- LAC पर भारत-चीन तनातनी के बीच अमेरिका का बड़ा बयान आया है
- अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि भारत, दक्षिण पूर्व एशिया को चीन से खतरा है
- उन्होंने यह भी कहा कि इसलिए अमेरिका यूरोप से अपनी सेना हटा रहा है
वाशिंगटन : भारत-चीन सीमा विवाद के बीच अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ का बड़ा बयान आया है। उन्होंने कहा कि चीन की गतिविधियों से भारत और और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र को बड़ा खतरा है और इसलिए अमेरिका यूरोप से अपनी सैन्य तैनाती धीरे-धीरे घटा रहा है और इन्हें अन्य स्थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है, ताकि चीन की ओर से पैदा हो रही चुनौतियों का मुकाबला किया जा सके।
ब्रसेल्स फोरम में दिया बयान
अमेरिकी विदेश मंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है, जबकि पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच सैन्य टकराव की स्थिति बनी हुई है। 15 जून को खूनी संघर्ष में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद तनाव और बढ गया है। इस बीच अमेरिकी विदेश के इस बयान से क्षेत्र में हलचल बढ़ गई है। पॉम्पिओ ने ब्रसेल्स फोरम की वर्चुअल कॉन्फ्रेंस के दौरान ये बात कही। उनका यह बयान उस सवाल के जवाब में आया, जिसमें उनसे अमेरिका द्वारा जर्मनी से अपने सैनिकों की संख्या कम किए जाने के कारणों को लेकर सवाल किया गया था।
'भारत-दक्षिणपूर्व एशिया को खतरा'
यहां उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने पिछले दिनों जर्मनी से अपने सैनिकों की वापसी का ऐलान किया था। पॉम्पिओ से इसी को लेकर सवाल किया गया। अमेरिकी विदेश मंत्री ने जर्मनी से सैन्य तैनाती घटाने के फैसले को जायज ठहराया और इसी दौरान उन्होंने कहा कि भारत तथा पूरे दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र को चीन से खतरा पैदा हो गया है। यहां तक कि चीन यूरोप के हितों को भी नुकसान पहुंचा रहा है। चीन के खिलाफ अमेरिका और यूरोपीय देशों की एकजुटता का आह्वान करते हुए पॉम्पिओ ने यह भी कहा कि वह इस मुद्दे पर यूरोपीय संघ से आगे भी बातचीत करेंगे।
अन्य देशों को भी चीन से खतरा
उन्होंने कहा कि भारत के साथ-साथ वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और दक्षिण चीन सागर में भी चीन से खतरा पैदा हो गया है। अमेरिका मौजूदा दौर की इन चुनौतियों से निपटने का प्रयास कर रहा है। इस दौरान उन्होंने दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते दखल और भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हिंसक झड़प का भी जिक्र किया और कहा कि इन सबके खिलाफ एकजुट होकर कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बीते दो साल में ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी सैन्य तैनाती की रणनीतिक तरीके से समीक्षा की है। अमेरिका ने खतरों को देखा है और समझा है कि साइबर, इंटेलिजेंस और मिलिट्री जैसे संसाधनों को कैसे अलग किया जाए।