नई दिल्ली : विशाखापट्टनम में मक्के की खेती किसानों को खूब फायदा पहुंचा रही है। यहां खेतों में उगने वाले मक्के किसी रत्न से कम नहीं हैं। ये मक्के के दाने किसी रंगबिरंगे मोतियों से कम नहीं लगते हैं। अभिनव गंगूमल्ला और रेणु राव ने अपने खेतों में उगने वाले इन मक्कों के बारे में बताया। सात सालों की लंबी मेहनत के बाद इन दो किसानों ने स्थायी खेती पर एक नया कीर्तिमान हासिल किया है।
माणिक मोतियों जैसे मक्के की खेती की तकनीक इन्होंने नॉर्थ अमेरिका से ली है। ये दोनों किसान करीब 2013 से इस तकनीक को यहां की खेती पर लागू करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वे इस तरह की मक्के की खेती यहां पर करने में हर बार नाकाम साबित हो रहे थे।
2013 से ही ये इसमें लगातार नाकाम कोशिशें करते रहे लेकिन अब जाकर उन्हें इसमें सफलता मिली है। अब ये माणिक मोती वाले मक्के के साथ-साथ स्ट्रॉबेरी कॉर्न और पर्पल कॉर्न के मक्के भी उगाने में कामयाब हो गए।
टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए अभिनव गंगूमल्ला ने बताया कि उन्होंने विशाखापट्टनम के गीतम यूनिवर्सिटी से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक किया हुआ है। उन्हें कॉर्पोरेट की नौकरी में रुचि नहीं थी इसलिए उन्होंने स्थायी कृषि (sustainable farming) को अपने करियर के लिए चुना।
वे वेलनेस कोच के तौर पर जाने जाते हैं। उन्होंने 2010 में 'हैदराबाद गो ग्रीन' नामक एक स्टोर भी खोला था। 2014 में उसने अपने पार्टनर रेणु राव के साथ मिलकर स्थायी खेती की तरफ काम शुरू किया। उन्होंने अपने फार्म का नाम 'बियॉन्ड ऑर्गैनिक' दिया है। इसी जगह पर उन्होंने कॉर्न की खेती की शुरुआत की।
उसने बताया कि जब मैंने कॉर्न में रंगबिरंगे माणिक औऱ मोतियों के जैसे दाने देखे तो मेरी आंखों से आंसू छलक पड़े क्योंकि मैंने इसके लिए सात सालों की मेहनत की है। जब हमने इसे पकाकर देखा तो इसका कलर उसके बैद भी वैसा ही था। यह ना सिर्फ देखने में खूबसूरत बल्कि इसका स्वाद सामान्य कॉर्न से भी और ज्यादा अच्छा था।