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रूस से भारत सिर्फ 1-2 फीसद कच्चे तेल का करता है आयात, फिर भी अमेरिका परेशान

Updated Apr 05, 2022 | 08:43 IST

रूस और यूक्रेन के बीच जंग में क्या अमेरिका अपना हित साध रहा है। क्या वो इन दोनों देशों की लड़ाई का फायदा उठाना चाहता है। दरअसल अमेरिका का कहना है कि जिस तरह से रूस पर लगाम लगाने के लिए उसने अपनी निर्भरता उस पर कम की है दूसरे देशों को भी वैसा ही करना चाहिए। अमेरिका खास तौर से रूस से कच्चे तेल के आयात के सिलसिले में एक तरह से चेतावनी दे रहा है।

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रूस से भारत सिर्फ 1-2 फीसद कच्चे तेल का करता है आयात, फिर भी अमेरिका परेशान

यूक्रेन और रूस के बीच जंग जारी है। जंग के बीच तरह तरह के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच अमेरिका की तरफ से भारत के संबंध में अहम बात कही गई वो चीन और एलएसी के संबंध में थी। अमेरिका के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह ने धमकाने के अंदाज में कहा था कि अगर एलएससी पर चीन उल्लंघन करता है तो क्या रूस बचाने आएगा। लेकिन मामला कुछ और था। अमेरिका नहीं चाहता है कि भारत या दूसरे मुल्क अपनी ऊर्जा जरूरतों को रूस से पूरी करें। लेकिन सवाल यह है कि जब अमेरिका जानता और स्वीकार करता है कि रूस से भारत महज 1 से 2 फीसद ही कच्चे तेल का आयात करता है तो उसे परेशानी क्यों हो रही है। इस संबंध नें व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जॉन पेस्की ने क्या कहना पहले उसे समझने की आवश्यकता है। 

अमेरिका कर रहा है दबाव की राजनीति
भारत और अमेरिका के शीर्ष अधिकारियों के बीच चर्चा में आया है, फिर भी वाशिंगटन ने कहा है कि मॉस्को पर दबाव बनाने के लिए यह "आयात पर प्रतिबंध लगाने का देश का व्यक्तिगत निर्णय" है। दलीप सिंह हमारे उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार वहां (भारत) थे। हम बहुत स्पष्ट हैं कि प्रत्येक देश अपना निर्णय लेने जा रहा है, भले ही हम व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने भारत की तेल खरीद के बारे में पूछे जाने पर एक प्रेस वार्ता में कहा, "निर्णय लिया है और अन्य देशों ने ऊर्जा आयात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है।

ऐतराज भी और नहीं भी

जॉन पेस्की ने कहा कि डिप्टी एनएसए दिलीप सिंह ने अपनी यात्रा के दौरान जो स्पष्ट किया वह यह था कि रूसी ऊर्जा और अन्य वस्तुओं के आयात में तेजी लाने या बढ़ाने के लिए भारत के हित में नहीं था।अभी केवल यह बताने के लिए है कि भारत का रूसी ऊर्जा का आयात केवल 1 से 2 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है कुल ऊर्जा आयात। इसलिए जब उन्होंने पहले ही प्रतिबंधों के तंत्र की व्याख्या की तो उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि हमें रूसी ऊर्जा पर निर्भरता को कम करने में भागीदार बनना होगा।

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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने क्या कहा था
तेल खरीद पर सवालों के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले हफ्ते इस मुद्दे पर अभियान" की आलोचना की। उन्होंने कहा था कि यह दिलचस्प है क्योंकि हमने कुछ समय के लिए देखा है कि इस मुद्दे पर लगभग एक अभियान जैसा दिखता है। उन्होंने पढ़ा था कि मार्च में यूरोप ने रूस से 15 प्रतिशत अधिक तेल और गैस खरीदा। हालांकि भारत की तरफ से इतनी बड़ी मात्रा में खरीद नहीं की गई जबकि भारत और रूस अन्य क्षेत्रों के अलावा रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों में भागीदार रहे हैं।

क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि यह अमेरिका की प्रवृत्ति रही है कि वो सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचता है। रूस से उसकी स्वाभाविक दोस्ती कभी नहीं रही। लिहाजा अमेरिका की तरफ से कोशिश की जाती है कि वो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर दबाव बनाए। आप देख सकते हैं कि यूक्रेन के साथ रूस की लड़ाई में अमेरिका सधे अंदाज में मदद की पेशकश कर रहा है। वो एक तरफ यूक्रेन को नैतिक समर्थन देने की बात करता है लेकिन नाटो के मुद्दे पर चुप हो जाता है। अमेरिका की कोशिश है कि रूस किसी भी सूरत में ताकतवर ना बन पाए और उसके लिए जरूरी है कि रूस आर्थिक तौर पर कमजोर हो। अब रूस को यदि आर्थिक तौर पर कमजोर करना है तो उन देशों पर दबाव बनाना होगा जिनके उससे रिश्ते हैं। लेकिन भारत ने भी अमेरिका को साफ बता दिया है कि वो अपने फैसले देशहित के हिसाब से करेगा।