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'मत छोड़िए आशा का दामन'; जलाए रखिए उम्मीदों का दिया, तुम्हीं को खोलना होगा अपनी मुक्ति का द्वार

Updated Sep 10, 2021 | 06:36 IST

World Suicide Prevention: कई बार जीवन में ऐसे पल आते हैं जब लगता है कि सबकुछ खत्म हो गया है। यहां से वापसी करना मुश्किल होगा या नामुमकिन होगा। इसके बाद भी आपको उम्मीदों का दिया जलाए रखना होगा।

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विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस

आत्महत्या को रोकने के तरीकों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD) मनाया जाता है। पहली बार इस दिन को 10 सितंबर 2003 को मनाया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ मिलकर इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) ने एक पहल की शुरुआत की थी- आत्महत्या रोकथाम योग्य हैं। 

इस मौके पर कुछ लाइनें प्रस्तुत हैं, जो आपमें एक बार फिर जीवन के प्रति उत्साह भर सकती हैं:

मत छोड़िए आशा का दामन

माना कि, जिंदगी की ज़ंग, है बहुत कठिन

कल्पना से भी अधिक,

दुष्कर, दुरूह, दुर्गम

इसके रास्ते हैं- अनजान, पथरीले, भटकाने वाले

जहां हैं कदम-कदम पर वासना की फिसलन भरी पतली- पतली पगड़ंड़ियाँ

जिसने बचना है- लगभग नामुमकिन सा, कोई बिरला ही, रह पाता है शेष इस पर फिसलने से और जो कर पाता है ऐसा पा लेता है वो कामयाबी
वरना अधिकांश के हिस्से में आती हैं सिर्फ रपटन और बेहिसाब गुम चोटें

जिन्हें भोगने की बाध्यता और ज्यादा कर देती हैं मुश्किल- जीना

गलत रणनीति कर देती है कभी-कभी पूरी मेहनत को निरर्थक और कभी कोई दुर्घटना या भूल कर देती है सपनों को ध्वस्त

जिसे भाग्य की विडम्बना मान, कभी तो मन कर लेता है स्वीकार

तो कभी कर ही नहीं पाता, लाख समझाने, मनाने, के बाद भी

नहीं पच पाती हार, तोड़ देती है अंदर से 

नहीं समझ आता कोई रास्ता छा जाता है- चारों ओर घना अंधकार

नहीं दिखाई देता- कोई मुक्ति द्वार

हार मान कर, कर लेना आत्महत्या ही सूझता है एक मात्र उपाय

पर क्या ये उपाय है पा जाने का मुक्ति- समस्याओं से?

नहीं, बल्कि अन्य अनेक, कभी ना सुलझ सकने वाली, समस्याओं की जनक है- आत्महत्या 

मरने वाला चला तो जाता है और हो भी जाता हो समस्याओं से आज़ाद–तात्कालिक रूप से

लेकिन छोड़ जाता है अपने पीछे बेहिसाब दर्द, तकलीफ़ों की अंतहीन श्रृंखला

जो मर जाते हैं जीते जी ही, आत्म-हत्या- है ही नहीं कोई विकल्प

बल्कि डट के लड़ना ही है एकमात्र सही विकल्प

क्षणिक भावावेश, संताप या निराशा से प्रभावित होकर कर लेना आत्म-हत्या

है सच में उस अनादि, अनंत, अमर, अक्षत,आत्मा की हत्या

जब ना सूझे कोई मार्ग, संसार भर के दुःख ड़ाल लें ड़ेरा तो भी खुला होता है कोई-ना-कोई मुक्ति-द्वार 

जिसका ना दिखना है- त्रुटि हमारी, जब घिर आये चारों ओर अँधेरा ग़म का, कितने भी बुरे क्यों न हों हालात

तो भी मत छोडिये दामन उम्मीदों का रखिये भरोसा अपनी मेहनत और उस परवरदिग़ार पर

जो बैठा ही है देने को प्रतिफल आपकी मेहनत का तो फिर घबराना क्यों? 

कुछ भी क्यों ना हों हालात मत छोड़िये- आशा का दामन, आयें कितनी भी आँधियाँ

लेकिन जलाये रखिये- उम्मीदों का दिया, कोई नहीं आयेगा- खोलने, वो तो खोलना होगा स्वयं तुम्हीं को ही अपनी मुक्ति का द्वार
 
डॉ. श्याम सुन्दर पाठक 'अनन्त'

(लेखक उत्तर प्रदेश वस्तु एवं सेवा कर विभाग में असिस्टेंट कमिश्नर पद पर कार्यरत हैं और एक प्रसिद्ध लेखक व मोटीवेशनल स्पीकर भी हैं)