले बदलवों का असर पृथ्वी पर भी हो सकता है। सुपरमैसिव ब्लैक होल को अनंत क्षमता वाला माना जाता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये कॉस्मिक वैक्यूम क्लीनर की तरह काम करते हैं। इसमें गुरुत्वाकर्षण इतना शक्तिशाली होता है कि जो भी ग्रह, उपग्रह, उल्का पिंड या अंतरिक्ष की वस्तुएं उसके रास्ते में आती हैं, वह उसमें समा जाती है। यह आशंका पृथ्वी के संदर्भ में भी जताई जाती है।
खगोलविदों का कहना है कि अगर गैलेक्सी में बदलाव होता है और विशाल ब्लैक होल सौरमंडल के ग्रह नेपच्यून के पास से गुजरता है तो पृथ्वी भी उसकी चपेट में आ सकती है। हालांकि फिलहाल इसे पृथ्वी से काफी दूर बताया जा रहा है और ऐसे में अभी इसे कोई खतरा नहीं है। अगर ऐसी कोई संभवना बनती भी है तो उसके 25 हजार प्रकाश वर्ष बाद ही सामने आने के आसार हैं। इस संबंध में नासा का कहना है कि ब्लैकहोल अंतरिक्ष में सितारों, चंद्रमाओं और ग्रहों को खाने के लिए नहीं आते, ऐसे में धरती के उसमें गिरने की संभावना नहीं है, क्योंकि कोई भी ब्लैकहोल सोलर सिस्टम या धरती के करीब नहीं है।
ब्लैकहोल यदि सूर्य की जगह आ जाता है तब भी धरती उसमें नहीं गिरेगी। हालांकि ब्लैकहोल में अगर सूर्य के समान या उससे अधिक गुरुत्वाकर्षण होता है तो पृथ्वी और अन्य ग्रह परिक्रमा के दौरान उसकी चपेट में आ सकते हैं, क्योंकि आकाशगंगा में होने वाले बदलाव पृथ्वी को गांगेय केंद्र (galactic centre) की ओर फेंक सकता है और ऐसी स्थिति में खुद को बचाने के लिए उसके पास कोई ताकत नहीं रह जाएगी। पर फिलहाल पृथवी सुरक्षित है और इसे लेकर ऐसी चिंताओं की कोई वजह नहीं है।