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अफगानिस्‍तान में लौटेगा क्रूर सजाओं का दौर, तालिबान ने की तस्‍दीक- होगी फांसी, काट दिए जाएंगे हाथ-पैर

Updated Sep 24, 2021 | 15:31 IST

अफगानिस्तान की सत्‍ता में 1996-2001 के बीच तालिबान का राज था, जब यहां कठोर सजाओं का प्रावधान किया गया था। तालिबान एक बार फिर यहां काबिज है और फिर वही सबकुछ यहां शुरू होने के संकेत मिल रहे हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspAP, File Image
तालिबान सदस्‍य मुल्‍ला नूरुद्दीन तुराबी
मुख्य बातें
  • तालिबान ने संकेत दिए हैं कि अफगानिस्‍तान में वह एक बार फिर कठोर सजाओं को लागू करेगा
  • इसमें दोषियों को फांसी और उनके हाथ-पैर काट देने जैसी क्रूर सजाएं भी शामिल हैं
  • तालिबान के 1996-2001 के शासन के दौरान लोगों को सार्वजनिक तौर पर सजा दी जाती थी

काबुल : अफगानिस्‍तान पर तालिबान के कब्‍जे के बाद से ही दुनियाभर में कई तरह की चिंताओं ने जन्‍म लिया है। चिंता तालिबान के पुराने दौर के लौटने को लेकर भी है, जब 1996 से 2001 के दौरान अफगानिस्‍तान की सत्‍ता में रहते हुए तालिबान ने कई कठोर नियम लागू किए थे और सजा के तौर पर फांसी तथा हाथ या शरीर के अन्‍य अंगों को काट देने जैसे जघन्‍य काम धड़ल्‍ले से हो रहे थे। एक बार फिर अफगानिस्‍तान की सत्‍ता में काबिज तालिबान हालांकि यह दावा करता रहा है कि उसका मौजूदा शासन पहले के शासन से अलग होगा, लेकिन अब जो जानकारी सामने आई है, वह पुराने दौर के लौटने का संकेत करती है।

लौटेगा क्रूर सजाओं का दौर

तालिबान के संस्थापक सदस्‍यों में से एक मुल्‍ला नूरुद्दीन तुराबी के अनुसार, अफगानिस्‍तान में एक बार फिर फांसी और कठोर दंड का दौर लौटने वाला है और ऐसा जल्‍द होने जा रहा है, ताकि कानूनों का सख्‍ती से पालन सुनिश्चित किया जा सके। इसमें कुछ बदलाव होगा तो बस इतना कि इसका सार्वजनिक प्रदर्शन न हो। 'द एसोसिएटेड प्रेस' के साथ एक इंटरव्‍यू में तुराबी ने कहा, 'स्टेडियम में दंड के लिए सभी ने हमारी आलोचना की, लेकिन हमने उनके कानूनों और उनकी सजा के बारे में कभी कुछ नहीं कहा। कोई हमें नहीं बताएगा कि हमारे कानून क्या होने चाहिए। हम इस्लाम का पालन करेंगे और हम कुरान पर अपने कानून बनाएंगे।'

अफगानिस्‍तान में तालिबान के 1990 के दशक के शासन के दौरान कठोर इस्‍लामिक कानून के प्रमुख पैरोकारों में रहे तुराबी के अनुसार, सुरक्षा के लिए हाथ काटना बहुत जरूरी है। इस रह की सजा अपराधों को रोकने में कारगर होती है। मंत्रिमंडल फिलहाल इसका अध्ययन कर रहा है कि सजा सार्वजनिक रूप से देनी है या नहीं। जल्‍द ही इस संबंध में एक नीति तैयार होगी। तुराबी की इस टिप्‍पणीन ने एक बार फिर जाहिर किया है कि तालिबान अपनी पुरानी सोच में कोई बदलाव नहीं करने जा रहा है, जिसका दावा वह बीते कुछ समय में दुनिया के सामने करता रहा है और इसके आधार पर ही अपने शासन की वैधता का अनुरोध भी करता रहा है।

स्‍टेडियम में दी जाती थी सजा

तालिबान ने हाल ही में संयुक्‍त राष्‍ट्र में प्रतिनिधित्‍व की मांग की है और संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित करने की अनुमति भी मांगी है। लेकिन तालिबान के संस्‍थापक सदस्‍यों में से एक तुराबी के बयानों के बाद दुनिया एक बार फिर सोचने पर मजबूर है कि क्‍या इस सशस्‍त्र समूह के वादों और दावों पर यकीन किया जा सकता है? अफगानिस्‍तान की तालिबान की पूर्ववर्ती सरकार में तुराबी के पास न्‍याय मंत्रालय था, जो वास्‍तव में धार्मिक पुलिस की तरह काम करता था। तालिबान के उस राज में काबुल के स्‍पोर्ट्स स्‍टेडियम या ईदगाह मस्जिद में खुलेआम लोगों को सजाएं दी जाती थी, जिसमें सैकड़ों अफगान पुरुष शामिल होते थे।