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'जनाजे पर मेरे लिख देना यारों, मोहब्बत करने वाला जा रहा है'; एक साल पहले हमारे बीच से चले गए थे राहत इंदौरी

Updated Aug 11, 2021 | 06:30 IST

Rahat Indori: देश के मशहूर शायर राहत इंदौरी को हमारे बीच से गए हुए पूरा एक साल हो गया है। मोहब्बत के शायक राहत इंदौरी युवाओं में काफी लोकप्रिय थे।

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राहत इंदौरी

Rahat Indori Death Anniversary: जाने-माने शायर और कवि राहत इंदौर की आज पहली पुण्यतिथि है। 1 जनवरी 1950 को इंदौर में जन्मे राहत कुरैशी पिछले साल 10 अगस्त कोविड 19 पॉजिटिव पाए गए और उन्हें इंदौर के अरबिंदो अस्पताल में भर्ती कराया गया। अगले दिन 11 अगस्त 2020 को कार्डियक अरेस्ट से उनका निधन हो गया। अपनी शायरी के लिए राहत साहब युवाओं में काफी लोकप्रिय रहे। उनके शेर 'किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है', सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। उन्हें मोहब्बत का शायक कहा जाता था।

यहां पढ़ें राहत इंदौरी के 10 शेर...

अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है, ये सब धुंआ है, कोई आसमान थोड़ी है। लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद्द में, यहां पर सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है। मैं जानता हूं की दुश्मन भी कम नहीं लेकिन, हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है। हमारे मुंह से जो निकले वही सदाकत है, हमारे मुंह में तुम्हारी जुबां थोड़ी है। जो आज साहिब-इ-मसनद है कल नहीं होंगे, किराएदार है जाती मकान थोड़ी है। सभी का खून है शामिल है यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।
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किसने दस्तक दी ये दिल पर कौन है, आप तो अंदर हैं बाहर कौन है...



चरागों को उछाला जा रहा है, हवा पर रोब डाला जा रहा है। न हार अपनी न अपनी जीत होगी, मगर सिक्का उछाला जा रहा है। वो देखो मय-कदे के रास्ते में, कोई अल्लाह-वाला जा रहा है, थे पहले ही कई साँप आस्तीं में, अब इक बिच्छू भी पाला जा रहा है। मिरे झूटे गिलासों की छका कर, बहकतों को संभाला जा रहा है, हमी बुनियाद का पत्थर हैं लेकिन, हमें घर से निकाला जा रहा है। जनाजे पर मेरे लिख देना यारों, मोहब्बत करने वाला जा रहा है।
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बोला था सच तो जहर पिलाया गया मुझे,
अच्छाइयों ने मुझको गुनाहगार कर दिया

रूक रूक के लोग देख रहे हैं मेरी तरफ,
तुमने जरा सी बात को अखबार कर दिया
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ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था, 
मैं बच भी जाता तो इक रोज मरने वाला 


सख्त राहों में भी आसान सफर लगता है
ये मेरी मां की दुआओं का असर लगता है
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अड़े थे जिद पे के सूरज बनाके छोड़ेंगे, पसीने छूट गए एक दीया बनाने में
मेरी निगाह में वो शख्स आदमी भी नहीं, जिसे लगा है जमाना खुदा बनाने में
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मैं सांसें तक लूटा सकता हूं, उसके इक इशारे पर, मगर वो मेरे हर वादे को सरकारी समझता है
मैं इक इक लफ्ज की पहचान बन जाता हूं महफिल में, वो पागल मेरे इस फन को अदाकारी समझता है
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इससे पहले की हवा शोर मचाने लग जाए, मेरे अल्लाह मेरी खाक ठिकाने लग जाए
घेरे रहते हैं कई ख्वाब मेरी आंखों को, काश कुछ देर मुझे नींद भी आने लग जाए
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अपना आवारा सर पटकने को, तेरी देहली देख लेता हूं,
और फिर कुछ दिखाए दे या न दे, काम की चीज देख लेता हूं