- चीन के साथ अमेरिका की तल्खी बढ़ती जा रही है, जिससे दोनों देशों के संबंध और प्रभावित हो सकते हैं
- अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ के अनुसार, ह्यूस्टन स्थित चीनी दूतावास जासूसी का अड्डा बन गया था
- इससे पहले राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि आने वाले समय में चीन से अन्य मिशनों को भी बंद करने के लिए कहा जा सकता है
वाशिंगटन : चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने गुरुवार को कहा कि ह्यूस्टन स्थित चीनी वाणिज्यदूतावास जासूसी का अड्डा बन गया था, जिस वजह से अमेरिका ने इसे बंद करने का आदेश बीजिंग को दिया। उन्होंने कहा कि यहां गैर-कानूनी गतिविधियां चल रही थीं और अमेरिकी कंपनियों की व्यापारिक गुप्त सूचनाएं चुराने का काम हो रहा था, जिस वजह से अमेरिका ने इसे बंद करने का फैसला किया।
जासूसी कर रहा था चीन!
पॉम्पियो की यह टिप्पणी अमेरिका द्वारा चीन को अभी तीन दिन पहले ही ह्यूस्टन स्थित अपना वाणिज्य दूतावास बंद करने का आदेश दिए जाने के बाद आई है। अमेरिका का कहना है कि उसने अपने नागरिकों की निजी जानकारियों और बौद्धिक संपदा की रक्षा के लिए यह कदम उठाया। वहीं, चीन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि अमेरिका का यह कदम एकतरफा और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने भी की थी तल्ख टिप्पणी
अमेरिकी विदेश मंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है, जबकि एक दिन पहले ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि भविष्य में अमेरिका चीन से अपने और राजनयिक मिशनों को बंद करने के लिए कह सकता है। उन्होंने ह्यूस्टन स्थित चीनी वाणिज्यदूतावास में कुछ कागजातों को जलाने की मीडिया रिपोर्ट्स पर भी हैरानी जताई और कहा, 'मुझे लगता है कि वे कुछ कागजात और दस्तावेज जला रहे थे।'
बढ़ सकता है अमेरिका-चीन तनाव
अब पॉम्पिओ की टिप्पणी से जाहिर हो रहा है कि अमेरिका-चीन के बीच तल्खी और बढ़ने वाली है। दोनों देशों के बीच ट्रेड वार को लेकर पहले से ही तनातनी रही है, जबकि कोरोनावायरस, हॉन्कॉन्ग के मसले पर भी अमेरिका-चीन में हाल के समय में तनाव बढ़ा है। इसके अतिरिक्त अमेरिका चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के दमन के आरोप भी बीजिंग पर लगाता रहा है, जबकि वह ताइवान की संप्रभुता व स्वतंत्रता को लेकर भी मुखर रहा है। बढ़ते तनाव के बीच जानकारों का कहना है कि अमेरिका-चीन के कूटनीतिक संबंधों को बड़ा झटका लग सकता है, जिसकी शुरुआत करीब 50 वर्ष पहले हुई थी।