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'अल्‍लाह' अब सभी के, कोर्ट के फैसले ने मिटाया फर्क, पर आखिर क्‍यों लगी थी रोक?

Updated Mar 13, 2021 | 15:22 IST

ईश्‍वर के लिए अल्‍लाह शब्‍द के इस्‍तेमाल को लेकर दो संप्रदायों में झगड़े के बीच मलेशिया की अदालत ने अहम फैसला सुनाया है। इसके लिए बीते तीन दशकों से भी अधिक समय से यहां अभियान चलाया जा रहा था।

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तस्वीर साभार:&nbspAP, File Image
'अल्‍लाह' अब सभी के, कोर्ट के फैसले ने मिटाया फर्क, लोगों के चेहरों पर लौटी मुस्‍कान

कुलालालंपुर : दुनियाभर में धर्मों को लेकर होने वाले झगड़े के बीच मलेशिया की अदालत के एक फैसले ने अंतरराष्‍ट्रीय मीडिया ध्‍यान खींचा है। इस 'ऐतिहासिक' व 'अभूतपूर्व' फैसले ने कई लोगों के चेहरों पर मुस्‍कान ला दी है, जो बीते करीब तीन दशकों से भी अधिक समय से इसके लिए संघर्ष जारी रखे हुए थे। अदालत के इस फैसले में 35 साल पुराने उस सरकारी आदेश को रद्द कर दिया गया, जिसमें गैर-मुस्लिमों द्वारा ईश्‍वर के लिए 'अल्‍लाह' शब्‍द के इस्‍तेमाल को गैर-कानूनी करार दिया गया था।

कोर्ट ने अपने इस आदेश में 'अल्‍लाह' के साथ-साथ अरबी भाषा के तीन अन्‍य शब्‍दों के गैर-मुस्लिम समुदाय द्वारा इस्‍तेमाल पर लगी रोक को भी रद्द कर दिया। मलेशियाई कोर्ट का यह ऐतिहासिक व अभूतपूर्व फैसला बुधवार को आया, जिसने इसके लिए लंबी लड़ाई जारी रखने वालों के चेहरों पर मुस्‍कान ला दी तो दुनियाभर में धार्मिक तनाव के बीच मानवता को एक बड़ा संदेश भी दिया। अदालत के फैसले को समान मानवाधिकारों के संदर्भ में बड़ी जीत के तौर पर भी देखा जा रहा है।

क्‍यों लगी थी रोक?

मलेशिया यूं तो एक धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन विगत कुछ समय में यहां भी धार्मिक तनाव देखा गया है। सरकार ने यहां करीब 35 साल पहले यह कहते हुए गैर-मुसलमानों द्वारा अल्‍लाह शब्‍द के इस्‍तेमाल पर रोक लगा दी थी कि इससे भ्रम पैदा होगा और मुस्लिम समाज के लोग दूसरा धर्म अख्तियार कर सकते हैं। इसकी पृष्‍ठभूमि में कुछ मुस्लिम समूहों की वह आशंका थी,‍ जिनमें कहा गया कि ईसाई समुदाय के लोग अल्लाह शब्द का इस्तेमाल कर मुसलमानों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।

मलेशिया में इस सरकारी आदेश को पहले भी चुनौती दी गई थी, लेकिन इससे पहले के फैसलों में सरकारी निर्णय को जायज ठहराया गया था। ऐसी ही एक सुनवाई 2013 में हुई थी, जब एक मलेशियाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया था, जिसमें कहा गया था कि गैर-मुस्लिम भी ईश्‍वर के लिए अल्‍लाह शब्‍द का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। मलेशिया की निचली अदालत का वह फैसला 2009 में आया था, जिसके बाद यहां तनाव फैल गया था और कई मस्जिदों व गिरजाघरों को निशाना बनाया गया।

इस मामले में क्या है दलील?

बाद में इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दी गई, जिस पर 2013 में फैसला आया। इसमें कहा गया कि गैर-मुस्लिम ईश्‍वर के संदर्भ में अल्लाह शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकते। ईसाइयों ने इसका विरोध किया। उन्‍होंने दलील दी कि वे इस शब्द का इस्तेमाल मलय भाषा में दशकों से कर रहे हैं और यह अदालती आदेश उनके अधिकारों का हनन करता है। उन्‍होंने कहा कि 1963 में मलेशिया के संघीय राष्ट्र बनने से पहले से मलय भाषा की बाइबिल में अल्लाह शब्द का इस्तेमाल होता रहा है।

वहीं इस मामले में सरकारी पक्ष का कहना है कि अल्लाह मलय शब्द नहीं है। अगर वे ईश्‍वर के लिए किसी मलय शब्द का इस्‍तेमाल करना चाहते हैं तो उन्हें अल्लाह की जगह 'तुहान' कहना चाहिए। 2013 के अदालत के फैसले के बाद सैकड़ों की संख्‍या में कोर्ट के बाहर मौजूद लोगों ने खुशी जताते हुए ऐसे नारे लिखे बैनर लहराए थे, जिनमें कहा गया था कि अल्लाह शब्द विशिष्ट तौर पर इस्लाम से संबंधित है।

यहां उल्‍लेखनीय है कि मलेशिया की कुल आबादी में दो-तिहाई मुसलमान हैं तो यहां ईसाइयों और हिंदुओं की संख्‍या भी ठीक-ठाक है। अदालत का बुधवार का आदेश एक मलेशियाई महिला द्वारा पुलिस की उस कार्रवाई के खिलाफ दायर मुकदमे के सिलसिले में आया है, जिसमें इसलिए उनके घर से सीडी जब्‍त कर ली गई थी, क्‍योंकि उसमें ईश्‍वर के लिए 'अल्‍लाह' शब्‍द का इस्‍तेमाल किया गया था।