- अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने तिब्बत की निर्वासित सरकार को दी मान्यता
- तिब्बत मामलों के लिए अमेरिका ने रॉबर्ट डेस्ट्रो को बनाया है विशेष समन्वयक
- स मुलाकात के लिए सांगे ने विदेश मंत्री माइक पोंपिओ को भी धन्यवाद दिया
वॉशिंगटन : तिब्बत की निर्वासित सरकार के मुखिया लोबसांग सांगे ने गुरुवार को वॉशिंगटन में तिब्बत मामले के लिए अमेरिका के विशेष समन्वयक रॉबर्ट डेस्ट्रो से मुलाकात की। सेंट्रल तिब्बती प्रशासन के मुखिया की अमेरिका के विदेश मंत्रालय के किसी अधिकारी के साथ यह पहली मुलाकात है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने बुधवार को लोकतंत्र, मानवाधिकार और श्रम मामलों के सहायक विदेशमंत्री रॉबर्ट डेस्ट्रो को तिब्बत मामले का विशेष समन्वयक नामित किया।
सांगे ने अपने फेसबुक पेज पर डेस्ट्रो के साथ हुई मुलाकात की एक तस्वीर पोस्ट की है। इस पोस्ट के साथ उन्होंने लिखा है, 'तिब्बत मामले का विशेष समन्वयक रॉबर्ट डेस्ट्रो से मिलना काफी सम्मानजनक रहा। पिछले छह दशकों में यह पहली बार हुआ है जब सेंट्रल तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के प्रमुख को विदेश विभाग क की ओर से आधिकारिक रूप से बुलाया गया।' इस मुलाकात के लिए सांगे ने विदेश मंत्री माइक पोंपिओ को भी धन्यवाद दिया।
चीन पर दबाव बनाने की कोशिश
उन्होंने कहा, 'लोकतांत्रिक रूप से चुने गए सीटीए के नेता को मान्यता देने और इस मुलाकात की मंजूरी देने के लिए मैं विदेश विभाग एवं विदेश मंत्री माइक पोंपिओ को धन्यवाद देना चाहता हूं। आज इतिहास रचा गया है।' तिब्बत के लिए विशेष समन्वयक नियुक्त कर अमेरिका ने चीन पर दबाव बनाने की कोशिश की है। सीटीए तिब्बत की स्वायत्तता की मांग उठाता रहा है। अब अमेरिका की ओर से उसे मान्यता मिल जाने के बाद चीन पर उसका दबाव बनेगा। साथ ही तिब्बत में होने वाली मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं सीटीए प्रमुखता से उठा पाएगा।
अमेरिका के इस कदम पर चीन ने दी है कड़ी प्रतिक्रिया
तिब्बत मामले के लिए विशेष समन्वयक नियुक्त किए जाने का अमेरिकी कदम चीन को नागवाज गुजरा है। बीजिंग ने इस पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने गुरुवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि अमेरिका का यह कदम चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप जैसा है। उन्होंने कहा, ‘तिब्बत मामलों पर कथित विशेष समन्वयक बनाना चीन के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप करने और शीजांग (तिब्बत का चीनी नाम) को अस्थिर करने की पूरी तरह से राजनीतिक जालसाजी है।’समझा जाता है कि आने वाले दिनों में इस मसले को लेकर चीन और अमेरिका के बीच तकरार और बढ़ेगी।