- दिव्यांगों के लिए आत्मनिर्भरता का साधन बना एक दिव्यांग
- वाराणसी के रहने वाले संतोष कभी ईंट के भट्टे पर किया करते थे काम
- आज संतोष के पास है एक बेकरी, कई महिलाओं और पुरुषों को दिया है उन्होंने रोजगार
वाराणसी: काम की तलाश में संघर्ष करते दिव्यांग संतोष कुमार ने अपनी कमजोरी को ताकत बनाया और दूसरे लोगों का सहारा बन गए। आज वह 20 दिव्यांगों को रोजगार दे रहे हैं। खुद अपाहिज होते हुए भी दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं। दिव्यांगता मन से होती है। अगर मन से खुद के दिव्यांग होने की बेचारगी का भाव निकाल दें तो एक दिव्यांग भी अमूमन वह सब कुछ कर सकता है जो एक सामान्य आदमी। इसे साबित किया है प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के युवा दिव्यांग संतोष ने।
संघर्षों से भरा रहा है संतोष का जीवन
ग्रेजुएशन के बाद नौकरी की तलाश में जुटे। गुजारा करना था तो कभी बैट्री की दुकान पर काम किया तो कभी ईंट भट्ठे पर। संघर्ष के दौरान निराश होने की जगह कुछ ऐसा करने की ठानी जिसमें उनके जैसे और लोगो को भी रोजगार मिल सके। इस लक्ष्य को लेकर उन्होंने रिश्तेदारों से कर्ज लेकर छह लाख की लागत से बेकरी की एक इकाई लगाई। आज इसमें करीब 20 दिव्यांग काम करते है। इस साल इस संख्या को बढ़ाकर 50 तक करने का लक्ष्य है। इकाई मे टेस्टी ब्रेड के नाम से तैयार होने वाले उत्पाद के बनाने से लेकर विपणन का काम दिव्यांग ही करते हैं। जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी दूर उनका आयर गांव है। इसकी खसियत है कि दिव्यांग इसे बनाते और बेंचते है। टेस्टी ब्रेड के नाम से चल रही बेकरी में पाव रोटी, ब्रेड, क्रीम रोल जैसे अनेक उत्पाद बनते हैं।
शुरू किया अपना काम
उन्होंने आईएएनएस को बताया कि इसकी प्रेरणा महिलाओं के एक समूह से मिली। उन्होंने बताया कि हमारे क्षेत्र में करीब 100 लोग दिव्यांग होंगे। हमारे लोग रोजी-रोटी के लिए बहुत परेशान होते है। तभी यह कारखाना शुरू किया है। अभी इसमें दिव्यांगों को 300-400 रुपये रोज मिल जाते हैं। सेल्स मैन के लिए ट्राईसाइकिल में ही ठेला बना दिया गया है। इसमें सामान लादकर वह आराम से अपना काम कर लेते हैं।
आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास
संतोष ने कहा कि दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने का पूरा प्रयास है। वो बताते हैं कि 25 दिसंबर 2019 से चलाए जा रहे कारखाने में बहुत संघर्ष करना पड़ा। शुरुआत में इसे बनाने के लिए लोग कर्ज देने को तैयार नहीं थे। लेकिन बाद में विश्वास करके दिया। अब करीब ढाई लाख रूपये का कर्ज बचा है। जिसे चुकाना है। उनके कारखाने में अब तक 20 दिव्यांग रोजगार से जुड़ गए हैं। उनकों स्वरोजगार भी सिखाया जा रहा है, ताकि खुद आत्मनिर्भर हो सकें। उनका टारगेट करीब 400 से 500 तक रोजगार देने का है। बेकरी के कारखाने में एक शिफ्ट में 8-8 लोग काम करते है। दिन में महिलाएं और रात में पुरूषों को काम करने को दिया गया है। यह लोग करीब 1200 पीस माल तैयार कर लेते हैं। इसके बाद इसे बिक्री के लिए ले जाते हैं। इनकी आय ज्यादा माल बेचने से बढ़ भी जाती है।
संतोष ने अपनी मारुति 800 कार को भी अपने हिसाब से मोडिफाई करके उसके ब्रेक गियर क्लच सब अपने हाथों के पास कर लिया है। जिससे वह आसानी से चलाकर बनारस की सड़कों पर माल बेच सकें। इसके अलावा संतोष दिव्यांग और गरीब बच्चों को शिक्षा देने के लिए किरन विकलांग समाज कल्याण संस्थान नामक विद्यालय भी चलाते हैं। इसमें करीब 40 से 50 बच्चे शिक्षित होकर रोशनी का उजियारा फैला रहे हैं।
गरीबों को भी कराते हैं भोजन
कोरोना संकट में दिव्यांग संतोष अपनी बेकरी में बने ब्रेड और क्रीम रोल रोजाना गरीबों में बांटते रहे है। झोपड़ पट्टी में रहने वालों को तिरपाल और पन्नी भी उपलब्ध कराई है।केंद्रीय सलाहकार बोर्ड दिव्यांगजन सशक्तीकरण के सदस्य डॉ. उत्तम ओझा ने बताया, 'संतोष कुमार दिव्यांगों को रोजगार देकर आत्मनिर्भर बना रहे हैं। इसके लिए उनकी जो भी मदद होगी की जाएगी। इनका मॉडल सफल रहा तो इसको देश में लागू किया जा सकता है।'