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केरल-हरियाणा से भी छोटा है ताइवान, जानें अमेरिका और चीन को किस बात का है डर

Updated Aug 03, 2022 | 13:36 IST

China-Taiwan-USA Dispute: ताइवान बेहद ही छोटा सा देश है। लेकिन इसके बावजूद उसकी भौगोलिक स्थिति उसे खास बनाती है। जिसकी वजह से न तो चीन ताइवान को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर रखना चाहता है। और न ही अमेरिका उसे अपने प्रभाव से दूर करना चाहता है।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
ताइवान को लेकर चीन-अमेरिका आमने-सामने
मुख्य बातें
  • दक्षिण पूर्वी चीन के तट से करीब 100 मील की दूरी पर ताइवान स्थित है।
  • ताइवान और चीन के बीच विवाद की शुरूआत 1949 से शुरू हुआ था।
  • ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच विवाद बढ़ता है तो दुनिया में दो गुट बन सकते हैं।

China-Taiwan-USA Dispute:दुनिया पर एक और युद्ध  का खतरा मंडरा रहा है। इस बार विवाद दुनिया की दो बड़ी शक्तियों के बीच है। चीन और अमेरिका ताइवान को लेकर आमने-सामने हैं। हालात यह है कि अमेरिका की प्रतिनिधिसभा की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी के मंगलवार को ताइवान पहुंचने के बाद से ही चीन लगातार सैन्य धमकी दे रहा है। उसने अपने 21 लड़ाकू विमान भी ताइवान के एयर स्पेस में भेज दिए। वहीं चीन की धमकी की परवाह किए बिना पेलोसी ने कहा कि अमेरिका स्वशासी द्वीप के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे नहीं हटेगा। साफ है कि चीन और अमेरिका ताइवान को लेकर अपनी रणनीति बदले को तैयार नहीं है। करीब 36,197 वर्ग किलोमीटर वाला ताइवान इस समय दुनिया की दो शक्तियों के बीच नाक की लड़ाई बन गया है।

केरल और हरियाणा से भी छोटा

देखा जाय तो ताइवान का क्षेत्रफल भारत के केरल (38,863 वर्ग किलोमीटर) और हरियाणा (44,212 वर्ग किलोमीटर) से भी छोटा है। यानी ताइवान बेहद ही छोटा सा देश है। लेकिन इसके बावजूद उसकी भौगोलिक स्थिति उसे खास बनाती है। जिसकी वजह से न तो चीन ताइवान को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर रखना चाहता है। और न ही अमेरिका उसे अपने प्रभाव से दूर करना चाहता है। इसीलिए पेलोसी ने बुधवार को ताइवान पहुंचने पर कहा कि आज विश्व के सामने लोकतंत्र और निरंकुशता के बीच एक को चुनने की चुनौती है। ताइवान और दुनियाभर में सभी जगह लोकतंत्र की रक्षा करने को लेकर अमेरिका की प्रतिबद्धता अडिग है।

चीन की वन चाइना पॉलिसी का हिस्सा है ताइवान

असल में चीन ताइवान को वन चाइना पॉलिसी का हिस्सा मानता है, जबकि ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है। ताइवान का अपना संविधान है और वहां लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार का शासन है। चीन का लक्ष्‍य ताइवान को चीन के कब्‍जे को मानने के लिए मज‍बूर करना है।  ताइवान और चीन के बीच विवाद की शुरूआत 1949 से शुरू हुआ था। जब 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने जीत हासिल कर राजधानी बीजिंग पर कब्जा कर लिया। और हार के बाद सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के लोगों को भागना पड़ा। कुओमिंतांग पार्टी के सदस्यों को ताइवान में जाकरण शरण लेनी पड़ी और वहीं पर उन्होंने अपनी सत्ता स्थापित कर ली। उसी वक्त से चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है। जबकि ताइवान के लोग अपने को आजाद मुल्क मानते हैं।

अमेरिका को क्या है ऐतराज

वैसे तो अमेरिका ताइवान का लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर समर्थन करता है। लेकिन इसके पीछे केवल यही वजह नहीं है। दक्षिण पूर्वी चीन के तट से करीब 100 मील की दूरी पर ताइवान स्थित है। और अगर इस पर चीन का कब्जा हो जाता है तो सीधा खतरा अमेरिका के लिए होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि  गुआम और हवाई द्वीप पर मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकाने सीधे चीन के निशाने पर आ जाएंगे। साथ ही पश्चिमी प्रशांत महासागर में चीन को खुला रास्ता भी मिल सकता है। जो सीधे तौर पर अमेरिकी हितों को प्रभावित करेगा। इसीलिए अमेरिका ताइवान का समर्थन करता रहता है। और उसे सैन्य सहायता से लेकर कूटनीतिक मदद तक करता है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका (AUKUS) का समझौता भी प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन पर अंकुश लगाता है। साथ ही ताइवान के इलाके में दक्षिण कोरिया, जापान, फिलीपींस जैसे देश अमेरिका के साथ हैं। 

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दुनिया हो सकती है लामबंद

अगर ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच विवाद बढ़ता है तो दुनिया में दो गुट बन सकते हैं। जिसमें एक तरफ चीन के साथ रूस, उत्तरी कोरिया और पाकिस्तान खड़े हुए दिखाई देंगे। वहीं अमेरिका के साथ दक्षिण कोरिया, जापान, फिलीपींस, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देश खड़े दिखाई दे सकते हैं। हालांकि अमेरिका की तरह ताइवान को दुनिया के बेहद कम देश ही मान्यता देते हैं। लेकिन विवाद खिंचने पर अमेरिका और चीन के समर्थन में कई देश लामबंद हो सकते हैं।