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Litti Chokha Fair: यहां लगता है 'लिट्टी-चोखा' का अनोखा मेला, काफी दिलचस्प है इसका इतिहास

Updated Nov 23, 2021 | 18:33 IST

बिहार के बक्सर में आयोजित इस खास मेले में 5 कोस में फैले स्थानों पर रात्रि विश्राम कर अलग प्रकार के पांच व्यंजन ग्रहण करने की परंपरा है जिसका अपना ही महत्व है।

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तस्वीर साभार:&nbspThinkstock
बिहार के बक्सर में लिट्टी-चोखा मेले का आयोजन
मुख्य बातें
  • बिहार के बक्सर जिले में हर साल लगता है 'लिट्टी-चोखा' मेला
  • मेले की शुरुआत 24 से नवंबर से होगी
  • श्रीराम से जुड़ी है लोककथा, दूर-दूर से देखने के लिए आते हैं लोग

Litti Chokha Fair in Buxar Bihar: भारत दुनिया के उन देशों में शुमार है, जहां सबसे ज्यादा त्योहार मनाए जाते हैं और उतने ही मेले लगते हैं। ये मेले भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परम्परा का अटूट हिस्सा हैं। बात चाहे गंगासागर मेला की करें, पुष्कर मेले की, सोनपुर के पशु मेले की या कुंभ मेले की सबकी ख्याति विश्व प्रसिद्ध है। मगर आज हम आपको एक ऐसे मेले के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका रिश्ता स्वाद के साथ-साथ प्रभु श्रीराम से भी है। महर्षि विश्वामित्र की धरती और 'मिनी काशी' के नाम से जाने वाले वाले बिहार के बक्सर में हर साल मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से पंचकोस मेले की शुरुआत होती है। 5 दिनों तक चलने वाले इस मेले को पंचकोस या 'लिट्टी-चोखा' मेले (Litti Chokha Fair) के नाम से जाना जाता है।

पंचकोस यात्रा मेला अपने आप में परंपराओं के लिहाज से बेहद अनूठा है कहा जाता है कि बक्सर में विश्वामित्र ऋषि के आग्रह पर आए श्रीराम ने जब ताड़का, सुबाहु और राक्षस का संहार कर लिया तब वह जिन महर्षियों का आर्शीवाद नहीं से ले पाए थे उनसे मिलने के लिए पांच दिनों की यात्रा कर पांच ऋषियों के आश्रम में गए, वहां रात्रि विश्राम किया और उनका दिया भोजन ग्रहण किया।

लोकमान्यताओं के मुताबिक ऋषियों ने श्रीराम के स्वागत में जिन व्यंजनों को खिलाया था उसी का अनुसरण करते आज भी उन्हीं पांचों स्थानों पर प्रसाद का वितरण होता और इस मेले में शामिल होने के लिए बिहार ही नहीं बल्कि इसके पड़ोसी राज्यों और नेपाल तक से लोग यहां आते हैं।

अहिल्या मंदिर से होती है पंचकोस मेले की शुरुआत

पंचकोस मेले की शुरुआत बक्सर के अहिरौली से होती है। मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम ने यहीं पर गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार किया था। यहां मेले के पहले दिन अहिल्या मंदिर के पास श्रद्धालु जुटकर पुआ पकवान खाते हैं और रात्रि विश्राम करते हैं। मेले के दूसरे दिन लोगों का पड़ाव अहिरौली से एक कोस दूर नदांव गांव पहुंचता है।

नारद पोखरा पर खिचड़ी और चोखा खाने की परंपरा

यहां नारद मुनि आश्रम के पास स्थित नारद पोखरा पर खिचड़ी और चोखा खाने की परंपरा है। मेले के तीसरे दिन श्रद्धालु भभुअर गांव में स्थित भार्गव ऋषि आश्रम के लिए रवाना होते हैं। यहां भार्गवेश्वर महादेव के मंदिर में दर्शन के बाद चूड़ा और दही खाने की परंपरा है। मेले के चौथे दिन श्रद्धालु भभुअर से एक कोस दूर स्थित बड़का नुआंव स्थित उद्दालक ऋषि के आश्रम पहुंचते हैं।

यहां सत्तू के साथ मूली सेवन करने की परंपरा है

पंचकोस मेले के अंतिम दिन श्रद्धालुओं का पड़ाव बक्सर का चरित्रवन होता है, यहां लिट्टी-चोखा महोत्सव से अनोखे मेले का अंत होता है। मान्यताओं के अनुसार बक्सर के चरित्रवन ( तब का- चैत्र रथवन) में ताड़का वध से प्रसन्न होकर महर्षि विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को दिव्यास्त्र दिए थे।

कोरोना काल में पहली बार आयोजित हो रहा मेला

इस साल मेले की विधिवत शुरुआत 24 नवंबर को अहरौली से होगी जिसका अंत 28 नवंबर को चरित्रवन में होगा। दो साल के लंबे इंतजार के बाद पंचकोसी मेले का फिर से आयोजन किया जा रह है लिहाजा भारी संख्या में लोगों के यहां पहुंचने की उम्मीद है। आयोजन समिति ने भी इस मेले को लेकर बड़े पैमाने पर तैयारियां की हैं, आयोजन समिति के अध्यक्ष महंत अच्युत्तप्रपन्नाचार्य जी महाराज ने लोगों से कोरोना के घटते मामलों के बावजूद भी कोविड नियमों का पालन करने की अपील की है।