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Varanasi : इलाहाबाद  HC पहुंचा ज्ञानवापी मस्जिद विवाद, अब हिंदू पक्ष ने दाखिल की कैविएट

Updated Apr 13, 2021 | 14:05 IST

गत आठ अप्रैल को वाराणसी की स्थानीय अदालत ने अपने आदेश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित परिसर की एक व्यापक पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया।

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इलाहाबाद HC पहुंचा ज्ञानवापी मस्जिद विवाद।
मुख्य बातें
  • वाराणसी की स्थानीय अदालत ने आठ अप्रैल को सुनाया अपना फैसला
  • कोर्ट ने एएसआई को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे करने को कहा है
  • मामले में मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

प्रयागराज (यूपी) : ज्ञानवापी मस्जिद परिसर विवाद मामले में वाराणसी की स्थानीय कोर्ट के फैसले को अंजुमान इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। वहीं, हिंदू पक्ष ने मंगलवार को कैविएट दाखिल कर उच्च न्यायालय से अनुरोध किया बिना उसका पक्ष सुने वह मामले में कोई आदेश पारित न करे। हिंदू पक्ष की ओर से मां श्रृंगार गौरी, आदि विशेश्वर और आठ श्रद्धालुओं को पक्षकार बनाया गया है।

वाराणसी की स्थानीय अदालत ने 8 अप्रैल को सुनाया फैसला
बता दें कि गत आठ अप्रैल को वाराणसी की स्थानीय अदालत ने अपने आदेश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित परिसर की एक व्यापक पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति देखती है। समिति ने हाईकोर्ट के समक्ष दायर अपनी याचिका में वाराणसी की एक स्थानीय अदालत की ओऱ से 8 अप्रैल को दिए गए फैसले पर रोक लगाने की मांग की है।

मुस्लिम पक्ष ने मामले की जल्द सुनवाई की मांग की
मुस्लिम पक्ष की अर्जी में मामले की सुनवाई जल्द करने की मांग की गई है। मस्जिद के प्रबंधन समिति का कहना है कि इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला पहले से ही सुरक्षित है। जबकि वाराणसी कोर्ट ने हिंदी पक्ष की अर्जी पर अपना फैसला सुनाया है। स्थानीय अदालत का आदेश न्याय की भावना के खिलाफ है। अंजुमन इंतेजामिया समिति का कहना है कि निचली अदालत ने मामले में अपना फैसला सुनाकर 'प्लेसेज ऑफ वरशिप' एक्ट 1991 की अवहेलना की है।    

हिंदू पक्ष का दावा-मंदिर गिराकर मस्जिद बनाई गई
मुकदमा दायर करने वाले हरिहर पांडे का दावा है कि यह मंदिर अनंतकाल से है और 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने इस मंदिर का पुनर्निमाण कराया। अकबर के शासन के दौरान भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। याचिकाकर्ता का दावा है कि 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के फरमान पर स्थानीय अधिकारियों ने 'स्वयंभू भगवान विशेश्वर का मंदिर गिरा दिया और उसके स्थान पर मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल करते हुए मस्जिद का निर्माण किया।

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