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पाकिस्तान की संसद में तुर्की राष्ट्रपति अर्दोगान का 'कश्मीर राग', समझें इसका मतलब

Updated Feb 14, 2020 | 16:49 IST

तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोगान ने पाकिस्तान की संसद में कहा कि जम्मू-कश्मीर का मुद्दा जितना इमरान सरकार के लिए अहम है उतना ही जरूरी उनके देश के लिए है।

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तस्वीर साभार:&nbspAP, File Image
तुर्की के राष्ट्रपति हैं अर्दोगान
मुख्य बातें
  • पाकिस्तान की संसद में तुर्की के राष्ट्रपति बोले- कश्मीर उनके लिए भी अहम
  • भौगोलिक या राजनीतिक नक्शे पर सीमा रेखा के जरिए इस्लाम को बांधा नहीं जा सकता
  • कश्मीर मुद्दे पर मलेशिया भी पाकिस्तान का करता है समर्थन

नई दिल्ली। पांच अगस्त 2019 भारत की संसद ने ऐलान किया कि जम्मू-कश्मीर को अब अनुच्छेद 370 के किसी भी उपबंध का लाभ नहीं मिलेगा। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश होंगे। भारत सरकार के इस निर्णय के बाद पाकिस्तान बौखला गया था और वो बौखलाहट अब भी है। सबसे बड़ी बात ये है कि पाकिस्तान के साथ साथ उसकी नापाक मुहिम में मलेशिया और तुर्की कांधा से कांधा मिलाकर साथ चलते रहे। 

तुर्की के राष्ट्रपति का कश्मीरी राग
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोगान पाकिस्तान की यात्रा पर हैं। उन्होंने पाकिस्तानी संसद में कश्मीर का जिक्र करते हुए यहां तक बोल गए कि पाकिस्तान के लिए कश्मीर जितना जरूरी है उतना ही जरूरी उनके लिए भी है। अब सवाल यह है कि तुर्की की सीमा से भारत का दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है तो अर्दोगान के बयान का मतलब क्या है। इस सवाल का जवाब उनके बयान से समझा जा सकता है। वो कहते हैं कि इस्लाम को नक्शे पर खींची गई रेखाएं कुछ खास सीमाओं में नहीं बांध सकती हैं। इसका अर्थ यह है कि आज से 700 से 800 साल पहले जिस तरह पश्चिम से पूर्व तक इस्लाम का राज था कुछ वैसा ही सपना वो देख रहे हैं। 

कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान से तुर्की को हमदर्दी
अर्दोगान ने कहा का कश्मीर पर पाकिस्तान का दर्द उनका दर्द है। दोनों देशों के बीच दोस्ती प्यार और सम्मान पर आधारित है। जहां तक पाकिस्तान की तरक्की की बात है तो इमरान खान सरकार की अगुवाई में आगे बढ़ रहा है। लेकिन सच यह भी है कि तरक्की एक दिन में नहीं हो सकती है यह सतत प्रक्रिया है, तुर्की जैसे पहले सहयोग करता रहा है ठीक उसी तरह आगे भी मदद करता रहेगा। वो पाक संसद में आकर खुद को सौभाग्यशाली मान रहे हैं। पाकिस्तान से उनका आत्मिक लगाव है और वो जब भी यहां आते हैं लगता है कि वो अपने घर पर ही हैं। 

कमाल पाशा से अलग राह पर अर्दोगान
अगर तुर्की की बात करें तो कमाल पाशा ने 20वीं सदी के तीसरे दशक में खलीफा को खत्म कर दिया और एक ऐसे तुर्की की कल्पना को साकार किया जो इस्लामी राष्ट्र होते हुए भी चाल ढाल और सोच में अंग्रेजियत की रंगत लिए हुए थी। इस मामले में जानकार कहते हैं कि तुर्की और मलेशिया दोनों को लगता है कि भारत और अमेरिका के बीच प्रगाढ़ संबंध को रोकने के साथ साथ इस्लामिक देशों को एक छतरी के तले आने की जरूरत है ताकि पैन इस्लामी विश्व के सपने को साकार किया जा सके।