- हर साल 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया जाता है
- सबसे पहले 1 जुलाई 1991 को पहला नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया गया था
- इस साल नेशनल डॉक्टर्स डे कोविड अस्पतालों और उनके डॉक्टरों को समर्पित है
National doctors day 2020 : हर साल 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया जाता है इंडियन मेडिकल असोसियेशन (IMA) ने सबसे पहले साल 1991 में इस दिन की शुरुआत की थी। इस दिन को मनाए जाने के पीछे उद्देश्य ये है कि उन डॉक्टर्स का धन्यवाद करना जो निस्वार्थ भाव और समर्पण भाव से रोगियों की सेवा करते हैं। डॉक्टर्स जो 24 घंटे मरीजों की सेवा में तत्पर रहते हैं उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए इस खास दिन को चुना गया था।
इस दिन भारत के जाने-माने फिजिशियन डॉक्टर बिधान चंद्र राय की पुण्यतिथि भी होती है। उन्हीं की याद में 1 जुलाई 1991 से हर साल नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया जाने लगा। 2020 में जिस तरह पूरे देश में कोरोना वायरस की महामारी फैली हुई है और ऐसे में डॉक्टर्स समुदाय जिस तरह से अपनी जान की परवाह किए बिना इसके मरीजों का इलाज कर रहे हैं खास तौर पर उनका तहे दिल से धन्यवाद करने का दिन है। इंडिया में इंडियन मेडिकल असोसियेशन के द्वारा इस दिन का आयोजन किया जाता है।
नेशनल डॉक्टर्स डे का महत्व
आईएमए के मुताबिक 2020 का नेशनल डॉक्टर्स डे का खास महत्व है। आईएमए और लेोकल ब्रांच का हर एक सदस्य लोकल एरिया में जाकर कोविड-19 को लेकर पैदा हुई स्थितियों पर बात करता है और बदलाव लाने की कोशिश करता है। डॉक्टर्स डे 2020 कोविड-19 महामारी के दौरान बनाए गए कोविड अस्पतालों और उनके डॉक्टरों को समर्पित है। जो भी हो जैसा भी हो इस मुश्किल दौर में हर तरह के प्रयास सराहनीय है।
नेशनल डॉक्टर्स डे 2020 की थीम है (Lessen the mortality of COVID 19) यानि कोविड 19 से होने वाली मृत्यु दर को कम करना। इसके जरिए असिम्पटोमैटिक हिपोक्सिया को लेकर जागरुकता फैलाना है। कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के चलते नेशनल डॉक्टर्स डे को इस बार फेस टू फेस मीटिंग और सेलिब्रेशन नहीं किया जाएगा। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए स्टेट लेवल वेबिनार और वर्चुअल मीटिंग्स आयोजित की जाएगी।
कौन थे डॉक्टर बिधानचंद्र राय
डॉक्टर बिधानचंद्र रॉय का जन्म 1 जुलाई 1882 को बिहार के पटना जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी मेडिकल की पढ़ाई कोलकाता से पूरी करने के बाद एमआरसीपी और एफआरसीएस की उपाधि लंदन से प्राप्त की। इसके बाद वे 1911 में कोलकाता आ गए यहां पर अपनी चिकित्सकीय पारी की शुरुआत की इसके बाद वे कोलकाता के ही मेडिकल कॉलेज में लेक्चरर बन गए। वे बाद में राजनीति में आ गए और आगे चलकर पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री भी बन गए। 80 साल की उम्र में 1962 में 1 जुलाई को ही उनका निधन हो गया।