तमिलनाडु : जनवरी के महीने में मकर संक्रांति के दौरान तमिलनाडु में जलीकट्टू का त्यौहार मनाया जाता है। इस साल जलीकट्टू के त्यौहार में 700 की संख्या में सांड़ ने हिस्सा लिया। जलीकट्टू त्यौहार एक तरह की प्रतियोगिता है जिसमें सांड़ को एक मैदान में इकट्ठा कर उनके बीच प्रतिष्पर्धा करवाई जाती है। ये मुख्य तौर पर दक्षिण के राज्यों में खासकर तमिलनाडु में प्रसिद्ध है।
तमिलनाडु के मदुरई में विशेषतौर पर मनाया जाता है। तमिलनाडु में 15 जनवरी से 31 जनवरी तक ये त्यौहार मनाया जाता है। मदुरई के पालामेडु से कुछ ताजा तस्वीरें सामने आई हैं जिनमें सांड़ों को प्रतिष्पर्धा में भाग लेते हुए देखा जा सकता है। आपको बता दें कि बैलों को काबू में करने की ये खेल प्रतियोगिता जो तमिलनाडु राज्य की एक परंपरा है बेहद जानलेवा होती है। हर साल जनवरी के महीने में मकर संक्रांति के बाद पोंगल के समय ये प्रतियोगिता आयोजित की जाती है जिसमें पूरे राज्यभर में हजारों बैल भाग लेते हैं।
हर साल सैकड़ों लोग इस खेल में घायल होते हैं और कईयों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है। इसी प्रकार कई बैल भी घायल हो जाते हैं। इस पर पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने काफी विरोध जताया है इतना ही नहीं इसमें जानलेवा खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट भी इस पर कानूनन प्रतिबंध लगा चुका है।
क्या होता है जलीकट्टू
बता दें कि इस खतरनाक खेल के लिए अक्सर बैलों को भूखा-प्यासा रख उन्हें अन्य कई तरह से परेशान करने की कोशिश की जाती है। उन्हें गुस्सा दिलाया जाता है इसके बाद उनके गुस्से को काबू में करने का प्रयास किया जाता है और इसी खेल को जलीकट्टू कहते हैं। इस खेल को मैदान में खेला जाता है जिसमें बड़ी संख्या युवक एक बैल के साथ मैदान में उतरते हैं और बैलों के साथ लड़ाई करते हैं कई बार बैलों के हमले में युवक गंभीर रुप से घायल भी हो जाते हैं।
इस दौरान प्रतिभागियों औऱ बैलों के बीच की घमासान को देखकर दर्शकों की सांसें थम जाती हैं। मैदान में एक तरफ जहां लोगों की भीड़ होती है वहीं दूसरी तरफ एक गुस्साया बैल उनकी तरफ हमला करने के दौड़ लगाता है इसी को काबू करने का खेल है जलीकट्टू। इसमें बैल को बांधकर, उसकी पूंछ पकड़कर या उसका सींग पकड़ कर उसे काबू में करने की कोशिश की जाती है। जो भी बैल को काबू करने में कामयाब हो जाता है उसे बैल के सींग पर बंधी पैसों की थैला इनाम में दी जाती है। पोंगल के दिन ये खेल खेला जाता है। इसमें जांबाज योद्धा ही भाग लेते हैं जिसमें बेकाबू बैलों को काबू में करने की क्षमता हो।
कैसे हुई इसकी शुरुआत
प्राचीन साहित्य में इसका नाम इरुथझुवुथल है। इसकी शुरुआत 2000 से भी पहले हुई है। शुरुआत में इस खेल की शुरुआत लड़की के लिए सुयोग्य वर की तलाश के रुप में हुई थी। जो भी व्यक्ति बैलों पर काबू पा लेता था, वहीं भावी वधू का जीवनसाथी चुना जाता था। स्पेनिश बुलफाइट के जैसे इस खेल में ध्यान रखा जाता है कि योद्धा को बिना किसी हथियार के मैदान में उतरना होता है। उन्हें बैलों पर बस काबू पाना होता है उन्हें जान से मारना नहीं होता है।