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Google Doodle: जानिए कौन हैं कामिनी रॉय, जिनकी 155वीं जन्मदिन पर गूगल ने बनाया है खास डूडल

Updated Oct 12, 2019 | 08:36 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Today Google Doodle : सर्च इंजन गूगल आज भारत की पहली इंग्लिश ग्रेजुएट, कवयित्री और समाज सेविका कामिनी रॉय की 155वीं बर्थ एनीवर्सरी मना रहा है।

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गूगल डूडल 12 अक्टूबर (Google.com)
मुख्य बातें
  • भारत की पहली ब्रिटिश इंग्लिश ग्रेजुएट हैं कामिनी रॉय
  • कवयित्री भी थीं और महिला अधिकारों के काम करती थी
  • 12 अक्टूबर 1864 को को ब्रिटिश इंडिया की बकेरगंज जिले में हुआ था जन्म
  • 1929 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी ने जगततारिणी मेडल से सम्मानित किया

नई दिल्ली : गूगल आज भारत की पहली महिला राइट एक्टिविस्ट कामिनी रॉय की 155वीं जन्मदिन मना रहा है। महिला एक्टिविस्ट के अलावा वे एक बंगाली कवयित्री और शिक्षक भी थीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि वे भारतीय इतिहास में पहली ऐसी महिला रहीं जिन्होंने ब्रिटिश इंग्लिश में ग्रेजुएशन पूरा किया। 

12 अक्टूबर 1864 को ब्रटिश इंडिया के बकेरगंज जिले में उनका जन्म हुआ था। आज ये जगह बांग्लादेश के अंतर्गत आता है। कामिनी रॉय एक समृद्ध परिवार से आती है। उनके भाई कलकत्ता से मेयर चुना गया था, और उनकी बहन नेपाल रॉयल फैमिली में डॉक्टर का काम करती थी। 

कामिनी रॉय को मैथ में काफी रुचि थी, लेकिन इसके साथ ही वे बचपन से ही कविता लिखने में भी रुचि लेने लगी थी। 1886 में उन्होंने बेथुन कॉलेज से संस्कृत में ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी की और बीए ऑनर्स पूरा किया। कॉलेज के दिनों में वे एक दूसरी स्टूडेंट अबाला बोस से मिलीं।

अबाला बोस महिला शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए लड़ती थीं और विधवा महिलाओं के लिए सामाजिक कार्य करती थी। उनकी दोस्ती अबाला से जब हुई तो उन्होंने भी महिला अधिकारों के लिए काम करने का मन बना लिया। 

गूगल के मुताबिक ग्रेजुएशन के बाद कामिनी रॉय टीचर बन गईं और इसके बाद उन्होंने अपनी पहली कविता संग्रह किताब प्रकाशित की। इसके बाद उन्होंने कई कविता संग्रह निकाले। एक बार उन्होंने लिखा था- क्यों महिलाओं को घर पर ही बंधकर रहना चाहिए और समाज में उनके उचित अधिकारों से क्यों वंचित किया जाता है। 

वे 1926 बंगाली महिलाओं के लिए राइट टू वोट (वोट का अधिकार) को लेकर भी लड़ाई लड़ीं। अपनी शैक्षिक उपल्ब्धि के कारण कामिनी को 1929 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी के द्वारा जगततारिणी मेडल से भी सम्मानित किया गया। कामिनी रॉय ने 1933 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।