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जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लगा ध्वज रोज क्यों बदला जाता है? क्या है दिलचस्प आध्यात्मिक प्रथा

Updated Mar 21, 2020 | 12:30 IST

Jagannath Temple Interesting Fact: पुरी के जगन्नाथ मंदिर से जुड़े कई रहस्य है। एक रहस्य यह भी कि आखिर मंदिर के गुंबद का ध्वज रोजाना क्यों बदला जाता है।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
ओडिशा में पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर में भगवान श्री कृष्ण, बलभद्र और देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है।
मुख्य बातें
  • ओडिशा में भुवनेश्वर के नजदीक है पुरी जगन्नाथ मंदिर पवित्र धाम
  • श्री जगन्नाथ मंदिर के गुंबद का ध्वज रोजाना शाम को बदला जाता है
  • यह धार्मिक प्रथा पिछले 800 वर्षों से चली आ रही है।

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है चार धामों से से एक पुरी धाम।  पुरी जगन्नाथ, जहां भगवान कृष्ण,बलभद्र और देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है। कुछ दिनों में जगन्नाथ मंदिर के ऊपर पवित्र ध्वज में आग लग गई जिसे लेकर ये मंदिर चर्चा में है। आग लगने का कारण यह बताया गया कि एक दीपक को रखे जाने की वजह से ऐसा हुआ। लेकिन फिलहाल मंदिर बंद है।

31 मार्च तक बंद है मंदिर

आपको बता दें कि कोरोना वायरस के प्रकोप के मद्देजनर  श्री जगन्नाथ मंदिर शुक्रवार से 31 मार्च तक श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया गया है। मंदिर के मुख्य प्रशासक कृष्ण कुमार ने बताया कि मंदिर के पुजारियों एवं सेवकों को मंदिर में पूजा करने की अनुमति होगी। मंदिर में श्रद्धालुओं के प्रवेश 20 मार्च से 31 मार्च तक के लिए रोक लगा दी गई है। मंदिर के अंदर पूजा अनुष्ठान आदि कार्य जारी रहेंगे।  

भगवान श्री गन्नाथ का मंदिर दुनिया में मशहूर

भगवान जगन्नाथ का मंदिर दुनिया में मशहूर है। इस मंदिर का आकर्षण अपने आप में अद्भुत है जहां दर्शन के लिए रोजाना लाखों श्रद्धालु आते हैं। यहां एक धार्मिक अनुष्ठान हर रोज होता है और वह है मंदिर के शिखर का ध्वज का बदला जाना। जानकारों के मुताबिक यह प्रथा पिछले 800 साल से चली आ रही है। मंदिर का ध्वज हर दिन एक निर्धारित रीति रिवाज के तहत बदला जाता है। 

रोजाना बदला जाता है मंदिर के गुंबद का ध्वज

मंदिर के गुंबद पर लगा ध्वज परिवर्तन रोज किया जाता है। यह रोजाना शाम को किया जाता है। यह ध्वजा समंदर की तरफ से आनेवाली हवाओं से लहराता रहता है। इस ध्वज या ध्वजा से जुड़ी एक थ बात यह भी है कि यह हवा के उल्टी दिशा में उड़ता है। पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर के उपर लगा यह ध्वज हवा की उल्टी दिशा में लहराता रहता है। ज्यादातर समुद्री तटों पर हवा समंदर से जमीन की तरफ जाती है लेकिन पुरी में ऐसा नहीं है यहां हवा जमीन से समंदर की तरफ जाती है जो अपने आप में एक रहस्य से कम नहीं है।

बदलने का जिम्मा चोला परिवार पर

यह 20 फीट का ट्रायएंगुलर ध्वज होता है जो हर रोज बदला जाता है । इसे बदलने का जिम्मा चोला परिवार पर है वह इसे 800 साल से करती चली आ रही है।  ऐसी पौराणिक मान्यता है कि अगर ध्वजा या ध्वज को प्रतिदिन नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों तक अपने आप बंद हो जाएगा।  जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर जो ध्वज लगा है वो काफी दूर से नजर आता है। मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है। इस चक्र को किसी भी दिशा से खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी ओर है। 

कैसे होती है यह प्रकिया?

ध्वज को लेकर एक व्यक्ति मंदिर की गुंबद पर जंजीरों के सहारे चढ़ता है। उससे पहले वह नीचे अग्नि प्रज्ज्वलित करता है। फिर धीरे-धीरे वह मंदिर के आखिरी गुंबद तक पहुंच जाता है। ध्वज लेकर वह सबसे उपर पहुंचता है। वहां पहुंचने के बाद पुराने ध्वज को वह धीरे-धीरे हटाने लगता है। उसके बाद वह नए ध्वज को धीरे-धीरे वहां लहराने यानी बदलने की प्रक्रिया होती है। कुछ ही देर में वह नए ध्वज को लहरा दिया जाता है। यह प्रक्रिया आम नागरिक तो बिल्कुल भी नहीं कर सकता है। यह वहीं कर सकता है जिसे रोजाना इस प्रकार के गुंबद पर चढ़ने का अभ्यास है। पूरी प्रक्रिया संचालित होने के बाद व्यक्ति पुराने ध्वज को लेकर नीचे उतर जाता है। चाहे आंधी-तूफान हो या बारिश, मंदिर के गुंबद पर ध्वज बदलने का यह धार्मिक रीति-रिवाज रोज शाम को संचालित होता है। कई श्रद्धालु दर्शन के बाद इस अद्भुत प्रक्रिया को देखने के लिए रुके रहते हैं। 

यह नगरी जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। यह वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। पुरी का उल्लेख महाभारत के वानपर्व में मिलता है। कूर्म पुराण, नारद पुराण, पद्मम पुराण में इस क्षेत्र का वर्णन मिलता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। फिर पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र धारण करते हैं। पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण दिशा में स्थित रामेश्‍वरम में विश्राम करते हैं। कहा जाता है कि द्वापर युग के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और पुरी के जगन्नाथ बन गए। जगन्नाथ का अर्थ है जगत के नाथ।