- दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियां लगातार बढ़ रही है
- इसे लेकर भारत सहित दुनिया के कई देशों ने चिंता जताई है
- इसे लेकर अमेरिका ने चीन के खिलाफ प्रतिबंधों की घोषणा की है
वाशिंगटन : दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के खिलाफ अमेरिका लगातार आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं। यहां विवादित क्षेत्र के सैन्यीकरण को लेकर अमेरिका कई चीनी कंपनियों पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुका है। अब अमेरिका ने इसके लिए चुनिंदा चीनी नागरिकों पर भी प्रतिबंध की घोषणा की है। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ ने इसकी घोषणा की।
अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि उन चीनी नागरिकों पर वीजा प्रतिबंध लगाए जाएंगे, जो दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्र में किसी भी तरह से सैन्यीकरण के लिए जिम्मेदार होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि कहा कि न केवल ऐसे लोगों के अमेरिका आने पर रोक होगी, बल्कि उनके निकट पारिवारिक सदस्य भी इन वीजा प्रतिबंधों के दायरे में आ सकते हैं। अमेरिकी वाणिज्य विभाग पहले ही चीन की 24 सरकारी कंपनियों और उनकी सहायक इकाइयों को प्रतिबंधित सूची में रख चुका है।
'संप्रभुता खतरे में'
उन्होंने कहा कि वर्ष 2013 से ही चीन अपनी सार्वजनिक कंपनियों का इस्तेमाल दक्षिण चीन सागर में 3,000 एकड़ से भी अधिक के विवादित क्षेत्र पर अपने कब्जे के लिए कर रहा है, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता के हालात पैदा हो गए हैं। चीन की बढ़ती गतिविधियों से इसके कई पड़ोसी देशों के संप्रभुता के अधिकार खतरे में पड़ गए हैं और पर्यावरण को भी बड़ा नुकसान हो रहा है। उन्होंने चीनी कंपनियों पर दुनियाभर में वित्तीय संस्थानों को हड़पने का आरोप लगाते हुए यह भी कहा कि ये भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
इससे पहले पॉम्पिओ ने अमेरिकी जनता से कहा था कि केवल मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ही हैं, जो चीन और उसकी घातक आक्रामक प्रवृत्ति से लोहा ले सकते हैं। उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की घातक आक्रामक प्रवृति को बेनकाब किया है। 'चाइनीज वायरस' से अमेरिका सहित दुनियाभर में हो रही मौतों व आर्थिक तबाही के लिए उन्होंने चीन को जिम्मेदार ठहराया है। वह तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक न्याय नहीं हो जाता। बकौल पॉम्पिओ, राष्ट्रपति ट्रंप ने यह सुनिश्चित किया कि अमेरिका में राजनयिक के रूप में नजर आ रहे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के जासूस या तो सलाखों के पीछे जाएं या उन्हें उनके देश वापस भेजा जाएगा।