- चीनी मीडिया में तजिकिस्तान की पामीर पहाड़ियों पर दावा किया गया है
- चीन पहले भी इस इलाके का एक बड़ा क्षेत्र हासिल कर चुका है
- चीन के इस दावे के बाद तजिकिस्तान सरकार चिंतित हो गई है
नई दिल्ली : चीन अपनी दबंगई एवं दादागिरी से बाज नहीं आ रहा है। अपनी विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ाने के लिए गरीब मुल्कों को डराने एवं धमकाने का उसका सिलसिला जारी है। भूटान के बाद अब उसने मध्य एशिया में स्थित एक छोटे एवं गरीब देश तजिकिस्तान को परेशान करना शुरू किया है। चीन के सरकारी मीडिया में पिछले कुछ हफ्तों से पामीर की पहाड़ियों को चीन में मिलाने की बात बार-बार कही जा रही है, चीन के इस रुख के बाद यह देश सहम गया है।
चीन के इतिहासकार ने अपने लेख में दावा किया
चीनी इतिहासकार चो यो लू ने सूत्रों के हवाले से एक लिखा है। इस लेख में कहा गया है कि पामीर का पूरा क्षेत्र चीन का है और तजिकिस्तान को इसे लौटा देना चाहिए। चीन के सरकारी मीडिया के इस रुख के बाद तजिकिस्तान सराकर चिंतित हो गई है। रिपोर्टों में कहा गया है कि पामीर की पहाड़ियों पर चीन का यह दावा रूस की नजर में भी आया है। रूस मध्य एशिया के देशों को अपने रणनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण मानता है।
1158 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन को मिला
चीन और तजिकिस्तान ने साल 2010 में एक सीमा समझौता करार किया। इस समझौते के तहत तजिकिस्तान को पामीर इलाके में अपना 1158 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन को देना पड़ा था। इस बीच तजिकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा के करीब ताशकुर्गान के पास चीन एक हवाई अड्डे का निर्माण कर रहा है जिससे चिंता बढ़ रही है। लू ने लिखा है, 'साल 1911 में नए चीन के अस्तित्व में आने के बाद अधिकारियों का पहला लक्ष्य खोए गए भूभाग को वापस पाना था। इनमें से कुछ भूभाग वापस मिल गए लेकिन अन्य क्षेत्र अभी भी पड़ोसी देशों के नियंत्रण में हैं। इसी तरह का एक प्रचीन क्षेत्र पामीर था जो कि वैश्विक शक्तियों के दबाव के चलते 128 वर्षों तक चीन से बाहर था।'
सोने के भंडार का खनन करेगी चीनी कंपनी
इसके अलावा चीन की सरकार तजिकिस्तान के सोने के भंडार के बारे में भी बात कर रही है। चीन की रिपोर्टों में कहा गया है कि केवल तजिकिस्तान में ही सोने के 145 भंडार है। तजिकिस्तान की सरकार ने चीन की एक कंपनी को इन भंडारों में खनन काम करने की इजाजत दी है। इन घटनाक्रमों पर नजर रखने वाले अधिकारियों का कहना है कि यह चीन की जांच परखी हुई चाल है कि वह पड़ोसी देश में सड़क एवं हवाईअड्डा निर्माण के नाम पर वहां दाखिल होता है और उस फिर उस देश के भूभाग पर अपना दावा करने लगता है।