- महाराष्ट्र के येलेगांव में लोग दूध नहीं बेचते हैं, बल्कि जरूरतमंदों को बांट देते हैं।
- येलेगांव गावली के लोगों ने कभी दूध नहीं बेचा। गांव में लगभग हर घर में दुधारू मवेशी
- सरपंच शेख कौसर ने कहा कि दूध नहीं बेचने की परंपरा सभी धर्मों के ग्रामीण अपनाते हैं
औरंगाबाद। महाराष्ट्र में हिंगोली जिले के एक गांव के लोग खुद को भगवान कृष्ण का वंशज बताते हैं और दूध बेचते नहीं हैं बल्कि जरूरतमंद को मुफ्त में देते हैं। महाराष्ट्र के अनेक किसानों और नेताओं ने इसी महीने दूध के दाम बढ़ाने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था और सड़कों पर दूध फैलाया तक गया था, वहीं येलेगांव गावली के लोगों ने कभी दूध नहीं बेचा। गांव में लगभग हर घर में दुधारू मवेशी हैं।
येलेगांव की कहानी कुछ और ही
येलेगांव निवासी राजाभाऊ मंडाडे (60) ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘येलेगांव गावली का मतलब ही है दूधियों का गांव। हम खुद को भगवान कृष्ण का वंशज मानते हैं और इसलिए हम दूध नहीं बेचते।’’गांव में कम से कम 90 प्रतिशत घरों में गाय, भैंस और बकरी समेत अन्य मवेशी हैं और यहां दूध नहीं बेचने की परंपरा पीढ़ियों से चल रही है।
जरूरतमंदों को बांट दिया जाता है दूध
उन्होंने बताया कि जब ज्यादा दूध हो जाता है तो विभिन्न दुग्ध उत्पाद बनाये जाते हैं, लेकिन किसी को भी बेचा नहीं जाता और जरूरतमंदों को मुफ्त में बांट दिया जाता है।उन्होंने कहा, ‘‘गांव में जन्माष्टमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। गांव में एक कृष्ण मंदिर है। हालांकि कोविड-19 महामारी की वजह से इस बार सारे कार्यक्रम निरस्त कर दिये गये हैं।’’गांव के सरपंच शेख कौसर (44) ने कहा कि दूध नहीं बेचने की परंपरा सभी धर्मों के ग्रामीण अपनाते हैं।
उन्होंने बताया, ‘‘ गांव का कोई भी आदमी, चाहे हिंदू हो या मुसलमान या किसी अन्य धर्म से ताल्लुक रखने वाला हो, कोई भी अपने मवेशी का दूध नहीं बेचता।’’