पेरिस/इस्लामाबाद : पेरिस में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की बैठक से ठीक पहले पाकिस्तान की अदालत ने जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद को आतंकी फंडिंग मामले में सजा सुनाई थी, जो मुंबई में 26 नवंबर, 2008 को हुए आतंकी हमले का भी मास्टरमाइंड है। पाकिस्तान की अदालत के इस फैसले को पहले ही अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश के तौर पर देखा गया।
विशेषज्ञों ने पहले ही इसे दिखावा करार देते हुए कहा था कि इसके जरिये पाकिस्तान बस अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह यकीन दिलाने का प्रयास कर रहा है कि वह आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है। अब एफएटीएफ के फैसले से भी साफ हो गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उसके झांसे में नहीं आने वाला। पाकिस्तान ने एफएटीएफ की बैठक में हाफिज को आतंकी फंडिंग के मामले में दी गई सजा का हवाला भी दिया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसे नाकाफी मानते हुए उसे 'ग्रे लिस्ट' में ही रखने का फैसला किया।
भारत का पक्ष
एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के लिए पाकिस्तान ने भले ही हर पैंतरा अपनाया, पर उसे कामयाबी नहीं मिली। भारत पहले से भी कहता रहा है कि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन आज भी पाकिस्तान की धरती से अपनी गतिविधियां चलाते हैं। उनकी गतिविधियां ज्यादातर भारत विरोधी होती हैं, जिसमें उन्हें पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी पूरा समर्थन मिलता है। भारत अपने यहां हुई कई आतंकी वारदातों के लिए पाकिस्तान स्थित संगठनों को जिम्मेदार ठहरा चुका है और मुंबई आतंकी हमले के पीछे हाफिज सईद का हाथ होने को लेकर उसने साक्ष्य भी दिए हैं, जिसे पाकिस्तान ने हमेशा नजरअंदाज किया।
क्या है एफएटीएफ?
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) एक अंतर-सरकारी निकाय है। इसका मकसद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकी फंडिंग, सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार पर नजर रखना है। इसका गठन 1989 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में जी7 समूह के देशों ने किया था। इसकी बैठक एक साल में तीन बार होती है, जिसमें आतंकी फंडिंग, मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर व्यापक चर्चा होती है। आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं करने को लेकर पाकिस्तान को जून 2018 में 'ग्रे सूची' में डाला गया था। बाद में अक्टूबर 2018 और फरवरी 2019 में हुई समीक्षा बैठकों में भी पाकिस्तान को राहत नहीं मिली।