नई दिल्ली : अंटार्कटिका का थ्वाइट ग्लेशियर का तेजी से पिघलना जारी है। इससे दुनिया भर के वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ गई हैं। थ्वाइट ग्लेशियर को 'डूम्सडे ग्लेशियर' भी कहा जाता है। यह ग्लेशियर इतना बड़ा है कि इसमें तीन से चार शहर समा सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते यह ग्लेशियर तेजी से आगे बढ़ रहा है और पिघल रहा है। वैज्ञानिकों को आशंका है कि जिस गति से यह पिघल रहा है उससे दुनिया भर में समुद्र का स्तर आधा मीटर बढ़ जाएगा। अध्ययन में पाया गया है कि पिछले 30 सालों में इससे पिघलने वाली बर्फ की मात्रा करीब-करीब दोगुनी हो गई है। समुद्र का स्तर बढ़ने पर तटवर्ती इलाकों के डूबने का खतरा रहेगा।
क्यों कहा जाता है 'डूम्सडे ग्लेशियर'
दरअसल, थ्वाइट ग्लेशियर का आकार काफी विशाल है। यह 120 किलोमीटर चौड़ा है। अपने आकार की वजह से इसमें इतना बर्फ है कि अगर वह पिघल गया तो दुनिया भर के समुद्र के स्तर में भारी वृद्धि होगी। समुद्र के समीप कई द्वीप इसमें डूब सकते हैं। 'डूम्स डे' का मतलब होता है आखिरी दिन। इसके पूरी तरह से पिघलने पर दुनिया पर जो खतरा मंडराएगा उसे देखते हुए वैज्ञानिक इसे 'डूम्स डे ग्लेशियर' के नाम से बुलाते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पिघलते ग्लेशियर को लेकर दुनिया को गंभीर होने की जरूरत है।
गोथनबर्ग यूनिवर्सिटी ने किया नया शोध
स्वीडन के गोथनबर्ग यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि अब यह ग्लेशियर ज्यादा तेजी से पिघल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर के नीचे गर्म पानी का बहाव जारी है। बीते समय में गर्म पानी के इस बहाव को कम कर के आंका गया था। दरअसल, यह ग्लेशियर कई वर्षों से पिघल रहा है। इसका आकार 1.9 वर्ग किलोमीटर का है। इस ग्लेशियर के पिघलने से हर साल दुनिया के समुद्र तल के स्तर में 4 प्रतिशत की वृद्धि हो जाती है। ऐसा अनुमान है कि यह ग्लेशियर 200-900 सालों के बीच समुद्र में पूरी तरह पिघल जाएगा। यही नहीं, यह ग्लेशियर अपने पीछे मौजूद ग्लेशियरों को आगे बढ़ने से भी रोक रहा है।
बढ़ रही है ग्लेशियर में कैविटी
2019 के एक अध्ययन में पाया गया कि कैविटी लगातार बढ़ती जा रही है। बर्फ के गोले में गर्म पानी पहुंचने पर उसमें छिद्र हो जाता है। कैविटी का यह एरिया मैनहटन के दो-तिहाई क्षेत्र के बराबर है। न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर के नीचे गर्म पानी मौजूद है जिसकी वजह से ग्लेशियर में कैविटी बढ़ रही है। ग्लेशियर पिघड़ने पर उसका वजन कम होता है, वजन कम होने पर वह समुद्र में गिरेगा। गोथनबर्ग यूनिवर्सिटी ने अपनी पनडुब्बी भेजकर ग्लेशियर के बारे में नए डाटा एकत्र किए हैं।