इस्लामाबाद : मुंबई में 26/11 हमले के साजिशकर्ता जकीउर रहमान लखवी को पाकिस्तान में गिरफ्तार किए जाने की रिपोर्ट सामने आ रही है। उसे आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में गिरफ्तार किया गया है। लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर जकीउर रहमान लखवी पाकिस्तान स्थित उन आतंकियों में शामिल है, जिसने मुंबई में 26 नवंबर, 2008 को हुई आतंकी वारदात की साजिश रची थी, जिसमें 166 लोगों की जान चली गई, जबकि सैकड़ों घायल हो गए।
लश्कर आतंकी लखवी को लाहौर पुलिस स्टेशन में पंजाब के आतंकवाद रोधी डिपार्टमेंट की ओर से दर्ज कराए गए टेरर फंडिंग के एक मामले में गिरफ्तार किया गया है। आरोप है कि वह आतंकी गतिविधियों के लिए जुटाई गई धनराशि से डिस्पेंसरी चला था।
पाकिस्तान की नीयत पर सवाल
संयुक्त राष्ट्र ने मुंबई हमले के बाद 2008 में उसे वैश्विक आतंकी घोषित किया था। मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान में उसे हिरासत में लिया गया था, लेकिन 6 साल नजरबंदी में रहने के बाद अप्रैल 2015 में उसे रिहा कर दिया गया था। इस बीच ऐसे आरोप भी लगे कि पाकिस्तान में भले ही लखवी को हिरासत में लिया गया, लेकिन जेल में उसे हर तरह की सुविधाएं दी गईं। अब एक बार फिर लखवी की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान की नीयत पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
दरअसल, पाकिस्तान में लखवी की गिरफ्तारी का यह कदम ऐसे समय में सामने आया है, जबकि अगले कुछ ही महीनों में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की बैठक होनी है। इससे पहले अक्टूबर 2020 में हुई बैठक में FATF ने पाकिस्तान को एक बार फिर ग्रे लिस्ट में रखा और कड़ी चेतावनी देते हुए फरवरी 2021 तक आतंकवाद के वित्त पोषण और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों में सभी शर्तें पूरी करने को कहा।
पाकिस्तान पर लटक रही FATF की तलवार
आतंकवाद के वित्त पोषण और मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर FATF ने 27 प्रमुख बिंदु तय किए हैं, लेकिन अक्टूबर तक पाकिस्तान ने उनमें से केवल 21 को पूरा किया था। FATF ने साफ तौर पर पाकिस्तान को फरवरी 2021 तक सभी शर्तों को पूरा करने के लिए कहा है। ऐसा नहीं होने पर उसे फिर से ग्रे सूची में डाला जा सकता है या उसे ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के लिए और भी बुरा होगा।
आतंकवाद के वित्त पोषण और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ठोस कार्रवाई नहीं किए जाने के कारण पाकिस्तान पिछले दो साल से FATF की ग्रे सूची में बना हुआ है। FATF की ग्रे लिस्ट में होने के कारण उसे मिलने वाले विदेशी निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। साथ ही आयात, निर्यात और IMF तथा ADB जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज लेने की उसकी क्षमता भी प्रभावित हो रही है। पहली बार उसे जून 2018 में FATF की ग्रे लिस्ट में रखा गया था।